Hitopadesh ki Kahani : महर्षि गौतम के तपोवन में रहने वाले किसी ब्राह्मण ने एक बार यज्ञ आरम्भ किया। उससे पूर्व उसने किसी अन्य गांव से एक बछिया खरीदी और उसको लेकर वह तपोवन के लिए चला ।
बछिया छोटी थी । इसलिए ब्राह्मण के साथ चलने में उसको कठिनाई हो रही थी । ब्राह्मण ने यह देखा तो उसको अपने कन्धे पर उठा लिया और इस प्रकार उसको लेकर चलता रहा।
ब्राह्मण को इस प्रकार बछिया कन्धे पर लादे देखकर उसी मार्ग से जाने वाले तीन धूर्तों के मन में कपट आ गया था। उन्होंने सोचा कि इस ब्राह्मण से यह बछिया हथियानी चाहिए।
तब उन्होंने कुछ निश्चय किया और उसके अनुसार वे तीनो धूर्त तीन विभिन्न स्थानों पर कुछ-कुछ दूरी पर जाकर बैठ गए। जब वह ब्राह्मण बछिया को लिये पहले धूर्त के समीप से निकला तो उसने कहा, “ब्राह्मण देवता! आपने यह कुत्ता कन्धे पर क्यों लादा हुआ है ? छिः छि, इससे तो आपका धर्म भ्रष्ट हो जायेगा।”
ब्राह्मण बोला, “क्या बकते हो। तुम्हें यह बछिया कुत्ता दिखाई देती है ? मूर्ख कहीं के ।”
उसे मूर्ख बताकर ब्राह्मण आगे बढ़ा। वहां उसको दूसरा धूर्त मिल गया। उसने भी ब्राह्मण को उसी प्रकार कहा कि वह कुत्ता क्यों ले जा रहा है। ब्राह्मण ने उसको भी मूर्ख कहा और आगे चल दिया।
थोड़ी दूर आगे चलने पर ब्राह्मण सोचने लगा कि कहीं मुझे ही धोखा तो नहीं हो रहा है। इसलिए उसने बछिया को कन्धे से उतारा और चारों ओर से उसका भली प्रकार निरीक्षण- परीक्षण किया। जब उसको विश्वास हो गया कि वह बछिया ही है तो वह आगे चल दिया । तदपि उसका चित्त स्थिर नहीं था ।
थोड़ी दूर आगे जाते ही उसको तीसरा धूर्त मिल गया। उसने भी पण्डित जी महाराज को उसी प्रकार धर्म भ्रष्ट होने की बात कही।
ब्राह्मण ने फिर बछिया को नीचे उतार कर देखा-परखा।
यह कथा सुनाकर कौआ बोला, “कभी-कभी दुष्टों की बातों से भी सज्जनों की बुद्धि चंचल हो जाया करती है। जो उन बातों पर विश्वास कर लेता है वह चित्रकर्ण की भांति मर जाता है। “
राजा ने पूछा, ” वह किस प्रकार ?”
“सुनाता हूं महाराज! सुनिए।”
