nagar purush
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भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

उसे सुबह उठने में आज फिर देर हो गई। अब तक तो बच्चे स्कूल जाने लगे होंगे… उसने सोचा। दीवार घड़ी आठ बजा रही थी। चलो, आज भी रहने दो पर ऐसे कब तक चलेगा… वह सोचता हआ बैठकखाने आ गया। रोज यही होता था। सुबह की नींद जल्दी उठने का संकल्प तोड़ देती। रात देर तक जागने से सुबह चाहकर भी उसकी आंख नहीं खुल पाती थी। बैठकखाने में पहुंच वह चाय का इंतजार करने लगा। थोड़ी देर में उसकी पत्नी चाय ले आई।

चाय का पहला चूंट भर उसने मुंह बिचकाया जैसे कि उसके मुंह में कोई नामुराद चीज आ गई हो।

इस घर में सुबह की चाय भी ताजा नहीं मिल सकती… वह बड़बड़ाते हुए उठा और किचन में घुस गया।

कभी सुबह ताजा चाय भी दे दिया करो। उसने पत्नी से कहा। आवाज में तल्खी थी।

मैंने सुबह ही तुम्हारे सिरहाने चाय रख दी थी, तीन बार तुम्हें जगाया। तुम उठे ही नहीं। पत्नी उबले आलुओं के छिलके निकालते हुए बोली। उसने बर्तनों के बीच से चाय का भगोना निकाला और खुद चाय बनाने लगा। उसकी नाराजगी बतनों की खनखनाहट में सुनाई दे रही थी। किचन की खिड़की से बाहर झांकते हुए उसने भगोना चूल्हे पर चढ़ाया। बाहर दिसंबर की हल्की धुंध दिखाई दे रही थी। ऐसा खूबसूरत मौसम देख उसे फिर अफसोस हुआ कि वह सुबह घूमने न जा सका। इस मोटापे को कैसे कंट्रोल किया जाए? उसे चिंता हुई। उसका पेट अब खासा बाहर झांकने लगा था।

जरा दूध लेकर आना… उसने आवाज लगाई। फिर उसने महसूस किया कि चार कदम दूर फ्रिज से वह खुद भी दूध ला सकता था। लेकिन तब तक उसकी पत्नी दूध ले आई। चाय ले वह फिर बैठकखाने में आ गया। सोफे पर धंसते हुए उसे यह देख अच्छा लगा कि मेज पर सभी अखबार करीने से रखे हुए थे। अखबार वाला इन्हें कूड़े की तरह बालकनी में फेंक जाता था। उसकी पत्नी ही उन्हें उठा मेज पर ठीक से रखती। अब तक घूमने जाने के द्वंद्व से बाहर आ चुका था। उसने उत्सुकतावश हाथ में लिया अखबार खोला। उसकी पत्नी भी मेज की दूसरी ओर अखबार पढ़ने लगी। उसने आंख उठाकर बीबी की ओर देखा। उसके हाथ में एक हिंदी का अखबार था।

दस साल हो गए कहते-कहते कि अंग्रेजी का अखबार पढ़ो, यह महानगर है कोई गांव-कस्बा नहीं। पर कूप-मंडूपों का क्या? कितनी मल्टीनेशनल्स में इंटरव्यू दिए, हर बार अंग्रेजी खा गई। मेरी बला से…। उसने मन ही मन सोचा। उसकी आंखों में हिकारत थी। वह अखबार पढ़ने लगा।

श्श्सुनो, आज मीतू के स्कूल में पीटीएम है। मुझे ऑफिस थोड़ा जल्दी जाना है, तुम जा सकोगे मीतू के स्कूल…? उसकी पत्नी पूछ रही थी। वह सुना-अनुसुना कर अखबार में नजरें गड़ाए रहा।

ऑफिस में ऐसा भी क्या काम आ पड़ा कि तुम आधे घंटे के लिए मीतू के स्कूल भी नहीं जा सकती…? वह लंबे वक्फे के बाद बोला। आवाज में तल्खी मौजूद थी।

आज हमारी कंपनी की मंथली मीटिंग है। साढ़े नौ तक पहुंचना है। मां की तबीयत खराब है, नाश्ता भी मुझे ही बनाना है। तुम ऑफिस जाते हुए एक चक्कर लगा लेना ना…। पत्नी अनुनय कर रही थी।

हूं…। वह अखबार के पन्ने पलटते हुए बोला।

पीटीएम में जाना इतना जरूरी भी नहीं… उसने जैसे फैसला सुनाया हो।

हम मीतू के पिछले पीटीएम में भी नहीं जा पाए थे। आजकल इसके मार्क्स भी अच्छे नहीं आ रहे हैं। एक बार क्लास टीचर से मिल लेते तो अच्छा रहता। पत्नी ने अभी उम्मीद नहीं छोड़ी थी।

इतना ही जरूरी समझती हो तो खुद ही चली जाओ न! तुम्हें मालूम है सुबह में कितना बिजी रहता हूं। अखबार देखने तक कि फुर्सत नहीं। सुबह टाइम पर घर से नहीं निकला तो ट्रैफिक जैम में फंस जाता हूं। कभी मेरी मुश्किल के बारे में भी सोच लिया करो। आवाज की तल्खी अब गुस्से में बदल रही थी।

पत्नी ने कोई जवाब नहीं दिया। वह उठी और चुपचाप किचन में घुस गई। सुबह इतने काम होते थे कि वह पति से बहस में नहीं उलझना चाहती थी।

ऑफिस जाते हुए उसने एक पल को सोचा कि चाहता तो वह बेटी के पीटीएम में जा सकता था। सिर्फ बीस मिनट की तो बात थी। उसे थोड़ा पछतावा हुआ। इस पछतावे को उसने कार चलाते हुए सिगरेट के धुएं में उड़ा दिया। तभी उसकी बगल से एक लाल रंग की मारुति निकली। कार कोई युवती चला रही थी। अनायास ही एक्सीलेटर पर उसके पांव का दबाव बढ़ गया। उसे एक युवती का इस तरह आगे निकलना नागवार लगा। पर आगे ट्रैफिक बहुत था। वह चार-पांच किलोमीटर तक उससे आगे निकलने की कोशिश करता रहा, पर लाल कार उसकी पहुंच से बाहर जा चुकी थी। दफ्तर पहुंचने तक उसका मूड कुछ उखड़ चुका था। संयोग से दफ्तर में घुसते ही उससे शालिनी टकरा गई। सुंदर, सुशील और चंचल शालिनी, उससे दस बरस छोटी। कितना ग्रेस है उसके व्यक्तित्व में। खुद को कैरी करने का कितना मोहक अंदाज। उसे देखते हुए उसने सोचा।

सर!… उसे यह संबोधन पसंद न था। वह कई बार शालिनी को कह चुका था कि वह उसे कन्हाई पुकारे।

सर, आज पिताजी आपके एड की तारीफ कर रहे थे। लिफ्ट में घुसते हुए शालिनी ने कहा। लिफ्ट में दोनों अकेले थे।

शालिनी के प्रति उसका आकर्षण तीन साल पुराना है। उसके ऑफिस में सभी की किसी न किसी से सेटिंग थी। विज्ञापन कंपनी में यह कोई बड़ी बात न थी। बहिर्मुखी और उच्च पदों पर आसीन तथाकथित क्रिएटिव उस्तादों की एक से नहीं कई-कई मातहत लड़कियों से सेटिंग थी। खुद उसका बॉस अपनी पीए पर फिदा था और दफ्तर से लौटते हुए सरेआम उसे अपनी कार में बैठा ले जाता था। कहां, यह कोई नहीं जानता। शालिनी मगर बदस्तूर उससे दूरी बनाए हुए थी। पहले साल वह अपनी शराफत से शालिनी को लुभाने की कोशिश करता रहा। जब बात नहीं बनी तो उसने हरसंभव अतिरिक्त सुविधाएं दे उसे खींचना चाहा। जब इससे भी कुछ न हुआ तो उसने खिन्न हो कई महीनों तक उसे परेशान किया। शालिनी उससे तीन स्तर नीचे थी। यानी एक तरह से वही उसका प्रशासनिक बॉस था। वह उसकी छुट्टियां रोकने लगा। कई बार उसने छुट्टी के दिन भी उसे ऑफिस बुलवाया। पर फिर भी बात नहीं बनी। अब वह ऐसी कोशिशें छोड़ चुका था। पर उसके मन में कहीं गहरे अभी भी उसके प्रति खिंचाव था। आज लिफ्ट में उसके साथ अकेले कुछ क्षणों के सान्निध्य ने उसे अधीर कर दिया।

उस दिन उसे घर लौट मालूम चला कि उसकी पत्नी खुद ही पीटीएम हो आई थी। ऑफिस से लौट वह पैग बना फिर कंप्यूटर पर काम करने लगता। क्या करता, प्राइवेट नौकरी में गलाकाट प्रतिस्पर्धा थी। देसाई और श्रीवास्तव को इसीलिए निकाल दिया गया कि रहेजा अकेला ही उनसे ज्यादा काम करने लगा था।

उसकी पत्नी अभी तक घर नहीं लौटी थी। वह उसकी मंथली मीटिंग के बारे में जानने को उत्सुक था। रात नौ बजे वह घर पहुंची।

आज इतनी लेट कैसे हो गई? तुम्हारी मीटिंग का क्या हुआ…? उसने उसके कमरे में घुसते ही पूछा।

मैं वहां लेट पहुंची। एचआर के मिस्टर घोष बहुत नाराज हो रहे थे। पर ऐसी भी कोई बात नहीं हुई। उसकी पत्नी खुश थी। कंपनी ने आज उसे दो हजार का गिफ्ट दिया था। उसे खुश देख वह भी खुश हुआ।

तुम्हें मालूम है आज तारीख क्या है…? पत्नी पूछ रही थी। पूछते हुए उसकी आंखों में हल्की शरारत उतर आई थी। यह एक दुर्लभ दृश्य था। तभी उसे खयाल आया कि आज उनके विवाह की सालगिरह थी। अचानक उसे रीढ़ में हरारत उठती महसूस हुई। आज का दिन सेलीब्रेट करना चाहिए। उसने सोचा। उसे समझ नहीं आया कि वह क्या करे? उसने जेब से एक हजार रुपये का नोट निकाला और घुटनों पर झुकते हुए उसे अपनी पत्नी के चरणों पर रख दिया। उसकी अदा पर पत्नी मुस्करा उठी।

कितना खटती है परिवार के लिए। संस्कार ऐसे मिले हैं कि पति की हर जरूरत का लिहाज करती है। वह नाहक ही उस पर गुस्सा करता रहता है। उसने एक पल को सोचा। वह उदार हो रहा था। पत्नी अपनी देह की गंध छोड़ किचन में जा चुकी थी। वह नए उत्साह से कंप्यूटर पर विज्ञापन की रूपरेखा बनाने लगा। यह एक बड़ा सरकारी प्रोजेक्ट उसकी कंपनी के हाथ आया था। विज्ञापन की रूपरेखा वह आज ही तैयार कर लेना चाहता था। वह डेढ़ घंटा उसी में उलझा रहा। इस बीच वह कई पैग पी गया। आखिरकार सुरूर से भरा वह खाने की मेज पर पहुंचा। उसकी आवाज में हल्की हकलाहट उतर चुकी थी।

मोहतरमा, हमेशा किचन में ही छिपी रहती हो, कभी सामने भी आ जाया करो। किचन में उसकी पत्नी रात के बर्तन मांज रही थी। वह मजाक के मूड में था। उसे आज सालगिरह होने की बात रह-रहकर याद आ रही थी। उसने महसूस किया कि उसे भूख भी लग आई थी।

खाना थोड़ा गरम कर दूं क्या…? उसकी पत्नी ने भीतर से ही आवाज लगाई। आवाज में सरोकार था। उसे अच्छा लगा।

रहने दो, तुम मेरे करीब बैठो तो खाना खुद ही गरम हो जाएगा। वह खुश होकर चिल्लाया। उसका मन हुआ कि वह उठकर पत्नी को चूम ले। पर मां अभी जागी हुई थी।

आज मैं इसे प्रेम से सराबोर कर दूंगा… खाने खाते हुए वह उन्माद में सोचता जा रहा था।

खाना खाकर वह एक बार फिर कंप्यूटर पर काम करने लगा। कल उसे किसी भी हाल में इस विज्ञापन का प्रेजेंटेशन देना था। एक करोड का सवाल था। पर थोड़ी ही देर में थकान उस पर हावी होने लगी। इस बीच उसकी पत्नी मीतू को होमवर्क करवाने बेडरूम में जा चुकी थी। कुछ ही देर में वह भी कंप्यूटर बंद कर सोने चला गया। बेडरूम में बिस्तर पर किताबें बिखरी हुई थीं। कैंची से काटे गए चार्ट पेपर के टुकड़े फैले हुए थे। गोंद की ट्यूब खुली रह गई थी। उससे गोंद रिसता हुआ चादर पर फैल रहा था। उसकी पत्नी मीतू को शायद स्कूल का कोई प्रोजेक्ट करवा रही थी। लगता था दोनों काम करते-करते ही सो गए थे।

ये स्कूल वाले भी बच्चों को इतना काम क्यों देते हैं… उसने खिन्न होकर सोचा और सारा सामान समेट पास पड़ी कुर्सी पर डाल दिया। बिस्तर पर आ उसने पत्नी और बेटी को कंबल ओढ़ाया। फिर उसने धीमे से पत्नी की पीठ थपथपाई।

श्श्सो गई क्या…? वह फुसफुसाया।

हूं…। उसकी पत्नी की क्षीण आवाज आई। वह थोड़ा आश्वस्त हुआ। उसका हाथ पत्नी की कमर के नीचे खिसक गया। वह दोबारा फुसफुसाया-

इधर मुड़ो न…।

उसकी पत्नी कुनमुनाती हुई उसकी ओर पलट गई।

भई, कभी हमसे भी कुछ बातें कर लिया करो। तुम्हें तो ऑफिस से लौटते ही सोने की होती है। वह पत्नी का सिर अपनी छाती पर खींचते हुए बोला।

कितना थक जाता है वह। प्रमोशन के बाद काम बहुत बढ़ गया है। ऊपर से पीआर की जिम् मेदारी भी उसके सिर डाल दी गई थी। ओफ्फ, इस तरह कैसे चलेगा! वह सोच रहा था। घर पहुंच फिर से काम पर जुटना पड़ता है। पत्नी का भी यही हाल है। वह सोच रहा था और उसकी उंगलियों में उतरी शरारत निस्पंद पड़ रही थी। उधर उसकी पत्नी उसकी छाती पर उंगलियां फिराने लगी थी। प्यार जताने का उसका यह अपना ही तरीका था। वह अब पति की सालगिरह को सेलिब्रेट करने की इच्छा पूरा करना चाहती थी। पर तभी उसे कमरे की निस्तब्धता में जाने-पहचाने खर्राटे की आवाज सुनाई दी।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’