Hindi Kahani: ‘और बता क्या हाल है?
‘अपना तो कमरा है, हाल कहां है?
‘ये मसखरी की आदत नहीं छोड़ सकती क्या?
‘क्या करूं आदत है, बुढ़ापे में क्या छोड़ूं?
‘साढ़े पांच बज गए, मेघना नहीं आई?
‘बुढ़ऊ झिला रहा होगा।
‘तू तो ऐसे बोल रही है, जैसे तेरे वाले की जवानी फूटी पड़ रही हो।
‘वो तो फूट ही रही है, तुम जल क्यों रही हो?
‘मैं क्यों जलूंगी भला! हम तीनों में से कौन है, जो जवान से प्रेम कर रहा है। तीनों ही तो प्रेमी हाफ सेंचुरी तक या तो पहुंचने वाले हैं या पहुंच गए हैं।
‘ले, मेघू आ गई।
‘हाय!
‘क्या है बे, किस बात पर बहस कर रहे हो?
‘ये बे-बे क्या बोलती है रे तू?
‘और तुम ये तू-तू क्या करती रहती हो?
‘अरे हमारे इंदौर में ऐसे ही बोलते हैं, तू। जब पुच्ची करने का मन करता है न सामने वाले को तो तू ही बोलते हैं।
‘क्यों आज तेरे हीरो ने पुच्ची नहीं दी क्या, जो मुझे देख कर ‘तू बोलने का मन कर रहा है। स्नेहा, मुझे इस धारा 377 से बचाओ।
‘अब तू भी बता ही दे, ये बे क्या होता है रे?
‘फिर तू?
‘अच्छा बाबा, तुम-तुम, ठीक?
‘हां तो मैं कह रही थी, ये बे है मेरे नए वाले की सिग्नेचर ट्यून का जवाब। वह फोन पर मार डालने वाले अंदाज़ में कहता है, ‘हाय बेबी और बदले में मैं हमेशा कहती हूं, ‘क्या है बे?
‘अच्छा अब ये दिल पर हाथ रख कर गिर पड़ने की एक्टिंग अपने कमरे में जाकर करना। पहले बताओ रविवार कैसा बीता?
‘गिर कौन रहा है डॉॄलग, मुझे तो बस उसका ‘हाय बेबी याद आ गया।
‘तो जल्दी बता कल तू कहां गई थी।
‘आभा, फिर तू। ठीक से बोलो यार। प्लीज़।
‘ओके बाबा। अब मैं तुम्हारे लखनवी अंदाज़ में कहूंगी, हुजूर आप। ठीक?
‘अच्छा, लेकिन पहले मैं नहीं बताऊंगी कि कल क्या हुआ था। पहले ही तय हो गया था कि हम तीनों जब भी अपने रविवारी प्रेमियों से मिलेंगे, तब स्नेहा सबसे पहले बताएगी कि रविवार का उद्धार कैसे हुआ?
‘पिछले छह महीने से हम प्रेम में हैं। तुम्हें लगता है हमारे जीवन में कुछ नया होने वाला है? मुझे लगता है हम ऐसे ही सप्ताह में एक दिन अपने प्रेमी से मिल कर अधूरी इच्छाओं के साथ मर जाएंगे।
‘वाऊ! मेरे मन में क्या आइडिया आया है। हम रविवार के दिन मरेंगे। मौत भी आई तो उस दिन, जो सनम का दिन था। वाह-वाह! तुम लोग भी चाहो तो दाद दे दो।
‘आभा, हम यहां तुम्हारी सड़ी शायरी सुनने नहीं इक_ा हुए हैं।
‘मैं यहीं पर तुम्हारा सर तोड़ दूंगी।
‘अब तुम भी कुछ न कुछ तोड़ ही दो। कल उसने दिल तोड़ा, आज सुबह मैंने मर्तबान तोड़ा, अब तुम सर तोड़ दो।
‘अगर आप दोनों के डायलॉग का आदान-प्रदान हो गया हो तो क्या हम लोग कुछ बातें कर लें।
‘जी स्नेहा जी, मैं आपको अध्यक्ष मनोनीत करती हूं और आप बकना शुरू करें। बोलने लायक तो हमारे पास कुछ बचा नहीं।
‘तुम लोगों को नहीं लगता कि हम तीनों ही दो बच्चों के बाप से प्यार कर रही हैं। हम तीनों ही जानती हैं कि हमारा कोई भविष्य नहीं, फिर भी…।
‘बहन, फिलॉस्फी नहीं, स्टोरी। आई वॉन्ट स्टोरी।
‘ओए, ये स्टोरी का चूज़ा अपने दफ्तर में ही रख कर आया कर। हम दोनों को पता है कि तू एक नामी-गिरामी अखबार के कुछ पन्ने गोदती है।
‘हाय राम! तुम दोनों कितनी खराब लड़कियां, मेरा मतलब औरतें हो! क्या मैं कभी कहती हूं कि तुम अपने कथक के तोड़े और तुम अपने बेकार के नाटक की एक्टिंग वहीं छोड़ कर आया करो।
‘साली, थियेटर में मैं काम करती हूं और हाथ नचा-नचा कर एक्टिंग तू करती है।
‘अब तेरी नौटंकी कंपनी तुझे नहीं पूछती तो मैं क्या करूं। आई एम बॉर्न एक्ट्रेस।
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‘रुक, अभी बताती हूं। तेरी चुटिया कहां है?
‘स्नेहा, आभा, प्लीज़ यार। तुम दोनों कभी सीरियस क्यों नहीं होती हो?
‘सीरियस होने जैसा अभी भी हमारी जि़ंदगी में कुछ बचा है क्या मेघा? तुम्हें लगता है कि हमें जहां सीरियस होना चाहिए, वहां भी हम ऐसे ही हैं, अगंभीर? क्या बताएं यार हर हफ्ते आकर? वही कि पूरा दिन उसके फ्लैट पर रहे, हर पल यह सोचते हुए कि कोई आ न जाए। यह सोचते हुए कि वो इस बार तो कहे कि वो तलाक ले लेगा। और क्या बताएं एक-दूसरे को कि जब कभी उसे बांहों में भर कर प्यार करने का मन किया, उसी वक्त उसकी पत्नी का फोन आ गया। या मैं तुम्हें यह बताऊं कि उसके होंठ अब मखमली नहीं लगते, जलते अंगारे लगते हैं।
‘हां, शायद हम सब का वही हाल है। तुम दोनों के प्रेमी की बीवियां तो दूसरे शहर में रहती हैं, इसलिए तुम दोनों उसके घर जाती हो। लेकिन मेरे वाले की तो इसी शहर में रहती है। वह मेरे घर आता है तो जान सांसत में रहती है। मकान मालकिन जिस दिन उसे देखेगी, उसके कुछ घंटों में निकाल बाहर करेगी। तुम दोनों से ही छुपा नहीं है कि वह क्या चाहता है और तुम दोनों ही जानती हो कि शादी से पहले मैं वह सब नहीं करूंगी। इस बात पर एक बार फिर बहस हुई।
‘मेरा वाला भी इसी बात पर अड़ा है। कहता है, ‘मुझमें पवित्रता बोध ज़्यादा है।
‘वह मुझे कहता है, मुझ में ‘सांस्कृतिक जड़ता है।
‘आभा, हम तीनों में से तुम ही सबसे ज़्यादा बोल्ड हो। तुम कैसे इस चक्कर में फंस गईं? तुम्हें तो कोई भी लड़का आसानी से…
‘मिल सकता था, यही न? आसानी से मर्द मिलते हैं रानी, लडक़े नहीं। मर्द भी शादीशुदा, दो बच्चों के बाप। कुंआरे नहीं।
‘तुम्हें ऐसा क्यों लगता है?
‘मुझे क्या लगता है, हमारी उम्र की किसी भी कुंआरी लड़की से पूछ लो। सभी को ऐसा ही लगता है।
‘पर ऐसा होता क्यों है? जब लड़के शादी की उम्र में होते हैं, शादी नहीं करते। जब वही लड़के मर्द बन जाते हैं तो कहते हैं, पहले क्यों नहीं मिलीं?
‘क्योंकि शादी के बाद वे जानते हैं कि हम उनसे किसी कमिटमेंट की आशा नहीं रख सकते।
‘लेकिन मेरा वाला कहता है कि वह तलाक ले लेगा और मुझ से शादी करेगा।
‘कब? कब उठाएगा वह ऐसा वीरोचित कदम? सुनूं तो ज़रा।
‘पांच साल बाद।
‘इतनी धीमी आवाज़ में क्यों बोल रही हो? यदि तुम्हें यकीन है तो इस बात को तुम्हें बुलंद आवाज़ में कहना चाहिए था, लेकिन मुझे पता है तुम्हारी आवाज़ ही तुम्हारा यकीन दिखा रही है।
‘उसके बच्चे छोटे हैं अभी, इसलिए…
‘हम दोनों वाले के तो बच्चे भी बड़े हैं, फिर भी ऐसा कुछ नहीं होगा, हम दोनों ही जानती हैं। क्यों स्नेहा?
‘हूं।
‘समझने की कोशिश करो बच्ची, हम जि़ंदगी मांग रही हैं। उनकी जि़ंदगी। सामाजिक ङ्क्षज़दगी, आर्थिक जि़ंदगी, इज्जत की जि़ंदगी। वह जि़ंदगी हमें कोई नहीं देगा। इसलिए नहीं कि हम काबिल नहीं हैं, इसलिए कि हमें आसानी से भावनात्मक रूप से बेवकूफ बनाया जा सकता है। वो तीनों जो हमसे चाहते हैं, वह शायद हम कभी नहीं कर पाएंगी। हम उनका न हिस्सा बन सकती हैं, न ही हिस्सेदार। अगर ऐसा हो जाए तो हम तीनों ही किसी मैटरनिटी होम में बैठ कर बाप के नाम की जगह या तो मुंह ताक रही होतीं या अरमानों के लाल कतरे नाली में बह जाने का इंतज़ार कर रही होतीं।
‘तुम बोलते वक्त इतनी कड़वी क्यों हो जाती हो?
‘मिठास का स्त्रोत सूख गया है न।
‘तो इस नमकीन दरिया को क्यों वक्त-बेवक्त बहाया करती हो?
‘मैं थक गई हूं। सच में। मैं उसके साथ रहना चाहती हूं, किसी भी कीमत पर।
‘वो हम तीनों में से कौन नहीं चाहता? पर वो बिकाऊ नहीं हैं न तो हम कीमत क्या लगाएं?
‘लेकिन हम उनकी तानाशाही के बाद भी क्यों हर बार उनकी बांहों में समाने को दौड़ पड़ती हैं?
‘क्योंकि हमारी प्रॉब्लम अकेलापन है।
‘मुझे लगता है, हम तीनों की प्रॉब्लम ज़्यादा इनवॉल्वमेंट है।
‘ऊंह हूं, हम तीनों की प्रॉब्लम प्यार है।
‘हम लोग उम्र के उस दौर में हैं, जहां हमारे पास थोड़ी प्रतिष्ठा भी है, थोड़ा पैसा भी है। बस नहीं है तो प्यार। जब हम कोरी स्लेट थे तो हमारे सपने बड़े थे। उस वक्त जो इबारत हम पर लिखी जाती, हम उसे वैसा ही स्वीकार लेते, लेकिन अब… अब स्थिति बदल गई है। हमने दुनिया देख ली है। हमें पता चल गया है कि हम सिर्फ भोग्या नहीं हैं। हम भी भोग सकती हैं।
‘कुंआरे लडके हमें तेज़ समझते हैं, लेकिन शादीशुदा मर्दों को इतने दिन में पता चल जाता है कि पत्नी की प्रतिष्ठा और पैसे की भी कीमत होती है। काम के बोझ में फंसे मर्दों को पता चल जाता है कि कामकाजी लड़कियां नाक बहते बच्चों को भी संभाल सकती हैं और बाहर जाकर पैसा भी कमा सकती हैं, लेकिन जब तक वह सोचते हैं, तब तक देर हो चुकी होती है।
‘पर देर क्यों हो जाती है?
‘जब दिन होते हैं तो वे बाइक पर किसी कमसिन को बिठा कर घूमना पसंद करते हैं। तब करियर की बात करने वाली लड़कियां अच्छी लगती हैं। साधारण नैन-नक्श पर भी प्यार आता है, लेकिन जैसे ही बात शादी की आती है, लड़के अपनी मां की शरण में पहुंच जाते हैं। तब बीवी तो खूबसूरत और घरेलू ही चाहिए होती है। तब अपनी क्षमता पर घमंड होता है। हम काम करेंगे और बीवी को रानी की तरह रखेंगे। बच्चे रहे सहे प्रेम को भी कपूर बना देते हैं। महंगाई बढ़ती है और दफ्तर की आत्मविश्वासी लड़की देख कर एक बार फिर दिल डोल जाता है। और हमारी तरह बेवकूफ लड़कियों की भी कमी नहीं, जो उनकी तारीफ के झांसों में आ जाती हैं और फिर वही बीवी बनने के सपने देखने लगती हैं, जिससे भाग कर वे मर्द हमारी झोली में गिरे थे!
‘फिर हम क्या करें?
‘अपनी शर्तों पर जिओ, अपनी शर्तों पर प्रेम करो। जो करने का मन नहीं, उसके लिए इंकार करना सीखो, जो पाना चाहती हो, उसके लिए अधिकार से लड़ो।
‘पर वो हमारी शर्तों पर प्रेम क्यों करने लगे भला?
‘क्योंकि हम उनकी शर्तों पर ऐसा कर रही हैं। कोई भी अधिकार लिए बिना, हमारे कारण उन्हें वह सुकून का रविवार मिलता है।
‘फिर?
‘फिर कछ नहीं मेरी शेरनियो, जाओ फतेह हासिल करो। अगला रविवार तुम्हारा है…।
हम लोग उम्र के उस दौर में हैं, जहां हमारे पास थोड़ी प्रतिष्ठा भी है, थोड़ा पैसा भी है। बस नहीं है तो प्यार। जब हम कोरी स्लेट थे तो हमारे सपने बड़े थे। उस वक्त जो इबारत हम पर लिखी जाती, हम उसे वैसा ही स्वीकार लेते, लेकिन अब स्थिति बदल गई है। हमने दुनिया देख ली है। हमें पता चल गया है कि हम सिर्फ भोग्या नहीं हैं।
गृहलक्ष्मी के पाठकों के लिए इस बार $खासतौर पर प्रस्तुत की जा रही यह कहानी पिछले का$फी समय से निरंतर साहित्यिक चर्चाओं का केंद्रबिंदू रही है। अनेक पुरस्कार-सम्मान भी इस कहानी के हिस्से में आ चुके हैं।
