भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
यह कहानी है एक नन्हें से बच्चे की, जिसका नाम है वीर। वीर अपने माँ-पिताजी के साथ केल्सी नामक शहर में रहता था। उसे खेलना और पेड़-पौधों से बातें करना बहुत अच्छा लगता था। जब भी मौका मिलता, वह खेलने बाहर चला जाता। उसकी इस आदत से परेशान माँ अकसर कहतीवीर, अब तुम आठ साल के हो गए हो, तुम पढ़ाई पर भी ध्यान दिया करो। वीर पर इस बात का कोई असर नहीं होता। वह फिर खेलने निकल जाता।
वीर स्कूल जाता लेकिन जैसे ही स्कूल से लौटता, पेड़-पौधों से अपने स्कूल की सारी बातें करता। शाम को अपने बचपन के दोस्त अमन के साथ खेलता। कभी-कभी वे एक साथ पढ़ाई भी करते थे। पर कुछ दिनों से वीर स्कूल के बाद घर से बाहर नहीं जाता। केवल किताबें लेकर गुमसुम-सा बैठा रहता। उसको गुमसुम देखकर माँ ने प्यार से पूछा, “क्या बात है वीर, तुम आजकल अपने दोस्त अमन के साथ खेलने नहीं जाते हो? किसी ने कुछ कहा है?
“नहीं मुझे कुछ नहीं हुआ है। मैं तो बस पढ़ाई कर रहा हूँ। हमारी टीचर कहती हैं कि खेलोगे-कूदोगे होगे खराब, पढ़ोगे-लिखोगे बनोगे नवाब। क्या खेलने से लोग खराब हो जाते हैं? आप भी तो खेलने के कारण डाँटती हैं।” वीर की बात सुनकर माँ ने समझाया- नहीं बेटा वीर, ऐसी बात नहीं है। खेलना भी जरूरी है, पर पढ़ना ज्यादा जरुरी है इसलिए टीचर ने ऐसा कहा होगा। वीर ने कुछ नहीं कहा, चुपचाप माँ की बात सुनता रहा और अपना गृह-कार्य करने लगा।
शाम हो गई, पर दो दिन से वीर खेलने नहीं आया। अमन ने सोचा कि कहीं वीर बीमार तो नहीं हो गया। उसे देखने के लिए वह वीर के घर पहुँचा तो देखा, वह अपना स्कूल का काम कर रहा था। अमन ने आवाज लगाईवीर, ओ वीर! खेलने नहीं आओगे। क्या हुआ? तुम दो दिन से बाहर नहीं आए। अमन के बहुत कहने पर वह घर से बाहर निकला।
वीर उस दिन भी काफी उदास था। यह देख अमन बोला, “क्या हुआ वीर, तुम आज खोये-खोये से लग रहे हो। सब ठीक तो है ना?” वीर पहले तो हिचकिचाया फिर उदास स्वर में बोला, “मुझे स्कूल
जाना बिलकुल अच्छा नहीं लगता।” यह सुनकर अमन चौंक गया, “क्या, तुम्हें स्कूल जाना अच्छा नहीं लगता! मगर क्यों? ऐसा मत कहो, हमारा स्कूल जाना तो बहुत जरुरी है। अगर हम स्कल नहीं गये तो हम कछ नहीं सीख पाएँगे। आगे चल कर हमें सफलता भी नहीं मिलेगी। मगर तुम्हें तो पहले स्कूल जाना बहुत अच्छा लगता था। कुछ तो हुआ होगा जिसकी वजह से तुम स्कूल नहीं जाना चाहते हो।” अमन की बातों से वीर को हौसला मिला और कहने लगा, “अमन, तुम्हें तो पता है ना कि मुझे फुटबाल, क्रिकेट खेलना और डांस करना बहुत पसन्द है। उस स्कूल में हमें पढ़ाई के अलावा दूसरी चीजों मे ज्यादा भाग लेने का मौका नहीं देते। जब मैंने यह बात अपनी कक्षाध्यापिका से बताई तो उन्होंने मुझे डांटा और कहा, “अभी तुम छोटी कक्षा में नहीं हो, खेल-कूद छोड़ो, नहीं तो जिन्दगी भर नौकरी नहीं मिलेगी और तुम बेकार कहलाओगे।” मुझे होमवर्क भी इतना ज्यादा देते हैं कि स्कूल से आकर मुझे अपने लिए ज्यादा वक्त ही नहीं मिलता। इस कारण मैं बहुत दुखी हूँ। बस तुम्हारे साथ थोड़ा खेल लेता हूँ तो अच्छा लगता है।” यह सुनकर अमन को भी बहुत दुख हुआ और वह बोला, “अरे! तुम मेरे स्कूल में क्यों नहीं एडमिशन ले लेते। वहाँ के टीचर्स बहुत अच्छे हैं। हमें पढ़ाने के साथ-साथ खेल-कूद और कई मजेदार प्रतियोगिताओं में भी भाग लेने का अवसर भी मिलता है। इसलिए मुझे अपना स्कूल बहुत अच्छा लगता है। अमन की बातें सुन वीर को बहुत अच्छा लगा और उसने सोचा कि वह घर जाकर अपने माँ से बात जरुर करेगा। दोनों बच्चे घर लौट गए।
उस रात खाना खाने के बाद वीर अपनी माँ के पास जाकर उनकी गोद में लेटकर कहानियाँ सुनने लगा। थोड़ी देर बाद जब उसे नींद आने लगी तो वह बोला, “माँ, मुझे आपसे एक बात कहनी है। मुझे अपना स्कूल बिलकुल अच्छा नहीं लगता। क्या आप अमन के स्कूल में मेरा एडमिशन करवा देंगी? अमन ने बताया है कि उसके स्कूल में बच्चों को सिर्फ पढ़ाई-लिखाई ही नहीं, बल्कि खेल-कूद में भी भाग लेने का अवसर मिलता है।” यह सुन वीर की माँ मुस्कराई और बोली, “मैं सोचूँगी। अभी तुम सो जाओ।”
अगले दिन सुबह वीर की माँ ने कहा, “आज शाम को तुम स्कूल के बाद अमन को घर ले आना।” यह सुन वीर बहुत खुश हुआ और वह स्कूल के लिए निकल गया। स्कूल से घर आते वक्त वीर अमन के घर गया और अमन के माता-पिता से इजाजत ली और अमन को अपने घर ले आया।
जब दोनों दोस्त वीर के घर पहुँचे तो खुशी से फूले नहीं समाये। घर गुब्बारों से सजा हुआ था और टेबल पर कई प्रकार के खिलौने और तोहफे रखे हुए थे। यह सब देख वीर ने अपने माँ-पिताजी से पूछा, “पिताजी, आज आपका या माँ का जन्मदिन है क्या?” इस पर वीर के माँ-पिताजी जोर से हँस पड़े फिर कहा, “आज हम तुम दोनों बच्चों को एक सरप्राइज देंगे।” यह कहते हुए वीर के पिताजी ने वीर के नये स्कूल का एडमिशन कार्ड निकाल कर दोनों बच्चों को दिखाया। कार्ड देख वीर इतना खुश हुआ कि सोफे से कूद पड़ा और उसने अमन को जोर से गले लगा लिया।
दो दिन बाद दोनों दोस्त रोज एक साथ स्कूल बस से स्कूल जाने लगे। दोनों बहुत खुश थे। नये स्कूल में वीर पढाई-लिखाई के साथ खेल और दूसरी प्रतियोगिताओं में भाग लेता। जब वह जीतकर आता तो माँ-पिताजी खुशी से भर जाते। उसे स्कूल जाना बहुत अच्छा लगता। अब वह छुट्टी में माँ से पूछता। माँ, रोज-रोज स्कूल क्यों नहीं खुलता?
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
