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भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

वे कई सारे थे। कुछ बाइक पर, कुछ जिप्सी पर। वे तेजी से आये। अचानक रुके। अचानक उतरे। झुण्ड में तब्दील हुए। वे नौजवान थे। ऊँचे, लम्बे, अच्छी कद-काठी। जिम में तराशे हुए शरीर। पार्लरों में सँवारे हुए बाल। आँखों पर काले चश्मे। चेहरे पर ताजगी। जोश। तपिश। ठहाके। रंगीनियाँ। वे फुर्सत में थे और उसी फुर्सत को सेलीब्रेट करने आये थे। उनके अपने तौर तरीके थे। अपने स्टाइल। जिप्सी पर म्यूजिक सिस्टक दहाड़ रहा था। वे खाली होने के बावजूद खाली नहीं थे। एक्शन में थे। कोक पीते, नाचते, गाते, सीटियाँ बजाते, जिप्सी से उतरते, बाइक पर चढ़ते, सड़क पर लेटते, विचित्र मुद्राएँ बनाते।

उन्होंने अपने बाइक दायरे की शक्ल में खड़े किये थे। और दायरे के भीतर वे नौजवान थे। नो-एन्ट्री का बोर्ड था। वे अपने में मग्न थे। आसपास के लोग उनकी उपस्थिति से भौंचक थे। भौंचक और कुछ हद तक लुत्फभरी नजरों से ताक रहे थे। उनकी भीतर की दुनिया को। जो नौजवानों की वाइल्ड सेंक्चुरी थी। उस दायरे में एक अजनबी घुसने लगा। उनमें से एक ने बोर्ड उठाकर दिखाया। बोर्ड में ऊटपटाँग हिन्दी थी, लिखा था- हमारे रक्षित प्रदेश में आना मना है। अजनबी समझदार था, जिरह के अंजाम जानता था। चुपचाप एक अदद सॉरी कहता, रास्ता बदलकर चला गया।

नाच में जरा-सी रुकावट आयी। लेकिन इस जरा-सी रुकावट के तुरन्त बाद सब सामान्य हो गया।

शुरू-शुरू में इस बाजार के दुकानदार उनकी आमद पर थोड़ा बहुत हड़बड़ाये थे। लेकिन जल्दी ही उनके चेहरों पर पेशवराना मुस्कान लौट आयी थी। म्यूजिक सिस्टम पर रॉक रेप बज रहा था। कभी-कभी दुकानदार भी अपना एक पाँव उठाकर उस संगीत के साथ अपना ताल ठोकने लगते। वे शायद यह एहसास करा रहे थे कि इस रियेटिक माहौल को वे भी इंजाय कर रहे हैं।

ये नवम्बर के शुरूआती दिन थे। सुबह खशगवार थी। हल्की हवा, ताजगीभरा माहौल, थोड़ी दूरी पर वाहनों की आमदरफ्त, इधर काफी खुला बाजार, दूर तक रेलिंग, रेलिंग के परे चार मंजिला इमारत, इमारत में दुकानें, भरी-भरी, लोगों का हुजूम खरीदारी करता, खाता-पीता, …गुजरते लोग हैरत से देखते, कुछ वाक्य उभरते-फेंटेस्टिक। और फिर आगे निकल जाते। लड़कियों को देखकर नाचते हुए नौजवान थोड़ा ठिठकते। हाय बेबी। चिल्लाते। हाथों को होठों से छुआते। उन्हें हवा में लहराते। लड़कियाँ सहमकर, सिहर कर, कनखियों से देखकर, जरा-सा मुस्कराकर, थोड़ा फासला बनाकर निकल जातीं। कुछ मॉडर्न लड़कियाँ तो वहाँ जरा रुकी भी थीं। एक ने चकित और द्रवित होते हुए कहा-इट्स स्टाइल। दूसरी ने हँसते हुए सिर हिलाया और वे आगे बढ़ गयी।

दुकानदार यह तमाशा देखकर पुलकित थे। नाच जारी था। माहौल में और युवकों की मुद्राओं में तपिश थी। वातावरण मादक। अलमस्त।

नाच कुछ पल के लिए रुका। कोक की आधी खाली बोतलों में उन्होंने रम भरी। बोतलों के मुँह में उँगली डालकर उन्हें अच्छी तरह से हिलाया। दोनों रसायन एक-दूसरे में जज्ब हो गये। और फिर वे उसे अपने में जज्ब करने लगे। सबने ढेर सारे लम्बे-छोटे चूँट भरे। बोतलें वहीं रखकर जिप्सी से ईंटें निकाल लाये। ईंटों को उन्होंने सड़क पर जमाया। ईंटों के छोटे-से फर्श पर उन्होंने पानी छिड़का। फिर जिप्सी से सॉफ्ट कोक (कोयला) निकाला। ईंटों पर रखा। फैलाया। केरोसिन डाला। जलाया। भड़काया। अब वे सुर्ख अंगारे थे।

सामने के दुकानदार तथा रास्ते से गुजरने वाले हैरान थे कि ये नौजवान अंगारों का क्या करेंगे? कुछेक ने समझा कि वे इस पर भुट्ट भूनेंगे। कुछेक ने कहा कि खाना गर्म करेंगे।

रेलिंग के उस पार जो सिपाही खड़ा था, वह भी हैरान था। उसने कई सारी बीड़ियाँ फंक डाली थीं। इन नौजवनों की मसरूफियत देखकर वह कई बार मन ही मन मुस्काराया था। लेकिन कई बार झुंझलाया भी था। हर झुंझलाहट के बाद वह बीड़ी निकाल लेता। सुर्ख अंगारों को देखकर वह भी हैरान था। ये अलग बात कि नौजवानों को नाचते हुए, हुडदंग मचाते हुए और बोतलों में रम डालकर पीते हुए देखकर उसे जरा भी हैरानी नहीं हुई थी। लेकिन ये सुर्ख अंगारे।

एक नौजवान ने बोतल रखी और जिप्सी से एक जीवित मुर्गा निकाल लाया। मुर्गा फड़फड़ाया। नौजवान हँसा। बाकी नौजवान भी हँसे। पता नहीं, मुर्गा एक चुटकुला था या फिर फड़फड़ाहट! नौजवान ने जेब से बारीक तार निकाला। और मुर्गे को तार से कस दिया। इतना कसा कि वह पर फैलाना तो दूर, अपने आपमें हिल-डुल भी नहीं सकता था।

नौजवान मुर्गे को हाथ पर रखकर खिलखिलाया। और फिर अचानक से उसने मुर्गे को सुर्ख अंगारों पर पटक दिया। मुर्गे में जुम्बिश पैदा हुई। वह छटपटाया और उछलकर परे जा गिरा। नौजवानों ने रमकोला के चूट गले में उतारे और मुर्गे के करतब पर हँसे। एक ने मुर्गे को फिर अंगारों पर पटक दिया। मुर्गे ने फिर अपने भीतर की ताकत को इकट्ठा किया। अंगारों से उछल कर परे जा गिरा। फिर खनखनाते ठहाके।

दकानदार और उधर से गजरते लोग फटी नजरों से उस मंजर को देखने लगे। सबके सब स्थिर प्रज्ञ थे। एक तिलिस्म था, जिसमें सब बँधे थे। एक सम्मोहन पूरे माहौल पर हावी था। म्यूजिक सिस्टम पर बजते हुए ड्रम्स की आवाजें। मुर्गे की दबी-घुटी गुर्र-गुरी। कहकहे। रमकोला का तरल! नाच! मस्ती एक झूम और उस झूम में सब शामिल!

मुर्गा कुछ देर तक अपने अस्तित्व की लडाई लडता रहा। उछल-उछलकर गिरता रहा। लेकिन कुछ देर बाद वह हार गया। उसमें खुद को बचाने की ताब खत्म हो गयी। शक्ति चूक गयी। अब वह वहीं अंगारों पर पड़ा हिलता-डुलता रहा। कसमसाता रहा। उसके सफेद पंख झुलसने लगे। छोटी-छोटी गोल आँखों में पानी तैरने लगा। धीरे-धीरे पानी सूख गया। कलंगी झुलस गयी। पंख काले स्याह हो गये। एक अजीब-सी गन्ध माहौल में फैल गयी।

मुर्गा पूरी तरह भूना जा चुका था। एक ने बढ़कर उसे चिमटे से पकडकर उतारा। तार खोला और मुर्गे को छीलने लगा।

दूसरा नौजवान जिप्सी में से एक और जीवित मुर्गा उठा लाया। वह पहले वाले से ज्यादा तगड़ा था लेकिन पहले वाले से ज्यादा मजबूती से बँधा था। उस नौजवान ने मुर्गे को अंगारों पर रखने से पहले पुचकारा। उस पर अपने हाथ फेरता रहा। मुर्गा अपनी नन्हीं आँखों से नौजवान को देखने लगा था। पहले वह गुर्र-गुर्र कर रहा था। लेकिन इस स्पर्श-सुख को पाकर वह चुप हो गया था।

अचानक नौजवान ने मुर्गे को आसमान की ओर उछाल दिया। गेंद की तरह! बँधा हुआ मुर्गा आसमान की ओर कुछ दूर जाकर लौट आया। तड़-से जमीन पर गिरा। गिरने के बाद कसमसाता रहा। कई सारी आवाजें निकलीं। वे अजीब आवाजें थीं, बाँग से अलग। उसकी कलंगी में कम्पन था। चोंच से रिसता हुआ खून। वह पड़े-पड़े हिलने लगा तो एक नौजवान हँसते हुए बोला-वैरी सॉरी माई डीयर फ्रेंड! दर्द हो रहा है। लो थोड़ी-सी रम पी लो। और फिर उसने रम की बोतल का मुँह मुर्गे की चोंच में घुसेड़ दिया। और बहुत सारी रम उसमें उड़ेल दी। मुर्गा मुछित-सा होने लगा था। नौजवानों को उसका मूच्छित होना अच्छा नहीं लगा था। वे खुद भी एक्शन में रहना चाहते थे और मुर्ग को भी एक्शनफुल रखना चाहते थे।

उन्होंने मुर्गे को उठाया और सुर्ख अंगारों पर रख दिया। मुर्गा अब सचमुच एक्शन करने लगा था। उसकी आँखें झपक रही थीं। नशा हावी था। अंगारों पर पड़ा उसका शरीर झुलस रहा था। वह वहीं पड़े-पड़े कलाबाजियाँ खा रहा था। खुद को बचाने की उसने कुछ आखिरी कोशिशें कीं। कुछ पलटियाँ खायीं। …नौजवान नाच रहे थे। सुर्ख अंगारों पर पड़ा मुर्गा भी एक तरह से ‘नाच’ रहा था। और नौजवान मुर्गे के इस ‘नाच’ पर रोमांचित थे। मुर्गा धीरे-धीरे अंगारों को समर्पित हो गया। और इस तरह से नौजवानों ने बहुत सारे मुर्गों को अंगारों पर नचाया। मुर्गों का अंगारों पर कसमसाना उन्हें ‘सर्कस’ नजर आता। वे कहकहाते। तालियाँ बजाते।

मुर्गे रोस्ट हो चुके तो उन्हें फिर साफ किया गया। मुर्गों के अधकच्चे, अधपक्के मांस पर नमक छिड़ककर वे चबाने लगे। उनके कोलगेटी, दाँतों में मुर्गे-मुसल्लम के टुकड़े थे। माथे पर पसीने की छोटी-छोटी बूंदें! चेहरों पर फैलती सख्ती!

जिप्सी में फिट म्यूजिक-सिस्टम पर अब कोई कबीलाई संगीत बजने लगा था। अजीब-सी हुंकारे। मोटी भद्दी आवाजें। अन्धड़ चलने जैसा शोर। डफ की काँपती आवाज। गीत में गाने, हँसने, रोने के स्वर!

“क्या इमेजरी है?” दूर खड़े एक आदमी से दूसरे से कहा। दूसरे ने ठण्डी साँस लेते हुए जवाब दिया-“दबंग होकर जीने का अपना लुत्फ है। और ये सब वही लुत्फ उठा रहे हैं।”

दूर, रेलिंग से परे खड़ा सिपाही अपनी बीड़ी बदल चुका था। बल्कि जहाँ खड़ा था, वहाँ से सरककर थोड़ा और दूर चला गया था। गश्त पर निकले दो सिपाही इन नौजवानों को देखकर ठिठके। जायजा लेने लगे। रम की लुढ़की हुई खाली बोतलें, मुर्गे के पंख नुची हुई हड्डियाँ, नशे में नाचते नौजवान कबीलाई संगीत से निकलती कई खौफनाक आवाजें। बस यही सब था। सिपाहियों ने इधर-उधर देखा। कुछ नौजवानों को सिपाहियों का खड़े होना बे-लज्जत करने लगा था। उन्होंने कोक की बोतलों को तोड़कर उनके आधे हिस्से को हथियार जैसा बनाकर अपने हाथों में रख लिया था। सिपाही जमानासाज थे और मौका शनास भी। वे अपने-अपने बेंत खटखटाते मौज करो! मौज करो! की टेर देते आगे निकल गये।

यहाँ उन्हें सब सामान्य, साफ-सुथरा, पाक-साफ नजर आया था। जो खराब लगा था, वह था खोमचेवाला, जो पीतल के देगचे में उबले हुए मटर बेच रहा था। सिपाहियों ने उसके खोमचे को लुढका दिया। वह जरा-सा बोला तो उसकी टाँगों पर चार-पाँच बेंत जमा दिये। वह बिलबिला उठा। वे आगे चले गये किसी दूसरे खोमचेवाले को दुरुस्त करने…।

नौजवान अब खुलने लगे थे। सबसे पहले उन्होंने दायरे को तोड़ा। बाइक इधर-उधर खडे कर दिए। नो एंटी का बोर्ड उठाकर जिप्सी में डाला। अब वे अपने रक्षित क्षेत्र की लकीरों को मिटा चुके थे। लेकिन नाच अब भी रहे थे। नशा हावी था। उनमें गर्मी थी, खुमारी और मादकता भी। एक को पेशाब की हाजत हुई। उसने जरा इधर-उधर देखा। फिर एक बाइक के पास जाकर पैंट की जिप खोली और वहीं…

आसपास के लोग भौचक-से देखते रहे। बीड़ी पीता सिपाही और परे चला गया। लड़कियाँ बुरा-सा मुँह बनाकर, घबराकर दूर से निकलने लगीं। एक दकानदार ने दसरे से कहा-आजकल के नौजवानों को जरा भी शर्म-लिहाज नहीं। फिर वह हँसने लगा। दूसरा दुकानदार भी उसके साथ हँसने लगा। दोनों को हँसता देखकर तीसरा दुकानदार उनके पास आया और वह भी हँसने लगा।

वह नौजवान पेशाब कर चुका तो दूसरे न उसी जगह पेशाब किया। फिर तीसरे ने। फिर चौथे ने। फिर…। पाँचवाँ पेशाब करने लगा तो एक नौजवान उसे देखकर चौंका-इट्स डिफरेंट! फिर एक नशीला ठहाका गुबारे-सा फूट पड़ा!

वे फिर नाचने लगे। अब उन्हें अकेले नाचने में मजा नहीं आ रहा था। ऐसा लगता था, वे अपने इस सुख से ऊबने लगे हैं। इस ऊब को मिटाने के लिए एक नौजवान ने झटके के साथ पास से गुजरती एक लड़की को पकड़ लिया। लड़की डर गयी। वह उसके चंगुल से खुद को मुक्त कराने की भरसक कोशिश करने लगी। दुकानदार जस के तस खड़े थे। दोनों सिपाही दूर चले गये थे और तो और बीड़ी फंकता सिपाही किसी ओट में।

इस बीच युवक कोक की बोतल बदलकर उसमें रम डालने लगा। लड़की के लिए यही मौका था जिसका उसने भरपूर फायदा उठाया और वह भाग खड़ी हुई। वह इतनी तेज भागी कि उसने पीछे मुड़कर भी नहीं देखा था। उसे बहुत बाद में पता कि वह अपना दुपट्टा वहीं छोड़ आयी है।

युवक के हाथ में खाली दुपट्टा था। उसके दूसरे नौजवान साथी उसका मखौल उड़ा रहे थे। वह हिंसक नजर आने लगा था। उसने कोक की बोतल को वहीं फेंका और एक दूसरी लड़की पर झपट पड़ा। लड़की को उसने दबोच लिया। लड़की तन्दरुस्त थी और हिम्मती भी। उसने अपना एक हाथ नौजवान से छुड़ाया और एक जोर का थप्पड़ उसके गालों पर दे मारा। नौजवान बौखला गया। उसने लडकी को बाजओं में जकड लिया। लडकी चीख पड़ी-छोड़ मुझे बास्टर्ड। नौजवान बेशर्म हँसी हँसा। फिर उसके साथ नाचने की कोशिश करने लगा। दूसरे नौजवान ताल ठोकने लगे-लिटल बेबी, डांस, डांस! लड़की ने फिर अपने आपको मुक्त कर लिया था और फिर एक थप्पड़ नौजवान के गालों पर। इस बार थप्पड़ जोर से नहीं पड़ा था। नौजवान को गुस्सा खूब आया। उसने दूसरे नौजवान को संकेत दिया। वह जिप्सी में से आइसक्रीम के कप उठा लाया। नौजवान ने आइसक्रीम को अपने हाथों में भर लिया। क्रूरता से लड़की के ब्लाऊज के पास ले जाकर टपकाने लगा। लड़की सिहर उठी। दुकानदार बेचैन होकर दुकानों के भीतर चले गये। वह कुछ देर तक इस खेल में मशगूल रहा। और फिर बाकी बची आइसक्रीम को वह लड़की के ब्लाऊज के अन्दर ले गया और…

लड़की गिर पड़ी। खुद को सँभालते हुए उठी। साड़ी के पल्लू में खुद को छुपाती, सिमटी, सिसकती चली गयी….

नाच अब भी जारी था। ठहाके अब भी फूट रहे थे। बोतलें खाली हो चुकी थीं। दिन चढ़कर ढलने लगा था। मुर्गे के पंख हवा में इधर-उधर भटकने लगे थे।

वे रमकोला के आखिरी पूँट भर रहे थे। कुछ इशारे हुए और वे पैकअप करने लगे। पैकअप करते-करते उनमें से एक बोला-“मजा नहीं आया।” …. आफकोर्स! समथिंग थ्रिलिंग थ्रिलिंग! दूसरे ने सहमति जतायी।

वे बाइक पर सवार हो चुके थे। बाइक स्टार्ट थी। जिप्सी भी स्टार्ट थी। उन सबके रुख मेन रोड़ की ओर थे। पता नहीं, क्या बात थी कि वे चल नहीं रहे थे।

इस बीच एक युवक अपनी पत्नी को अपनी मोटर साइकिल पर बिठाकर उधर से गुजरा। मालूम नहीं उस नवविवाहिता स्त्री में उन्होंने क्या देखा कि मोटर साइकिल ज्योंही धीमी हुई, नवविवाहिता को उन्होंने झपटकर खींचा, उठाया और जिप्सी में डाल दिया। मोटर साइकिल पर बैठा युवक पलभर के लिए समझ ही न पाया कि यह क्या हो रहा है। जब अपने अवचेतन से लौटा तो जिप्सी और बाइक स्टार्ट होकर आगे निकल चुके थे। वह अकबकाया-सा इधर-उधर देखने लगा। उसने अपनी पत्नी को छटपटाते, चीखते-कराहते हुए देखा था। नौजवानों के हिंसक रुख देखे थे। नृशंस रूप देखे थे। वह एक क्षण के लिए सोचता रहा, कोई सहायता के लिए आयेगा। लेकिन आसपास के लोग दहशत में थे। चुप और जड़! माहौल में सनसनी थी और वीरानी! दुकानदार अपनी दुकानों के भीतर चले गये थे। सिपाही ओट में, लोग खोल में…

नौजवान पिकनिक का पूर्वार्द्ध मना कर उत्तरार्द्ध मनाने जा रहे थे।

नौजवान ने अपनी मोटर साइकिल उनकी जिप्सी के पीछे लगा दी थी। आगे वे सब थे, पीछे अकेला नवयुवक! वे सड़कों पर अपने वाहन दौड़ा रहे थे। उनके हौसले बुलन्द थे। वे डरे हुए नहीं थे बल्कि इत्मिनान में थे। वे सड़कें बदल रहे थे ताकि मोटर साइकिल वाला नवयुवक गच्चा खा जाये। लेकिन वह अब भी उनके पीछे था। कुछ देर बाद एक पुलिस जिप्सी ने उन्हें रोकना चाहा तो वे उसकी परवाह किए बगैर आगे निकल गये। अब पुलिस की जिप्सी भी उनके पीछे थी। थोड़ी देर बाद एक और पुलिस जिप्सी उनके पीछे लग गयी और इस तरह दो पुलिस जिप्सियों ने करीब बीस मिनट बाद उन पर काबू पाया। बीस मिनट के इस ‘थ्रिलर’ में युवती के हाल बुरे हो चुके थे। उसके चेहरे पर बहुत सारे निशान थे। ब्लाऊज आधा फटा हुआ। होंठ कटे हुए। बाल बिखरे और आँखों में खौफ! पुलिस ने युवती को मुक्त कराया। वह अचेत हो चुकी थी।

नौजवान गुस्से में थे। वे पुलिस जिप्सी से भिड़ चुके थे कि उन्हें बेवजह क्यों रोका गया। पुलिस स्टेशन में वे नौजवान इस नाजो अन्दाज में जा रहे थे, जैसे किसी कल्चरल कार्यक्रम से निपटने के बाद पुलिस स्टेशन की इंस्पेक्शन करने जा रहे हों। नौजवान एस.एच.ओ. की टेबल के पास बिछी कुर्सियों पर बैठ गये थे। उनके चेहरे अब भी तमतमाये हुए थे।

जिसकी पत्नी को ये नौजवान उठा लाये थे, वह खड़ा हुआ था-परेशान हाल। घबराया। गुस्से और दुख के बीच कहीं अटका हआ। उसकी पत्नी को अब होश आ चुका था लेकिन वह निढाल और बीमार नजर आती थी। वह दबी-घुटी-सी बैठी थी। आँखें पनियाई हुई। कभी वह दीवार को ताकने लगती, कभी फर्श पर नजरें गड़ा देती। नवयुवक ने उसे अपनी कमीज पहना दी थी।

नवयुवक बार-बार आग्रह कर रहा था कि एफ.आई.आर. दर्ज की जाये। लेकिन एस.एच.ओ. टाल रहा था। कभी उसका पैन गुम हो जाता तो कभी रोजनामचा।

एस.एच.ओ. की टेबल पर पड़े हुए फोन को नौजवनों ने इस जुर्रत से अपनी ओर सरकाया और इस ठाठ से फोन करने लगे, जैसे फोन उनका निजी हो और पुलिस स्टेशन उनकी अपनी प्राइवेट कम्पनी!

कई जगह फोन हुए। घंटिया बजी। फोन आये। फिर कई सांकेतिक और खुली बातें। कई सारे गणित। समीकरण। पुलिस स्टेशन दुकान में तब्दील हो गया। फिर कई सारे मोतबर और सफेदपोश लोग अपनी गाड़ियों से उतरे, पुलिस स्टेशन अवतरित हुए। कोल्ड ड्रिंक्स। चाय। कॉफी। बिस्कुट!

थोडी दर दीवार के साथ सटे बेंच पर नवयुवक और उसकी पत्नी बैठे थे। एस.एच.ओ. ने काफी देर बाद सादे कागज पर रिपोर्ट लिखी और रोबीली आवाज में कहा-“मिस्टर रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए कह रहे थे न, रिपोर्ट तैयार कर ली है। इसे पढ़ लीजिये और दोनों औरत, मर्द इस पर दस्तखत कर दो! मैडम से कहो पहले वो दस्तखत कर दें।”

युवती बेचैन थी और उकताई हुई। वह जल्द से जल्द रिपोर्ट दर्ज करा कर जाना चाहती थी। युवती उठी। दर्ज की गयी रिपोर्ट पढ़ने लगी-जिप्सी पर जाते नौजवानों से लड़की ने खुद लिफ्ट माँगी। नौजवान, चूँकि खानदानी शरीफ और मददगार इंसान थे, और मदद करना अपना फर्ज समझते थे। चुनाँचे, मोहतरमा को उन्होंने जिप्सी में जगह देना मंजूर कर लिया। लेकिन तेज रफ्तार जिप्सी के साथ एक हादसा हो गया। वो एक रास्ते में पड़े पत्थर से टकरायी और बाद में अचानक ब्रेक लगने से मोहतरमा अपना तवाजुन खो बैठी और जिप्सी की भीतरी बाडी से उनका चेहरा टकरा गया। चेहरे पर थोड़ी बहुत खराशों के अलावा कोई दूसरा जिस्मानी नुकसान नहीं हुआ। मोहतरमा पूरी होशो-हवास में है। इस हादसे की ताईद और जानकारी के लिए उनके मर्द को भी बुला लिया गया है। दोनों ने इस बात को माना है कि नौजवनों का सलूक निहायत शरीफाना और बा-अदब था।

“यहाँ दस्तखत कर दीजिये।”

कागज पर उँगली रखते हुए कहा।

“नहीं, यह झूठ है।”

“यह सच है।”

“नहीं, मैं यहाँ साइन बिलकुल नहीं करूंगी, यह रिपोर्ट बकवास है, एकदम झूठ।”

“मैडम।” एस.एच.ओ. समझाने वाले लहजे में बोला-‘झूठ तो यह भी है कि तुम्हारा मर्द अफीम नहीं बेचता। लेकिन हम उसे सच में बदलने की तरकीब जानते हैं। वैसे मामला रफा-दफा करने के लिए रिपोर्ट लिखी गयी है। बाद में इसे हम फाड़ भी देंगे। मामला खत्म हो जायेगा।”

“लेकिन मैं मामला खत्म नहीं करूँगी।”

“हम जानते हैं आप बहुत समझदार हैं। तभी तो हम आपसे यहाँ साइन करने के लिए कह रहे हैं।”

“मैं साइन नहीं करूँगी।” युवती तिड़क कर बोली।

“मैडम।” अबकी बार उन नौजवनों में से एक उठते हुए बोला-‘इस पर चुपचाप साइन कर दो। नहीं तो तुम्हारे जिस्म के नाजुक हिस्सों पर इतने साइन करेंगे कि…

लड़की काँप गयी। काँप तो उसका पति भी गया था। उसने मेज से पेन उठाकर पत्नी को देते हुए कहा-प्लीज यहाँ साइन कर दो।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’