Manto story in Hindi: जब फहमीदा की शादी हुई तब उसकी उम्र तीस बरस से अधिक नहीं थी। मां-बाप से उसके दहेज का सामान पहले ही जुटा लिया था इसलिए शादी के समय कोई परेशानी पेश नहीं आई। तकरीबन पच्चीस जोड़े कपड़े और जरूरत भर के जेवरात भी। ऐन शादी से पहले फहमीदा ने अपनी मां से कहा कि वह सुरमा, जो विशेष रूप से उनके यहां आता है, चांदी की सुरमेदानी में डाल कर उसे जरूर दें, साथ ही चांदी की सुरमचू भी।
फहमीदा की यह इच्छा तुरंत पूरी हो गई। आजम अली की दुकान से सुरमा मंगवाया। बरकत की दुकान से सुरमेदानी और सुरमचू लिया और उसके दहेज में रख दिया।
फहमीदा को सुरमा बहुत पसंद था। शायद इसलिए कि उसका रंग बहुत अधिक गोरा था। वह चाहती थी कि थोड़ी सी स्याही भी उसमें शामिल हो जाए। होश संभालते ही उसने सुरमे का इस्तेमाल शुरू कर दिया था।
उसकी मां उससे अक्सर कहती, ‘फहमी, यह तुझे क्या खब्त सवार हो गई है? जब-जब आंखों में सुरमा लगाती रहती है!’ जवाब में फहमीदा मुस्करा कर कहती, ‘अम्मीजान, इससे नजर कमजोर नहीं होती।’ फिर अपनी अम्मी से सवाल करती, ‘आपने ऐनक कब लगवाई थी?’
‘बारह बर्ष की उम्र में।’
फहमीदा हंसती, अगर आपने सुरमे का इस्तेमाल किया होता तो आपको कभी ऐनक की जरूरत महसूस न होती। असल में हम लोग कुछ अधिक ही रोशन-खयाल हो गए हैं लेकिन रोशनी के बदले हमें अंधेरा ही अंधेरा मिलता है।’
उसकी मां कहती, ‘जाने क्या बक रही हो।’
‘मैं जो कुछ बक रही हूं, सही है। आजकल लड़कियां नकली भवें लगाती हैं। काली पेंसिल से खुदा जाने अपने चेहरे पर क्या कुछ करती हैं, लेकिन नतीजा यह निकलता है कि वे चुड़ैल नजर आती है।’
‘जाने क्या कह रही हो, मेरी समझ में तो खाक भी नहीं आया।’ मां कहती।
फहमीदा अपनी बात का खुलासा करने की गरज से कहती, ‘अम्मीजान, आपको इतना तो समझना चाहिए कि दुनिया सिर्फ खाक ही खाक नहीं, कुछ और भी है।’
उसकी मां उससे पूछती, ‘और क्या है’
फहमीदा जवाब देती, ‘बहुत कुछ है। खाक में भी सोने के कण हो सकते हैं।’
खैर, फहमीदा की शादी हो गई। मियां-बीबी की पहली मुलाकात खासी दिलचस्प रही। जब फहमीदा का खाविंद उससे बतियाने के लिए मुखातिब हुआ तो उसने देखा फहमीदा की आंखों में कालिख तैर रही है।
हैरान होकर खाविंद ने फहमीदा से पूछा, ‘तुम इतना सुरमा क्यों लगाती हो?’
फहमीदा झेंप गई और जवाब में कुछ न कह सकी।
उसके खाविंद को यह अदा पसंद आई और वह उससे लिपट गया। यकायक फहमीदा की सुमा लगी आंखों से टप-अप काले आंसू बहने लगे।
यह देखकर फहमीदा का खाविंद बहुत परेशान हो गया, ‘तुम रो क्यों रही हो?’
फहमीदा खामोश रही।
उसके खाविंद ने एक बार फिर पूछा, ‘क्या बात है, आखिर रोने की वजह क्या है? मैंने तुम्हें कोई दुख पहुंचाया?’
‘जी नहीं।’
‘तो फिर रोने की वजह क्या है?’
‘कोई भी नहीं।’
खाविंद ने फहमीदा के गाल पर हौले-हौले थपकी दी और कहा, ‘जानेमन, जो बात है, मुझे बता दो। अगर मैंने कोई ज्यादती की है तो उसकी माफी चाहता हूं। देखो, तुम इस घर की मलिका हो, मैं तुम्हारा गुलाम हूं।
लेकिन यह रोना-धोना अच्छा नहीं लगता। मैं चाहता हूं कि तुम सदा हंसती रहो।’-
इसके बाद भी फहमीदा रोती रही।
उसके खविंद ने उससे एक बार फिर पूछा, ‘आखिर इस रोने की वजह क्या है?’
फहमीदा ने जवाब दिया, ‘कोई वजह नहीं, आप पानी का एक गिलास ला दीजिए।’ उसका खाविंद फौरन पानी का एक गिलास ले आया। फहमीदा ने आंखों में लगा हुआ सुरमा धोया। तौलिए से अच्छी तरह साफ किया। आंसू सूख गए। उसके बाद वह अपने पति से बातचीत करने लगी।
‘मैं माफी चाहती हूं कि मैंने आपको इतना परेशान किया। आप देखिए, मेरी आंखों में सुरमें की एक लकीर भी बाकी नहीं रहीं।’
उसके पति ने कहा, ‘मुझे सुरमे से कोई आपत्ति नहीं। तुम शौक से इसका इस्तेमाल करो। मगर इतना अधिक नहीं कि आंखें उबलती हुई नजर आएं।’
फहमीदा ने आंखें झुका कर कहा, ‘मुझे आपके सभी हुकुम मानना कुबूल है। भविष्य में मैं कभी सुरमा नहीं लगाऊंगी।’
‘नहीं, नहीं। मैं सुरमा लगाने से मना नहीं करता। मैं सिर्फ यह कहना चाहता हूं कि …. कि मेरा मतलब है, किसी भी चीज को थोड़ा किफायत से इस्तेमाल किया जाए। जरूरत से ज्यादा जो भी चीज इस्तेमाल में आएगी, अपनी कद्र खो देगी।’
फहमीदा ने सुरमा लगाना छोड़ दिया लेकिन फिर भी वह अपनी चांदी की सुरमेदानी और चांदी के सुरमचू को रोज निकाल कर देखती थी और सोचती थी कि ये दोनों चीजें उसकी जिंदगी से क्यों अलग हो गई। वह क्यों इनको अपनी आंखों में जगह नहीं दे सकती।
सिर्फ इसलिए कि उसकी शादी हो गई है? सिर्फ इसलिए कि वह अब किसी की मिल्कियत हो गई है? या कहीं इसलिए तो नहीं कि उसकी अपनी इच्छा शक्ति ही चुक गई है।
फहमीदा को लगा सचमुच वह कोई फैसला करने के काबिल नहीं रही। किसी नतीजे पर नहीं पहुंचना उसके तई कठिन हो गया।
एक साल के बाद फहमीदा के घर में चांद सा बच्चा आ गया। फहमीदा ने उसका नाम आसूम रखा।
बच्चे के जन्म के बाद से फहमीदा निढाल-सी बनी रहने लगी थी, लेकिन उसे अपनी कमजोरी का कोई अहसास नहीं था। वजह यह था कि वह अपने लड़के की पैदाइश पर न खुश थी न नाखुश। उसे यूं महसूस होता था जैसे उसने कोई बहुत बड़ी गलती की है। चालीस दिन के बाद उसने सुरमा मंगवाया और अपने नवजात शिशु को लगाया। लड़के की आंखें बड़ी-बड़ी थीं। उनमें जब सुरमा लगा तो वे और भी ज्यादा बड़ी हो गई।
चूंकि उसके पति को भी बड़ी और खूबसूरत आंखें अच्छी लगती थीं इसलिए उसने यह आपत्ति नहीं कि उसने बच्चे की आंखों में सुरमा क्यों लगाया।
दिन अच्छी तरह गुजर रहे थे। फहमीदा के पति शुजाअत अली को तरक्की मिल गई थी। अब उसका वेतन डेढ़ हजार रुपए के करीब था।
एक दिन उसने अपने लड़के आसूम को सुरमा लगी आंखों के साथ देखा। वह उसको बहुत प्यारा लगा। उसने बड़ी उत्सुकता से उसको उठाया, चूमा, चाटा और पलंगड़ी पर डाल दिया। लड़का हंस रहा था। अपने नन्हें मुन्ने हाथ-पांव इधर-उधर मार रहा था।
आसूम की सालगिरह की तैयारियां हो रही थीं। फहमीदा ने एक बहुत बड़े केक का आर्डर दे दिया था। मुहल्ले के सब बच्चों को दावत दी थी ताकि उसके लड़के की पहली सालगिरह बड़ी शान से मनाई जा सके।
सालगिरह निश्चित रूप से शान से मनाई जाती मगर सालगिरह से दो दिन पहले आसूम की तबीयत खराब हो गई और ऐसी हुई कि उसका जिस्म ऐंठने लगा।
उसे अस्पताल ले गए। वहां डाक्टरों ने उसकी जांच की। जांच के बाद मालूम हुआ कि उसे डबल निमोनिया हो गया है। फहमीदा रोने लगी बल्कि सिर पीटने लगी, ‘हाय, मेरे लाल को यह क्या हो गया है? हमने तो उसे फूलों की तरह पाला है।’ एक डाक्टर ने उससे कहा, ‘मैडम, ये बीमारियां इंसान के वश में नहीं है। वैसे डाक्टर के नाते में आपसे कहता हूं कि बच्चे के जीने की कोई उम्मीद नहीं।’
फहमीदा ने रोना शुरू कर दिया, ‘मैं तो स्वयं मर जाऊंगी। खुदा के लिए डाक्टर साहब इसे बचा लीजिए। आप इलाज करिए, मुझे अल्लाह के घर से उम्मीद है कि मेरा बच्चा ठीक हो जाएगा।’
डाक्टर ने बड़े शुष्क लहजे में कहा, ‘खुदा करे, ऐसा ही हो।’
‘आप इतने नाउम्मीद क्यों हैं?’
‘मैं नाउम्मीद नहीं, लेकिन मैं आपको झूठी तसल्ली नहीं देना चाहता।’
‘भला आप मुझे झूठी तसल्लियां क्यों देने लगे। मुझे यकीन है कि मेरा बच्चा जिंदा रहेगा।’
‘खुदा करे ऐसा ही हो।’
मगर खुदा ने ऐसा नहीं किया और वह तीन दिन के बाद अस्पताल में मर गया।
फहमीदा पर देर तक पागलपन की स्थिति बनी रही। उसके होश व हवास गुम थे। कायेले उठाती, उन्हें पीसती और अपने चेहरे पर मलना शुरू कर देती।
उसका पति बहुत परेशान था। उसने कई डाक्टरों से सलाह की, दवाइयां भी दी लेकिन जैसी उम्मीद थी वैसा नतीजा सामने नहीं आया।
फहमीदा के दिलोदिमाग में सुरमा ही सुरमा था। वह हर बात कालिख के साथ सोचती थी। उसका पति उससे कहा, ‘क्या बात है, तुम इतनी चिंतित क्यों रहती हो?’
वह जवाब देती, ‘जी, कोई खास बात नहीं। मुझे आप सुरमा ला दीजिए।’
उसका पति उसके लिए सुरमा ले आया मगर वह सुरमा फहमीदा को पंसद नहीं आया। आखिर में वह खुद बाजार गई और अपनी पसंद का सुरमा खरीद कर लाई। अपनी आंखों में लगाया और सो गई, जिस तरह वह अपने बेटे आसूम के पास सोया करती थी। सुबह जब उसका पति उठा और उसने फहमीदा को जगाने की कोशिश की तो वह मुर्दा पड़ी थी। उसकी बगल में एक गुड़िया थी, जिसकी आंखें सुरमे से भरपूर थीं।
