bhullan chaacha ke rang birange haathee Motivational story
bhullan chaacha ke rang birange haathee Motivational story

निक्का को भुल्लन चाचा का होली खेलने का अंदाज इतना पसंद था कि पिछले कई सालों से वह होली खेलने उनके हाथीटोला वाले अहाते में जाता था। और वहाँ से पूरी तरह रंगों और मस्ती से सराबोर होकर लौटता था। एक तो भुल्लन चाचा थे ही इतने अलमस्त और हँसोड़ कि उनके घर जो भी जाता, वह उन्हीं के रंग में रँगकर मस्ती में ठहाके लगाने लगता था।

खुद जितने लहीम – शहीम थे भुल्लन चाचा, उतना ही लंबा-चौड़ा होता था, उनका होली खेलने का प्रोग्राम, जिसमें सुबह से कब शाम हो गई, कुछ पता ही नहीं चलता था। फिर उनका घर जिस बड़े अहाते में था, उसमें रंग, गुलाल और अबीर से होली खेलने और दोस्तों के साथ धमा चौकड़ी करने का मजा ही कुछ और था। उस अहाते में कोई पंद्रह-बीस घर तो थे ही और सामने था खूब बड़ा सा खुला मैदान। फिर अहाते के साथ-साथ आसपास के घरों के लोग भी होली खेलने आ जाते और खूब बड़ी सी मंडली जमा हो जाती। इनमें सभी भुल्लन चाचा पर जान छिड़कते थे और उनके मुँह से कोई बात निकलते ही उसे पूरा करने दौड़ पड़ते थे। फिर बच्चा- पार्टी के तो हीरो थे भुल्लन चाचा, जिनका होली का प्रोग्राम अहाते के बीच नीले हाथियों वाले फव्वारे के पास चलता था। यों भी निक्का को बहुत प्यारा लगता था यह फव्वारा, जिसमें चार हाथी सूँड़ उठाए हुए हर आने-जाने वाले को मजे से आदाब कहते थे। और जरा गौर से देखो तो चारों हाथी हँसते हुए लगते थे। उस फव्वारे के चारों तरफ एक खूब बड़ा सा तालाब भी बनवाया था भुल्लन चाचा ने, जिसमें वे दोस्तों के साथ नहाने और तैरने का मजा लिया करते थे। होली के दिन नीले हाथियों के फव्वारे वाला उनका यही तालाब एकदम मस्ती का तालाब बन जाता था। उसमें खूब सारा रंग घोला जाता और फिर पानी से डरने वाले किसी दोस्त को इसमें खेल-खेल में दो-चार डुबकियाँ लगवाने में भुल्लन चाचा को बड़ा मजा आता था। इस पर दूर खड़ी हुलियारों की मंडली ‘होली है, होली है…’ कहकर इस कदर जोर से तालियाँ बजाकर हँसती कि पानी में डुबकियाँ खाने वाला बेचारा कभी-कभी तो झेंप के मारे हँसना ही भूल जाता।

मगर थोड़ी देर बाद हाथी – कुंड से बाहर आकर सबके साथ-साथ उसकी कुछ इस कदर हँसी छूट निकलती कि लगता, होली की असली पिचकारी तो अब छूटी है। और फिर तो होली का मजा लेने वालों को हँसने का एक नया बहाना मिल जाता। और ऐसी खिल-खिल और खिलर – खिलर हवा में गूंजती, जैसे हँसी के तमाम छोटे-बड़े गोलमगोल गुब्बारे हवा में झूम और नाच रहे हैं। निक्का जब होली खेलने भुल्लन चाचा के यहाँ जा रहा था, तो पिछली होली की तमाम रंग-बिरंगी यादें उसके मन में गुदगुदी मचा रही थीं। ओह, पिछली दफा गुन्नू को जब नीले हाथियों वाले तालाब में डुबोया गया, तो क्या मजा आया था। सोचकर अकेले में ही निक्का की हँसी छूट गई। वाकई गुन्नू की हालत उस वक्त बड़ी अजीब थी। वह पहले तो थोड़ा खीजा, पर फिर खूब हँसा था और उसके बाद उसने दूसरों से कुछ ज्यादा ही गुझिए और खोए के लड्डू गपके थे। यही नहीं, पिछली बार भुल्लन चाचा के प्यारे डॉगी शेरू ने भी बड़ा कमाल दिखाया था। जब उस पर बच्चों ने रंग डाला तो पहले तो वह जरा तुनक गया, मगर फिर सबको जोर-जोर से हँसते देख, उसे भी खूब मजा आया था और निक्का के साथ तो उसने डांस भी किया था। फिर मारे खुशी के भुल्लन चाचा के कंधे पर चढ़कर उसने बड़े ही अजब – गजब करतब कर डाले थे। लिहाजा बच्चा- पार्टी को तो वो मजा आया था कि रंगों की बौछार के साथ सबकी हँसी की बौछार भी छूट निकली थी। इस बार भी निक्का को लग रहा था कि भुल्लन चाचा के यहाँ जरूर होली का कोई नया मजेदार दृश्य देखने को मिलेगा। निक्का पहुँचा, तो दोस्तों ने दूर से ही ‘निक्का आ गया, निक्का आ गया’ कहकर आवाज दी और भुल्लन चाचा ने भी प्यार से उसे गुलाल से रँगते हुए कहा कि “अरे निक्का! ये सब तुम्हें याद कर रहे थे। तुम न आते तो इन बेचारों की होली का मजा आधा रह जाता।” “अच्छा!“ निक्का ने कहा, “यह तो बड़े मजे की बात है।” फिर डब्बू, मीतू, गोलू, संजू और टिंकू की टोली के पास जाकर उसने सबको थोड़ा-थोड़ा गुलाल लगाकर पूछा, “हाँ तो बताओ दोस्तो, इस बार होली का क्या खास प्रोग्राम है?” “इस बार सोच रहे हैं कि किसी एक को अच्छी तरह रँगा जाए, जिससे कि वह हमेशा याद रखे। पर भला किसे रँगें? चलो, तुम्हीं बताओ निक्का।” “मैं…?” कहकर निक्का सोचने लगा कि किसका नाम ले? पर तभी जाने किसका इशारा हुआ कि पूरी एक बालटी भरकर रंग उसके ऊपर आ पड़ा। और बच्चा-पार्टी अब नाच रही थी, “होली है.. होली है…!” इनमें डब्बू सबसे आगे था। गनीमत यह थी कि यह टेसू का पीला सदाबहार रंग था, जिसमें से टेसू के फूलों की बड़ी मीठी-मीठी खुशबू आ रही थी। पता नहीं, भुल्लन चाचा ने टेसू के इन फूलों का इंतजाम जाने कहाँ से कर लिया था? और निक्का कुछ समझ पाता, इससे पहले ही चारों तरफ से पिचकारियों की बौछार से वह घिर गया था। लाल, पीले, नीले, हरे रंग की बौछारें। निक्का की पिचकारी जब तक निकलती, वह पूरी तरह मल्टीकलर हो चुका था। इतने में आसपास के होली के हुलियारों की दो-तीन टोलियाँ और आ गईं। और फिर रंगों और मस्ती का वह नजारा देखने को मिला, जो बस भुल्लन चाचा के यहाँ ही नजर आ सकता था। अब तक बच्चों की भी अच्छी-खासी टोली बन गई थी और निक्का भी बच्चा-पार्टी के साथ मिलकर रंगों की मस्ती और उछल-कूद में लग गया था। कोई नई टोली आती, तो सबसे पहले बच्चे दौड़कर जाते और रंगों की बौछारों से उसका स्वागत करते। लिहाजा सारे के सारे बच्चे हँसते-हँसते एक साथ नाच रहे थे, दौड़ रहे थे, झूम रहे थे। और निक्का…? उसे तो लग रहा था, जाने क्या चक्कर है, उसकी हँसी को आज ब्रेक ही नहीं लग पा रहा। निक्का को याद आया, इस दफा भुल्लन चाचा ने किसी को हौद में डुबकियाँ तो लगवाई ही नहीं। वह यह सोच ही रहा था कि तभी भुल्लन चाचा ने पास आकर उसे अपनी विशाल भुजाओं में उठा लिया। और खूब जोर से चिल्लाकर कहा, “इस बार तो हम अपने प्यारे भतीजे निक्का को नीले हाथियों वाले हौद में नहलाएँगे।” सुनते ही उसके तो होश उड़ गए। “पर सुनिए भुल्लन चाचा, मुझे तो तैरना नहीं आता।” निक्का ने अपनी मजबूरी बताई। “अरे लल्ला, नहीं आता तो सीख जाओगे।” भुल्लन चाचा बड़े मजे में हँसते हुए कह रहे थे, “मैंने भी तो ऐसे ही सीखा था।” इस पर गोलू, डब्बू और मीतू की हँसी सुनाई दी, “अब आएगा मजा…!” और निक्का सोच रहा था कि मारे गए, आगे से भुल्लन चाचा के यहाँ होली वाले प्रोग्राम में आना बंद। * तब तक भुल्लन चाचा ने निक्का को हौद में डालकर प्यार से डुबुक – डुबुक करना शुरू कर दिया था। निक्का को मालूम था कि भुल्लन चाचा ने उसे कसकर पकड़ा हुआ है और डूबने तो उसे देंगे नहीं। सो शुरू में चाहे थोड़ा डर लगा हो, पर फिर तो उसने भी खुद को ढीला छोड़ दिया, जैसे हौद के नीले हाथियों के साथ वह भी तैर रहा हो। सब खूब जोर-जोर से तालियाँ बजा रहे थे और भुल्लन चाचा हँसते हुए कह रहे थे, “वाह, वाह, राम जी, कैसी होली मनवाई! अरे वाह, इस बार का हीरो ऑफ द होली तो हमारा निक्का ही बन गया।” इतने में डब्बू जाने कहाँ से कैमरा ले आया था और हौद में डुबुक-डुबुक करते निक्का के फोटो लेने शुरू कर दिए। उसने फोटो खींचते – खींचते चिल्लाकर कहा, “अरे निक्का, फोटो में तेरे दाँत बड़े चमक रहे हैं। रंग-गिरंगे चेहरे से झाँकते, एकदम चिट्टे दाँत।” उस समय निक्का की इतने जोर की हँसी छूटी कि उसे देखकर सभी हो – हो करके हँस पड़े। भुल्लन चाचा समेत सभी तालियाँ पीटते हुए कह रहे थे, “देखो-देखो, निक्का के साथ-साथ हाथी भी हँस रहे हैं। अरे वाह, हाथी भी हँस रहे हैं!” और सच्ची, उस पल तो निक्का को वे वाकई हँसते हुए ही लगे। इतने में देखा, शोभा चाची मंद-मंद हँसते हुए, लल्लन के साथ मिठाई की बड़ी सी परात उठाए चली आ रही हैं। देखते ही सबमें फिर से जोश आ गया। शोभा चाची ने हँसते हुए कहा, “आप लोगों ने खूब होली खेल ली। अब जरा इस पर भी कृपा कीजिए।” इस दफा गुझिए, नमकीन सेव और कचौड़ियाँ ऐसी खस्ता बनाई थीं शोभा चाची ने कि उन्हें खाते हुए सबको एक दफा फिर से ‘होली है…’ का नारा बुलंद करना जरूरी लगा। पर अभी असली चमत्कार तो आना बाकी था। और उसे किसी और ने नहीं, भुल्लन चाचा के बड़े पुराने और प्यारे नौकर छदामी ने लाकर पेश किया। पहले तो किसी की समझ में ही नहीं आया कि छदामी चार दूसरे नौकरों के साथ मिलकर लाल कपड़े से ढकी यह कौन सी गोल-गोल चीज ढककर ला रहा है। मगर पास आने पर जब उसे सबके बीच में रखा गया और छदामी ने कपड़ा हटाया, तो सबके मुँह से एक साथ निकला, “ल… ड्…डू….!” जी हाँ, वह लड्डू ही था, पर पूरे मन भर से तो क्या कम होगा। उसे पास आ-आकर लोग ऐसे देख रहे थे, जैसे अचरज से किसी जमूरे का तमाशा देख रहे हों। और सबके मुँह भी मारे अचरज के पूरे लड्डू बन चुके थे। और भुल्लन चाचा…? सबको चौंकाकर अब उनकी भरपूर हँसी फूट रही थी। मजे में पूरी बत्तीसी निकाले हुए अब वे हुलसकर दावत दे रहे थे, “अरे, आइए- आइए, खाइए साहब, खाइए। आपके लिए ही है।” “मगर खाएँ किधर से भुल्लन? अरे, यह तो बहुत बड़ा गोलमगोल तमाशा है।” मुंशी काका ने कहा, तो सबका दबा हुआ हँसी का ठहाका भी साथ ही साथ गूँज उठा। “अरे, होली में इसी का तो मजा है। आइए… खाइए – खाइए।” भुल्लन चाचा अब निछावर हुए जा रहे थे। फिर दूसरों को सकुचाते देख, खुद भुल्लन चाचा ने पहल की और उस विशाल लड्डू में से छोटे-छोटे टुकड़े तोड़-तोड़कर देने शुरू किए। फिर तो कोई सौ- सवा सौ लोगों की टोली में पूरे मन भर का लड्डू देखते ही देखते ऐसे गायब हो गया, जैसे किसी जादू से हवा में उड़ गया हो। निक्का सोच रहा था कि अब घर चला जाए, तभी भुल्लन चाचा के बेटे डब्बू ने उसे रुकने का इशारा किया।

भुल्लन चाचा के पास जाकर बोला, “पापा… पापा, वो तो आप भूल ही गए?” भुल्लन चाचा ने कुछ सोचते हुए पूछा, “क्या?” उस पर डब्बू ने आँखें नचाकर कुछ कहा, तो भुल्लन चाचा को झटपट याद आ गया। “हाँ-हाँ डब्बू, लाओ-लाओ, झटपट लाओ। सच मैं तो भूल ही गया।” भुल्लन चाचा कह रहे थे। हम सब जबरदस्त सस्पेंस की लपेट में थे, कि भला अब और क्या मँगवा रहे हैं भुल्लन चाचा? जैसे जादूगर के अगले आइटम का इंतजार। और जब डब्बू लाल रंग का एक बड़ा सा डब्बा लेकर आया, तो देखते ही देखते उसमें से निकल पड़े किस्म-किस्म के रंग-बिरंगे मुखौटे। शेर, हाथी, भालू, लोमड़ और खरगोशों के एक से एक ऐसे बढ़िया मुखौटे थे वे कि कहना ही क्या! बच्चों में मुखौटे लूटने की लूट शुरू हो गई। और फिर जहाँ बच्चे थे, वहाँ सुंदर वन से आए शेर, हाथी, हिरन, भालू, लोमड़, खरगोशों की नटखट टोली नजर आने लगी। और लो, भुल्लन चाचा शेर का मुखौटा पहनकर अब सबको नाचने के लिए बुला रहे हैं। इतने में खूब बड़ा सा ढोल लिए ढोली भी आ गया और उसके ढोल पर बच्चा- पार्टी के साथ भुल्लन चाचा क्या तो जमकर नाच रहे हैं। देखने वाले हैरान होकर वाह-वाह कर उठे। पर भुल्लन चाचा को शायद ज्यादा मजा नहीं आया था। लिहाजा उन्होंने झट उस ढोली से ढोल लिया और अब खुद बीच में आकर उसे बजा रहे हैं। और उनके इशारे पर छोटे-बड़े सब एक साथ नाच रहे हैं, झूम-झूमकर नाच रहे हैं। पता नहीं, सब नाचते रहे कब तक? और फिर कब अपने-अपने घर गए? निक्का को कुछ भी याद नहीं। हाँ, इतना उसे याद है कि होली के उस रंगों और मस्ती वाले दिन के भरपूर हल्ले – गुल्ले के बाद जब वह सोया, तो पूरी रात उसे भुल्लन चाचा के हँसते हुए हाथी नजर आते रहे थे। कभी नीले, कभी पीले… कभी लाल, कभी हरे। और फिर देखते-देखते वे एकदम सात रंग के हो गए। देखकर निक्का को मजा आ गया। क्या वे जादू वाले हाथी हैं? मैं भुल्लन चाचा से पूछूंगा। निक्का सपने में सोच रहा था। और फिर जाने कब वह खिलखिलाकर हँस पड़ा, जैसे सपने में उन हाथियों की सूँड़ों से रंग नहीं, हँसी का फव्वारा छूटा हो।