natakhat pankaj
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भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

पंकज बेहद शैतान और नटखट बालक था। लोग उसकी शैतानियों से बेहद परेशान थे। ऐसा कोई दिन नहीं होता था, जब लोग उसकी शिकायत लेकर न आते हो। पंकज को स्कूल जाना बिलकुल पसंद नहीं था इसलिए स्कल न जाने के तो वह हमेशा ही कोई न कोई बहाना बनाता। सबह उठते ही रोनी सूरत बनाकर माँ से कहता- माँ! माँ! क्या करूँ? आज मेरे सिर में बहुत दर्द है। कभी पेट पकड़ कर पेट दर्द का बहाना बनाकर रोने के ढोंग करता। माँ उसके बहाने के बारे में जानती थी, पर उसे कभी प्यार से तो कभी डाँटकर तैयार करके जैसे-तैसे स्कूल भेज ही देती थी। यह बात पक्की थी कि जब भी वह स्कूल जाता तो कुछ ऐसा करता, जिससे उसकी शिकायत जरूर आती।

ऐसा नहीं था कि पंकज पढ़ाई में ठीक नहीं था। वह बहुत बुद्धिमान था और जरुरत से ज्यादा आत्मविश्वासी भी था। उसे लगता था कि अगर परीक्षा के समय पढ़कर अच्छे अंक प्राप्त कर सकता है तो सालभर पढ़ने की क्या जरूरत है? इसलिए वह पढ़ाई-लिखाई से सदा दूर भागता रहता था। उसका सबसे करीबी दोस्त राजन था। उसे हर दिन का काम पूरा करने की सलाह देता। यहाँ तक कि अपना गृह कार्य पूरा करके पंकज का काम करने लग जाता था।

वह अकसर पंकज से कहता- पंकज, तू इतना तेज है तो अपना काम समय पर क्यों नहीं करता है? तू मेरा सबसे अच्छा दोस्त है। तुझे इस तरह रोज-रोज डांट खाते देखकर मुझे बुरा लगता है। अपने दोस्त की बातों का पंकज पर कोई असर नहीं होता, उलटा वह लापरवाही से जबाव देता- मैं रोज-रोज पढ़ाई करूँ या न करूँ, मुझे अच्छे अंक तो मिल ही जाते हैं। लिखने में मैं क्यों समय बरबाद करूँ? तुम लोगों को ज्यादा मेहनत करने की जरुरत है।

एक दिन अचानक कक्षा में अध्यापिका ने कहा- बच्चों, परीक्षा नजदीक आ रही है। उससे पूर्व सबकी कॉपियों की जाँच होगी और उस पर अंक भी दिए जाएँगे। जिन बच्चों के काम पूरे नहीं है, उन्हें अंक नहीं दिए जाएंगे।

यह सुनकर पंकज परेशान हो गया क्योंकि उसने तो कुछ लिखा ही नहीं था। वह सोचने लगा कि कैसे सब काम पूरा किया जाए? इतने कम समय में परा काम समाप्त करना नाममकिन था। वह मन ही मन सोचने लगा और खुद को कोसने लगा। काश! मैंने राजन की बात सुनी होती तो आज वह परेशान नहीं होता। यह सोचते-सोचते पंकज की आँख कब लग गई, उसे पता ही नहीं चला।

अगले दिन, स्कूल पहुँचते ही पंकज अपने दोस्तों से कॉपी माँगने लगा। सब दोस्तों ने कॉपी देने से इनकार कर दिया। सबने एक ही जबाव दिया, “अगर तुम कल नहीं आए तो हमारे अंक भी कट जाएँगे। तुम्हारा कोई भरोसा नहीं है। हम अपनी कॉपी तुम्हें नहीं दे सकते।”

पंकज बेहद हताश होकर राजन के पास गया और कहने लगा- राजन, अब तो लगता है कि मैं फेल हो जाऊँगा। कोई मुझे अपनी कॉपी नहीं देना चाहता क्योंकि मैं अकसर अनुपस्थित रहता हूँ।

राजन बोला- पंकज यह तो होना ही था। देख मैं जितना हो सके स्कल में ही लिखने में सहायता करूँगा पर दोस्त घर ले जाने के लिए कॉपियाँ नहीं दे पाऊँगा। माँ गुस्सा करेंगी।

उदास स्वर में पंकज ने कहा- कोई बात नहीं है दोस्त, मैं समझ सकता हूँ। तुमने मुझे कई बार समझाया, पर मैनें तुम्हारी बात पर ध्यान नहीं दिया।

परेशान और सहमा हुआ पंकज सोचने लगा कि अगर कॉपियों की जाँच में उत्तीर्ण नहीं हुआ तो क्या होगा? वह कक्षा में तो था, पर ध्यान कहीं और था। पंकज का उतरा चेहरा देखकर अध्यापिका उसकी परेशानी समझ गई और पूछा, “पंकज क्या हुआ? कोई परेशानी है क्या? तबियत तो ठीक है न बच्चे?”

पंकज बोला, “जी…जी कुछ…. कुछ नहीं।”

अध्यापिका ने कहा, “बेटा पंकज अगर परेशानी बताओगे तो शायद मैं कोई हल दे सकूँगी।”

रोते हुए पंकज बोला- अध्यापिका जी, इतने दिन मैंने कुछ नहीं लिखा। अब सारी कॉपियाँ कल ही जमा करनी हैं, कुछ समझ में नहीं आ रहा कि मैं क्या करूँ? सभी दोस्तों ने भी कॉपियाँ देने से मना कर दिया।

पंकज के सच्चाई बोलने और उसके पछतावे की भावना को देखकर अध्यापिका खुश हुई। उन्होंने खुद बच्चों से कॉपियाँ माँगी और साथ ही पंकज को काम पूरा करने के लिए समय भी दिया। घर पहुँचकर पंकज ने सारी बात माँ को बताई।

माँ भी पंकज में आए बदलाव को देखकर बहुत खुश हुई। वह कहने लगी, बेटा अब सब ठीक हो जाएगा। बेटे के बालों को सहलाते हुए कहातुम्हें अपनी गलती का एहसास हुआ, यही सबसे बड़ी बात है। पंकज ने दिए हुए समय में अपना काम अच्छी तरह पूरा किया और साथ ही परीक्षा में भी अच्छे नंबरों से पास हुआ। पंकज को अध्यापिका ने ‘परिश्रमी बालक’ का पुरस्कार भी दिया।

पंकज ने अध्यापिका को धन्यवाद देते हुए कहा- अध्यापिका जी, मैं वादा करता हूँ कि अपना काम समय पर पूरा करूँगा और अगली बार प्रथम स्थान के लिए कोशिश करूँगा। यह सुनकर वहाँ खड़ी पंकज की माँ फूले नहीं समाई और प्यार से बेटे को गले लगाया और दोनों खुशी-खुशी घर लौटे।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’