Hindi Immortal Story: बहुत प्राचीन समय की बात है। कश्मीर में एक बहुत ही क्रूर और कट्टर राजा जैनुल-आबदीन राज्य करता था। उसके राज्य में हिंदू इतने ज्यादा आतंकित थे कि वे अपना घर-बार छोड़कर दूसरे राज्यों में बसने लगे। ऐसे में एक कहावत भी चल पड़ी कि जैनुलाबदीन के समय कश्मीर में हिंदुओं पर इतने ज्यादा अत्याचार ढाए गए कि एक समय ऐसा आ गया कि पूरे कश्मीर में केवल ग्यारह हिंदू परिवार ही रह गए थे, वे भी दीन-हीन हालत में थे।
हिंदुओं में एक श्री बाहत भी थे, वे इसलिए बचे हुए थे क्योंकि वे राजवैद्य भी थे। वर्तमान राजा के बचपन में श्री बाहत ने उन्हें एक बीमारी में मौत के मुंह से बचाया था। इसलिए वे तभी से राजवैद्य की पदवी पर कार्य कर रहे थे।
कुछ समय पहले ही राजा फिर से बीमार पड़ा। राजवैद्य ने काफी इलाज किया, पर राजा की बीमारी ठीक ही नहीं हो पा रही थी। दूर-दूर से डॉक्टर, वैद्य बुलाए गए, पर राजा की रहस्यमय बीमारी किसी की समझ में नहीं आई।
श्री बाहत भी भीतर से डरे हुए थे। उन्हें लग रहा था कि अगर राजा की बीमारी ठीक न हुई तो उन्हें नौकरी और फिर जान से भी हाथ धोना पड़ेगा।
इन्हीं दिनों कश्मीर में एक साधु-महात्मा आए। वे किसी हिंदू के घर विश्राम करना चाहते थे। पर उन्हें कोई हिंदू नहीं मिला। साधु-महात्मा बड़े आश्चर्य में थे कि कश्मीर में तो शैव दर्शन का इतना प्रसार रहा है, फिर भी यहाँ एक भी हिंदू का घर नहीं मिला!
किसी ने साधु-महात्मा को श्री बाहत के घर का पता दे दिया। साधु-महात्मा श्री बाहत के घर पहुँच गए। श्री बाहत ने उनका खूब आदर-सत्कार किया। उन्हें ऐसा लगा, मानो ईश्वर ने उन पर पड़ी विपदा से बचाने के लिए देवदूत भेज दिया है। उन्हें बड़ी मानसिक शांति का अनुभव हुआ।
रात जब महात्मा जी विश्राम के लिए लेटे, तो श्री बाहत उनके चरण दबाने लगे। चरण दबाते-दबाते श्री बाहत ने अपनी सारी परेशानी महात्मा जी को बता दी। साथ ही प्रार्थना की, “अब आप ही कोई रास्ता निकालिए महाराज, मैं बड़ी मुसीबत में घिर गया हूँ।”
महात्मा जी ने श्री बाहत को धैर्य धारण करने को कहा। साथ ही यह भी कि वे उन्हें राजा से मिलवा दें। राजा से मिलने के बाद ही वे उनकी बीमारी का इलाज बता सकेंगे।
श्री बाहत की जान में जान आई। उन्हें लगा कि महात्मा जी जरूर कोई रास्ता निकाल लेंगे।
अगले ही दिन श्री बाहत महात्मा जी को राजा से मिलवाने ले गए। वहाँ जाकर श्री बाहत ने राजा के कक्ष में जाकर उसके माथे पर हाथ रखकर देखा तो उन्हें अहसास हो गया कि राजा का निधन हो चुका है। श्री बाहत ने अपना माथा पीट लिया। वे बहुत दुखी और चिंतित हो गए।
उन्होंने तुरंत महात्मा जी से कहा, “महात्मा जी, राजा मर चुका है। आप यहाँ से तुरंत प्रस्थान करें और कहीं और जाकर विश्राम करें। मेरे ऊपर तो मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है, झेलूँगा उसे। जो किस्मत में होगा, उसे कौन टाल सकता है? आप तुरंत यहाँ से निकल लें। ऐसा न हो, राजा के कर्मचारी आपको पकड़कर कारागार में डाल दें।”
महात्मा ने श्री बाहत से कहा, “सुनो मित्र, अभी भी एक उपाय है।”
इस पर श्री बाहत ने आशा भरी नजरों से महात्मा जी की ओर देखा। महात्मा जी एक बहुत ही पहुँचे हुए सिद्ध पुरुष थे। उनके पास असाधारण आध्यात्मिक शक्ति थी जिसके बल पर ये अपनी आत्मा को किसी के भी शरीर में प्रवेश करा सकते थे।
उन्होंने श्री बाहत से कहा, “राजा के शरीर को एक कमरे में सुरक्षित रख दिया जाए। मैं अपनी आत्मा राजा के शरीर में डाल दूँ।”
श्री बाहत ने महात्मा के चरण छू लिए और प्रार्थना की, “महाराज, मैं आपके कहे अनुसार ही आपके शरीर की सुरक्षा करूँगा। बस, आप राजा के प्राण लौटा दें। तभी मेरे प्राण बच सकेंगे।”
महात्मा ने कहा, “तथास्तु।”
उसी समय राजा के शरीर में महात्मा जी की आत्मा प्रवेश कर गई। राजा उसी पल उठकर खड़ा हो गया। उसने देखा कि राजवैद्य हाथ जोड़े खड़ा है।
राजा ने कहा, “वैद्य जी, अब तो मुझे बिल्कुल ठीक लग रहा है। मैं भला-चंगा हूँ, लगता है मेरी बीमारी दूर हो गई।”
श्री बाहत ने राहत की साँस ली। सिवाय श्री बाहत के यह बात किसी को ज्ञात नहीं थी कि राजा के शरीर में एक महात्मा की आत्मा ने डेरा डाल लिया है।
इसी बीच श्री बाहत ने महात्मा जी के शरीर को एक साफ-सुथरे कक्ष में लिटा दिया और उसकी सुरक्षा का जिम्मा भी खुद ले लिया।
राजा के स्वस्थ होने की खबर पूरे कश्मीर में फैल गई। लोग खुशियाँ मनाने लगे, जगह-जगह उत्सव होने लगे।
पर सबसे अधिक अचरज की बात यह थी कि लोगों ने देखा, स्वस्थ होने बाद राजा का स्वभाव बदल सा गया है। वह पहले की तरह कठोर नहीं रहा। अब उसने खूब उदारता से गरीबों को दान देना शुरू कर दिया। कई-कई सालों से जो निरपराधी कैद में पड़े हुए थे, उन्हें मुक्त कर दिया गया। जो हिंदू लोग राजा की क्रूरता के कारण राज्य छोड़कर चले गए थे, राजा ने उनसे अपील की कि वे सभी लौट आएँ। उनकी सुरक्षा और रोजगार का जिम्मा राजसत्ता का होगा।
राजा अब पहले की तरह कठोर और गुस्सैल नहीं रह गया था। पर श्री बाहत यह सोचकर चिंता में पड़ गए कि एक न एक दिन तो महात्मा जी की आत्मा राजा के शरीर से निकलकर अपने शरीर में जाएगी। तो उस दिन क्या होगा? क्या कश्मीर की जनता को यह अधिकार नहीं कि उसका दयालु राजा उम्र भर ऐसे ही दयालु रहे?
श्री बाहत के दिमाग में तुरंत ही एक कठोर विचार आया। राजवैद्य ने सोचा कि अगर महात्मा जी के शरीर का अंतिम संस्कार कर दिया जाए, तो फिर तो उनकी आत्मा राजा के ही शरीर में रहेगी न? और जब तक महात्मा की आयु पूरी न होगी, तब तक कश्मीर की प्रजा पर एक दयालु और उदारमना राजा की कृपा दृष्टि बनी रहेगी।
श्री बाहत ने यह कठोर फैसला ले लिया। उसने अपने घर आकर महात्मा के शरीर को एक चादर में लपेटा और पहले से ही तैयार एक चिता पर रखकर अग्नि प्रज्ज्वलित कर दी। कुछ ही देर में सब कुछ नष्ट हो गया।
राजवैद्य ने चैन की साँस ली कि राजा के शरीर में अब महात्मा जी की आत्मा अपनी आयु पूरी होने तक रहेगी और प्रजा को अनेक वर्षों तक एक दयालु राजा का खुशहाल शासन मिलेगा।
इसके बाद जैनुलाबदीन ने अनेक वर्षों तक कश्मीर में राज्य किया। उसकी प्रजा बड़ी सुखी थी। लोग ईश्वर को धन्यवाद देते थे कि ईश्वर ने उनके लिए इतना उदार राजा भेजा। लोग उसे प्यार से ‘बड्डशाह’ कहने लगी यानी ‘महान राजा’। आज भी जहाँ कहीं बड्डशाह का नाम आता है ,तो उसकी दयालुता के किस्से खुलते चले जाते हैं।
पर बहुत कम लोग जानते हैं कि इस क्रूर राजा को दयालु बनने वाले सच्चा वीर और बलिदानी कौन है? जो काम तीर और तलवार भी नहीं कर सकी, वह एक बुद्धिमान राजवैद्य ने किया और कश्मीर में लंबे समय तक अमन-चैन और खुशहाली छा गई।
ये कहानी ‘शौर्य और बलिदान की अमर कहानियाँ’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानी पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Shaurya Aur Balidan Ki Amar Kahaniya(शौर्य और बलिदान की अमर कहानियाँ)
