अथर्ववेद, स्कंद पुराण और वाल्मीकि कृत रामायण में अयोध्या का विस्तृत वर्णन है। इसके विषय में आप पिछले अध्यायों में पढ़ चुके हैं। अयोध्या वर्तमान में सरयू नदी के तट पर स्थित घाटों और मंदिरों की प्रसिद्ध धार्मिक नगरी है। अयोध्या में सरयू नदी के किनारे 14 प्रमुख घाट हैं। इनमें गुप्तद्वार घाट, कैकेयी घाट, कौशल्या घाट, पापमोचन घाट, लक्ष्मण घाट आदि का विशेष महत्व है। राम को भगवान विष्णु का सातवां अवतार माना जाता है। संपूर्ण विश्व के सनातनधर्मियों द्वारा राम की पूजा की जाती है।
महत्व
वर्तमान में अयोध्या उत्तर प्रदेश के जिला फैजाबाद के समीप एक नगर है। इसे साकेत के नाम से भी जाना जाता है। अयोध्या प्राचीन कोसल साम्राज्य की राजधानी हुआ करती थी। ऐसा माना जाता है कि राम का जन्म अवध क्षेत्र के अयोध्या नगर में हुआ था। इस कारण से सनातनधर्मी के लिए अयोध्या सात सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक माना जाता है। स्थानीय मान्यता के अनुसार राम के जन्म स्थान पर एक मंदिर हुआ करता था। इसी मंदिर को मुगल बादशाह बाबर के आदेश से ध्वस्त कर दिया गया था। मंदिर के स्थान पर एक मस्जिद बना दी गई थी।
पुरातत्व साक्ष्य
इसी अयोध्या नगरी में राम को चौदह वर्ष का वनवास मिला और रावण वध के बाद वनवास समाप्त करने के उपरांत राम ने यहां शासन किया। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को उत्खनन के समय यहां एक मंदिर होने के साक्ष्य मिले हैं।
किंवदंती
इतिहासकारों के एक वर्ग के अनुसार अयोध्या शहर को लगभग 9,000 वर्ष पुराना माना जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि इस नगर की स्थापना मनु द्वारा मानी जाती है। इसे ‘अयोध्या’ का नाम दिया था। जिसका अर्थ होता है अ-योध्या अर्थात् ‘जिसे युद्ध के द्वारा प्राप्त न किया जा सके। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेन त्सांग सातवीं शताब्दी में यहां आया था। उसके अनुसार यहाँ 20 बौद्ध मंदिर थे तथा 3000 भिक्षु रहते थे।
राजा आयुध
इतिहासकारों का एक वर्ग अपुष्ट स्रोतों से बताते हैं कि अयोध्या नगर की स्थापना आयुध नामक एक राजा ने की थी। उसी के नाम पर इस नगर का नाम अयोध्या पड़ा। यह आयुध नामक राजा किस राजवंश से संबंधित था, इस विषय में कोई भी साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं। आयुध नामक राजा ने कब शासन किया इसकी भी पुष्टि नहीं हुई है। एक आयुध राजवंश का उल्लेख इतिहास में मिलता है। इस राजवंश ने कन्नौज पर शासन किया था। ऐसा उल्लेख मिलता है कि कन्नौज पर आयुधों ने कब्जा कर लिया था। इतिहासक्रम में यह घटना 8वीं-9वीं शताब्दी की है।
अन्य साक्ष्य
स्कंद और अन्य पुराणों में अयोध्या को प्रतिष्ठित शहरी समुदायों में से एक के रूप में माना जाता है। अथर्ववेद ने अयोध्या को एक ऐसे शहर के रूप में चित्रित किया है जो भगवान द्वारा बनाया गया है और स्वयं स्वर्ग के रूप में समृद्ध है।
इसका आरंभिक प्रशासक शासक इक्ष्वाकु था। जो सूर्योन्मुख परिवार सूर्यवंश का था और वैवस्वत मनु का सबसे बड़ा पुत्र था। इस वंशवृक्ष के छठे स्वामी पृथु, ध्वन्यात्मक रूप से पृथ्वी की व्युत्पत्ति मानी जाती है। मांधात्री भी शासक थे। उनके शासन के 31वें स्वामी हरिश्चंद्र थे। वह अपनी ईमानदारी, सत्य-संधाता के लिए जाने जाते थे। राजा सगर ने यहां अश्वमेध यज्ञ किया था। लोककथाओं के अनुसार उनके विश्वसनीय पोते भागीरथ ने पश्चाताप के माध्यम से जलमार्ग गंगा को पृथ्वी पर पहुंचाया। कालांतर में राजा रघु हुए। जिनके नाम पर यह राजवंश रघुवंश कहा गया। उनके पोते कौशल प्रशासन के राजा दशरथ और राम के पिता थे।
राम जन्मभूमि
राम की जन्मभूमि माना जाता है। अयोध्या में राम मंदिर हमेशा सनातन धर्मावलंबियों के लिए प्रमुख रहा है। राम के मंदिर के निर्माण के विषय में अनेक कथानक मिलते हैं। इनकी ऐतिहासिक पुष्टि नहीं होती। विभिन्न ग्रंथों में उल्लेख मिलता है।
कुश द्वारा निर्मित मंदिर
ऐसी मान्यता है कि राम के जल समाधि लेने के बाद अयोध्य धीरे-धीरे उजड़ती जा रही थी। राम जन्मभूमि पर बना महल वैसा ही था। राम के पुत्र कुश ने अयोध्या को पुनर्निर्माण किया। इसके बाद सूर्यवंश की 44 पीढ़ियों ने यहां पर शासन किया। सूर्यवंश के आखिरी राजा महाराजा बृहद्बल तक राम जन्मभूमि की देखभाल होती रही।
विक्रमादित्य ने खोजी अयोध्या
महाभारत युद्ध के दौरान सूर्यवंश के आखिरी राजा महाराजा बृहद्बल की मृत्यु अभिमन्यु के हाथों हुई। इसके बाद भी पूजा-पाठ का कार्य जारी रहा। कालातंर में मंदिर तो बना रहा लेकिन अयोध्या का धीरे-धीरे उजड़ती गई। इतिहासकारों के अनुसार सम्राट विक्रमादित्य ने राममंदिर का निर्माण करवाया।
विक्रमादित्य और चमत्कार
ईसा के लगभग 100 साल पहले उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य एक टहलते-टहलते अयोध्या पहुंच गए थे। जब वह थक गए तो उन्होंने सरयू नदी पर एक पेड़ के नीचे विश्राम किया। तब उनको वहां पर कई चमत्कार दिखाई दिए। उस वक्त तक अयोध्या में कोई बसावट नहीं बची थी। केवल जंगल था। तब विक्रमादित्य ने खोज शुरू की तब साधु-संतों से पता चला कि यह राम की जन्मस्थली है।
विक्रमादित्य द्वारा राम मंदिर
सम्राट विक्रमादित्य ने भव्य राम मंदिर निर्माण के साथ-साथ सरोवर, महल, कूप आदि कई विकास के कार्य किए। विक्रमादित्य के बाद कई राजाओं ने मंदिर की देखभाल करते रहे और पूजा-पाठ का कार्य जारी रहा।
पुष्यमित्र द्वारा मंदिर का जीर्णोद्धार
इसके बाद शुंग वंश के प्रथम शासक पुष्यमित्र ने राम जन्मभूमि पर बने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। पुष्यमित्र को अयोध्या से एक शिलालेख मिला। जिसमें पता चलता है कि अयोध्या गुप्तवंशीय चंद्रगुप्त द्वितीय की राजधानी रही थी। साथ ही उस समय के कालिदास ने भी कई बार अयोध्या के राममंदिर का उल्लेख किया है। उसके बाद अनेक राजा-महाराजा आए और राम मंदिर की देखभाल करते रहे।
बौद्ध केंद्र के रूप में हुआ विकसित
इतिहासकारों के अनुसार 5वीं शताब्दी में अयोध्या बौद्ध केंद्र के रूप में विकसित हुआ। यहां पर आदिनाथ सहित 5 तीर्थकारों का जन्म हुआ। तब इसका नाम साकेत हुआ करता था। 5वीं से लेकर 7वीं शताब्दी तक यहां पर कम से कम 20 बौद्ध मंदिर थे। उनके साथ हिंदुओं का एक भव्य मंदिर भी था।
जयचंद
11वीं शताब्दी में कन्नौज के राजा जयचंद ने मंदिर से सम्राट विक्रमादित्य का शिलालेख हटवाकर अपना नाम लिखवा दिया।
सिकंदर लोदी
सिंकदर लोदी के शासनकाल के दौरान भी भव्य राममंदिर था।
मंदिरों का विध्वंस
पानीपत के युद्ध के दौरान राजा जयचंद की मृत्यु हो गई और उसके बाद बाहर से कई आक्रमणकारी आए और उन्होंने अयोध्या समेत, मथुरा, काशी पर आकम्रण कर दिया और मंदिर को तोड़ा गया। 14वीं शताब्दी तक वह अयोध्या में बने राममंदिर को तोड़ नहीं पाए।
मुगल
14वीं शताब्दी के बाद मुगलों का अधिकार हो गया। सन् 1527-28 के दौरान भव्य राममंदिर को तोड़कर उसकी जगह मस्जिद बना दी गई।
आधुनिक मंदिर
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए एक लंबी कानूनी लड़ाई उत्तर प्रदेश के उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में लड़ी गई। उच्चतम न्यायालय ने राम मंदिर और मस्जिद के लिए अलग-अलग स्थान निर्धारित कर अंतिम फैसला सुनाया। भारत के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर 5 अगस्त, 2020 को राम मंदिर निर्माण का कार्य फिर से शुरू हुआ।

विश्व में मंदिर निर्माण की परंपरा कब शुरू हुई इसके कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। यही स्थिति भारत की भी है। भारत में पहला मंदिर कब, कहां, किसने और किस देवता या देवी को समर्पित किया यह सुनिश्चित नहीं है। यह भी स्पष्ट नहीं है कि पहला मंदिर देवता का था या देवी का। शिवलिंग स्थापित करने का उल्लेख तो मिलता है किन्तु शिवलिंग स्थापित करने के बाद कोई ढांचा खड़ा किया गया था इस विषय में कोई उल्लेख किसी भी प्राचीन ग्रंथ में नहीं मिलता। पुरातत्वविदों को उत्खनन में शिवलिंग या अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां तो प्राप्त होती है लेकिन किसी भवन के अवशेष नहीं मिलते। यहां तक कि सिंधु घाटी सभ्यता के जितने भी नगरावशेष मिले हैं वहां भी किसी मंदिर या देवस्थल के अवशेष नहीं मिले हैं। उल्लेखनीय है कि प्राचीन सभ्यताओं के अधिकांश अवशेष उत्तर औरॉ पश्चिम भारत में मिले हैं जबकि मंदिरों की लंबी श्रृंखला दक्षिण भारत में।
