Hindi Love Story: मैंने निज़ामुद्दीन से ट्रेन ली अम्बिकापुर आने के लिए। संपर्क क्रांति मुझे अनुपपुर तक छोड़ती और रायपुर की ओर निकल जाती। अनुपपुर से मुझे ट्रेन बदल कर या कार से अम्बिकापुर पहुँचना होता। उन दिनों मैं अकेले और ए.सी. टू टियर से सफ़र करना पसंद करता था, पर रिजर्वेशन ना मिल पाने से मुझे थ्री टियर की साइड लोवर बर्थ मिली।
“यह सीट तो मेरी है।” उसने अपनी एअर बैग सीट के नीचे सरकाया और बैकपैक मेरी सीट पर मेरे पैरों की ओर रखती हुई बोली।
“अरे! मैं चेक करता हूँ।” मैंने अपनी टिकट फिर से चेक की और पाया कि, मैं सही सीट पर हूँ।
मैंने कहा- “शायद आपको कुछ कन्फ्यूजन है, मैं सही सीट पर हूँ।” उसने फोल्ड की हुई टिकट पीछे से दिखाते हुए कहा- “ये देखिए, टी.टी. ने मुझे यही नम्बर दिया है।”
“कोई बात नहीं। आप बैठिए। टी.टी. के आने से कन्फर्म कर लेंगे।”
उसने बड़े ही विश्वास से अपनी पानी की बॉटल स्टैण्ड में लगाई और मोबाइल चार्ज में लगाकर मेरे सामने बैठ, मुझसे बातें करने लगी।
“आप कहाँ तक जाएँगे?”
“अनूपपुर। और आप?”
“बिलासपुर। बिलासपुर घर है मेरा। दिल्ली रहकर एम.बी.ए. कर रही हूँ। कितनी ज़्यादा गर्मी है न यहाँ?” उसने पसीना पोंछते हुए कहा, जो कोच में सामान उठा कर आने-जाने से ज़्यादा ही बह रहा था।
“हाँ गर्मी तो है। बिलासपुर में कहाँ रहती हैं आप?” और टी.टी. के आने से पहले वह अपने घर, पापा की सर्विस और दिल्ली में पी.जी. का नक्शा समझा चुकी थी।
“आपकी बर्थ अपग्रेड हो गई है।” टी.टी. ने मेरी टिकट के पीछे बगल वाली टू-टियर कोच की आख़िरी सीट नम्बर लिखते हुए कहा।
अरे वाह! भगवान यही चाहता था शायद। मैंने उस लड़की से पूछा- “आपकी भी सीट अपग्रेड हुई है क्या?”
“हाँ।” उसने मुस्कान छिटकी। मैंने सोचा, शायद वह मेरे साथ गपशप करना चाहती हो या उसे मैं पहली नज़र में चॉकलेटी लगा हूँ जिसके साथ वह कुछ वक़्त बिताना चाहती हो। यह सोच ख़ुश कर गई। टी.टी. के जाने के काफी देर बाद तक मैं वहीं बैठा रहा।
“मैं अपना सामान रख देता हूँ वहाँ।” मैंने एक बैग और पानी की बॉटल अपनी सही सीट पर ट्रांसफ़र की और जान-बूझ कर अपने खाने का पार्सल उसकी सीट पर ही रहने दिया। मैंने देखा मेरी सीट आख़िरी की दो सीटों में ऊपर की सीट थी और नीचे वाले सज्जन या दुर्जन जो भी आने वाले हों, फिलहाल खाली थी।
मैं अपना खाने का पार्सल उसकी सीट पर लेने गया, मैं सोच ही चुका था कि आज डिनर इस बातूनी के साथ।
“आइए खाना खाते हैं।”
“ओके, मैं अपना भी टिफिन ले लेती हूँ।” शायद उसने भी सोच रखा था कि, मुझे ऐसा कहना चाहिए था और मेरे कहते ही वह मेरी सीट की ओर ही जाएगी।
खाली लोवर बर्थ का भरपूर फ़ायदा उठाते हुए हमने खाना खाया। मेरा वाला रेस्टोरेंट का पार्सल ज़्यादातर उसने और उसकी पी.जी. वाली आँटी की बनाई पत्ता गोभी की सब्जी, अचार और पराठा मैंने खाया। अनजान लोगों से ट्रेन में खाना-पीना शेयर नहीं करने को लेकर बचपन से पैरेन्ट्स समझाते आए हैं। पर इस पर अविश्वास का कोई कारण मुझे दिखा नहीं और मैं जानता भी था कि, जो भरोसा नहीं करते उन पर भी किसी तरह भरोसा किया नहीं जा सकता।
खाने के बाद मैंने अपनी ई-सिगरेट निकाली और स्टाइल से पीने लगा।
“अरे वाह, मैंने सिगरेट तो पी है लेकिन ई-सिगरेट नहीं।”
“लो-पीयो।” मैंने उसकी ओर सिगरेट बढ़ा दी और हम नशों की बातें करते आगरा तक पहुँचे, जब एक सज्जन चलती ट्रेन में ही अवतरित हुए और कहा- “आपके कौन-कौन से नम्बर हैं?”
“मेरी सीट ऊपर वाली है, आप बैठिए हम ऊपर बैठते हैं।” मैंने कहा और हम दोनों ऊपर वाली बर्थ पर उसके घर, शहर और कॉलेज की बातें करते रहे। बातें थोड़ी सोच कर करनी पड़े कन्वर्सेशन के उस मोड़ पर मैंने पूछा-
“मूवी देखें? मेरे लैपटॉप में बहुत सी सेव हैं, नेटवर्क का इश्यू नहीं आएगा।”
“हाँ बिल्कुल, मुझे वैसे भी जल्दी नींद नहीं आती।”
निश्चित ही हमने सिर्फ़ फिल्म देखी; देर रात उसने विदा ली और अपनी बर्थ की ओर गई।
सुबह आठ बजे मुझे उतरना था, थोड़ा पहले ही नींद खुली और फ्रेश होकर जब तक मैंने सामान समेटा, ट्रेन अनूपपुर स्टेशन में रुक रही थी।
छोटा, जाना-पहचाना स्टेशन और सामान की कोई फ़िक्र ना करते हुए प्लेटफार्म में सामान छोड़ मैं उसके कोच में गया और देखा कि वह तैयार होकर बैठी थी, शायद मेरा इंतज़ार रहा हो।
“आ गया अनूपपुर?” उसने कहा।
“हाँ…चलता हूँ। बॉय…” मुस्कुराते हुए मैंने कहा और मुझे इसलिए तुरंत ही लौटना पड़ा क्यूँकि ट्रेन ने आगे बढ़ना शुरू कर दिया था। उसने भी मुस्कुराते हुए ‘बॉय’ कहा और “फिर मिलते हैं।” ना मुझे उसका पूरा नाम मालूम था ना मैंने मोबाइल नम्बर लिया। अब चेहरा भी भूल सा गया है, याद है तो एक नास्तिक को भगवान का प्रसाद।
ये कहानी ‘हंड्रेड डेट्स ‘ किताब से ली गई है, इसकी और कहानी पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Hundred dates (हंड्रेड डेट्स)
