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भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

रुद्रा उस सदमे से उबर नहीं पाई है, जबकि तन्वी की मृत्यु को तीन माह बीत चुके हैं। बीस साल की लडकी की जवान मौत को लोग मुक्ति कहते हैं शायद शेखर भी। लेकिन रुद्रा मां है क्या कहे इसे वह?

यंत्र की भांति हो चुकी रुद्रा के पास शून्य है, विराट विशाल शून्य।

शून्य की व्यापकता ने जैसे उसके करने के लिए कोई काम ही नहीं छोड़ा है।

शादी के पहले की खुशमिजाज रुद्रा के लिए या यूं कहें कि तन्वी के बाद जीवन यंत्र वक्त हो गया था। बीस साल उसने गुजार दिए थे बेटी की सेवा में। उसे आज भी वह दिन याद है जब प्रसव के तुरंत बाद उसने बच्चे की रोने की आवाज नहीं सुनी थी। डॉक्टरों की कोशिश से बच्चा रोया और इसी बीच उनकी आपसी बातचीत से रूद्र समझ गई शायद शिशु नॉर्मल नहीं। धीरे-धीरे बात कर रहे थे। इधर सद्यः प्रसूता रुद्रा टूट रही थी। रुद्रा से अब रहा न गया तो वह पूछ बैठी। डॉक्टर ने कहा; तुम बिल्कुल निश्चिंत रहो तुम्हारी बिटिया बिल्कुल ठीक है।

अगले एक-दो दिनों में ही रुद्रा को यह पता चल गया कि मांस के लोथड़े मात्र को वे बच्ची कहकर संबोधित कर रहे हैं। बच्ची भूख लगने पर री-री तो करती पर शरीर बिल्कुल हिला डूला न पाती थी। रोती कलपती रुद्रा और बिखर चुके शेखर अंततः उसे लेकर घर चले गए। लोग आते और ढांढस बंधा कर चले जाते। यहां तक कि शेखर और रुद्रा के माता-पिता भी। दिन गुजरने लगे, शेखर तो अपने बैंक के काम में इतने व्यस्त रहते कि उन्हें तन्वी के बड़ी होने का एहसास ही ना हुआ।

रुद्रा लगातार बच्ची की सेवा में लगी रहती। तन्वी का सब कुछ बिस्तर पर ही होता ,आहार से लेकर विसर्जन तक सारी क्रियाएं।

तन्वी को देखकर रुद्रा के मुख में कलेजा आ जाता था। इतनी खूबसूरत बच्ची इस हाल में? रुद्रा ईश्वर से प्रश्न प्रति प्रश्न करने लगती।

बेडरूम के उस चौकोर कक्ष की आकृति कभी ना बदली। रोशनदान से आने वाली रोशनी कभी तेज तो कभी मंद पढ़ती हुई उसी स्थान पर पहुंचती थी, जहां से कुछ भी ना बदलता था। तन्वी का बेड और उसमें पड़ी तन्वी।

री-री करती छोटी सी तन्वी अब बड़ी होती जा रही थी, साथ ही रुद्रा को देखकर आंखों ही आंखों में इशारे भी करती जैसे मां बेटी में कोई समझौता हो गया हो। रुद्रा तन्वी की ऐसी हरकत को देखकर बहुत खुश होती थी, बल्कि कभी-कभी तो वह महसूस करती थी, कि जब उसकी मम्मी और पापा साथ होते हैं तो वह थोड़ी तिरछी मुस्कान मुस्कुराती भी है। शेखर भी तन्वी की मौन बोली समझने लगे हैं, बातें वे तीनों इसी तरह किया करते हैं।

ईश्वर की इस इच्छा के आगे विवश हो चुके रुद्रा और शेखर तन्वी को चलते बोलते भले ही न देख पाए थे पर उसकी गतिविधियों पर खुश बहुत होते थे। तन्वी के पास रखी छोटी सी टेबल में चिड़िया चहकती और तन्वी आंखें मटका देती। रूद्रा व्यस्त रहती ,अब उसे ईश्वर से कोई शिकायत नहीं थी उसे उसकी व्यस्तता का बहाना मिल गया था तन्वी के रूप में।

कभी-कभी शेखर मजाक में रुद्रा को मशीन भी कहते थे। पर रुद्रा को जरा भी बुरा नहीं लगता था। इस सच्ची सेवा में ही उसने, ईश्वर को ढूंढ लिया था। तन्वी बड़ी हो रही थी, पर रुद्रा और शेखर ने कभी दूसरे बच्चे के बारे में न सोचा था। वे जानते थे, कि दूसरे के आने से तन्वी का क्या होगा… दोनों के बीच एक तरह से समझौता हो चुका था, इतने वर्षों में इन परिस्थितियों का असर शेखर पर कम ही था, पर रुद्रा पूरी तरह से बदल चुकी थी उसका जीवन जैसे तन्वी के जन्म से ही थम गया था। और उसने बड़ी ही तल्लीनता के साथ तन्वी की री री, उसका आंखें मटकाना, उसकी तिरछी मुस्कान, उसकी सफाई, उसकी गंदगी के बीच खुद को ढाल लिया था। बारह वर्ष की होने पर एक काम और मिल गया था रुद्रा को हर महीने अतिरिक्त काम।

रूद्रा कभी-कभी सोचती कि आखिर ईश्वर क्या कहना चाहता है उससे, उसकी तन्वी स्वस्थ है, वह संपूर्ण नारी है या और कुछ?

पर नियति में यह सब कुछ है। रुद्रा थक कर चूर हो जाने के बाद भी अपनी बिटिया की एक मुस्कान की कायल हो जाती। उसके लिए मायका, पिक्चर, बाजार, पार्क, पार्टी जैसी चीजों का कोई महत्व नहीं है गौण है ये सब।

उसके त्याग और सेवा के सामने किसी चीज का कोई महत्व न था। लेकिन जैसे-जैसे वह सोचती कि यदि मैं ना रही तो? इस प्रश्न का कोई जवाब नहीं, कि क्या होगा तन्वी का।

बस ईश्वर से यही मनाती कि हे ईश्वर! तन्वी की सेवा आखिरी दम तक करती रहूं, ईश्वर ने भी रुद्रा की इस एकमात्र इच्छा का सम्मान किया था शायद, तभी तो यह हादसा हुआ।

एक सुबह दस बजे तक गंदगी में सनी तन्वी ने ना तो अपनी उपस्थिति जताई ना कोई हरकत की। इधर रुद्रा ने समझा की तन्वी आज देर तक सो रही है। रुद्रा ने उसे साफ किया बिना आंखें मटकाए बंद आंखों में ही तन्वी ने यह सब करवा लिया। आज चिड़िया आई तो सही पर बिना चहचहाए, फुर्र से उड़ गई, जमाने को सूचना देने, रुद्रा घबरा गई। थोड़ी ही देर में शेखर डॉक्टर के साथ आ चुके थे और पुष्टि भी हो चुकी थी। रुद्रा का बीस साल का मौन रुदन में बदल गया था और वह, बुत बन चुकी थी। रुद्रा न जाने क्या ढूंढ रही थी शून्य में शून्य की व्यापकता में…..

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’