Hindi Immortal Story: “भारत में अंग्रेजी सत्ता अन्याय पर टिकी है। भारत के लोगों के साथ भारी अत्याचार हो रहा है और उनके अधिकारों का दमन किया जा रहा है। यह गलत है। मैं स्वयं अंग्रेज हूँ, पर अंग्रेजी शासन के अत्याचारों को पसंद नहीं करती। मैंने निश्चय किया है कि भारत की आजादी और उसकी दुखी पीड़ित जनता की सेवा में अपना पूरा जीवन लगा दूँगी। चाहे जो भी मुश्किलें आएँ और चाहे जितना भी विरोध झेलना पड़े, मैं अपने कदम पीछे नहीं हटाऊँगी।”
ये आग उगलते विद्रोही शब्द थे नेल्ली सेनगुप्ता के, जिन्होंने अंग्रेज अधिकारियों के माथे पर गहरी शिकन डाल दी थी। पहले तो नेल्ली को धमकाकर चुप कराने की कोशिश की गई, पर जब लौह इरादों वाली इस दृढ़ महिला ने झुकने से साफ इनकार कर दिया, तो अंग्रेजों ने उसे जेल में डाल दिया। इससे नेल्ली सेनगुप्ता का नाम भारत के गाँव-गाँव और गली-गली में फैल गया। गाँव के अनपढ़ और साधारण पढ़े-लिखे लोग भी जान गए कि भारत की बहू बनकर एक ऐसी अंग्रेज महिला आई है जिसने पूरी अंग्रेजी सत्ता को ललकार दिया है। यह जानकर वे गर्व और आनंद से भर गए। उधर सारा विश्व अंग्रेजों की क्रूरताओं और अमीनवीय अत्याचरों के बारे में जानकर, विरोध दर्ज करने लगा। यों एक बहादुर अंग्रेज स्त्री ने ही भारत में अंग्रेजी राज को खासा शर्मसार, बल्कि पसीने-पसीने कर दिया था।
12 जनवरी 1876 को कैंब्रिज में जनमीं नेल्ली कुछ अलग विचारों की थीं और वे सिर्फ जन्म या नस्ल के आधार पर किसी को छोटा मानने के खिलाफ थीं। आगे चलकर जब उन्होंने भारत के स्वाधीनता संग्राम की मूल प्रेरणा को समझा और दुखी भारतवासियों के दिलों का दर्द पास जाकर महसूस किया तो उनके ये विचार और दृढ़ हो गए तथा वे अपने पति जतिनमोहन सेनगुप्ता के साथ अन्यायी अंग्रेज सत्ता से लड़ने के लिए आगे आईं।
शुरू में जब जतिनमोहन सेनगुप्ता से जब उनका विवाह हुआ, तो जतिन के परिवारजनों और बंगाल के ने इसे ज्यादा पसंद नहीं किया था। सोचा गया कि नेल्ली के लिए बंगाल की जीवन-शैली और परंपराओं में ढल पाना असंभव होगा। पर नेल्ली ने किसी भारतीय वधू की तरह इस तरह खुद को भारतीय रंग-ढंग में ढाला कि देखने वाले सचमुच चकित और चमत्कृत रह गए। फिर उनकी विनम्रता और सुरुचि का इतना प्रभाव पड़ता कि जो भी उनसे एक बार मिल लेता, वही उनका प्रशंसक बन जाता। धीरे-धीरे जिन लोगों के मन में इस विवाह को लेकर संदेह था, वे ही जतिनमोहन से कहने लगे कि उन्होंने अपने लिए एक आदर्श पत्नी चुनी है। और सच तो यह है कि जतिन सेनगुप्त जिन्हें भारतीय स्वाधीनता संघर्ष के इतिहास में देशभक्त सेनगुप्त कहकर भी याद किया जाता है—की अपार लोकप्रियता के पीछे नेल्ली के इस उदारतापूर्ण व्यवहार का भी हाथ था, जिसके सभी कायल और प्रशंसक थे। नेल्ली सरल विनम्र होने के साथ-साथ अत्यंत निर्भय महिला भी थीं। पति जतिनमोहन को स्वाधीनता संग्राम में भाग लेते देख, वे पूरी तरह उनका साथ देने के लिए कंधे से कंधे मिलाकर आगे आ गईं। सन् 1921 में उन्हें जेल जाना पड़ा। पर जेल के कष्टों ने उनके भीतर की प्रबल राष्ट्रीय भावनाओं को कम करने की बजाय और बढ़ा दिया। वे और अधिक सक्रियता से स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़ीं।
सन् 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान उनके एक भाषण को आपत्तिजनक करार देकर अंग्रेज सत्ता ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। चार महीने वे जेल में रहीं, पर अंग्रेज सरकार उनके लौह इरादों को नहीं बदल सके। जनता उन्हें जी-जान से चाहती थी और पति के साथ-साथ खुद उनकी लोकप्रियता दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी। सन् 1933 में नेल्ली के व्यापक योगदान को स्वीकार करते हुए उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया तो सभी ने इसकी खुले दिल से प्रशंसा की। सचमुच नेल्ली इस बात की नजीर थी कि कोई विदेशी महिला जब भारत आकर यहाँ के लोगों और जनता से प्रेम करने लगती है, तो उसका आदर्श व्यक्तित्व, जीवन और लड़ाइयाँ किस रूप में सामने आती हैं। स्वयं अंग्रेज होते हुए भी अंग्रेजी सत्ता का तीखा विरोध करते हुए उन्हें जरा भी झिझक न हुई।
सारी दुनिया में लौह इरादों वाली इस बहादुर अंग्रेज महिला के संघर्ष की गूँजें-अनगूँजें पहुँचीं। इससे देश-विदेश के क्रांतिकारियों और स्वाधीनता सेनानियों को बल मिला और सारी दुनिया भारत की आजादी की लड़ाई के बारे में जान गई। नेल्ली सेनगुप्ता ने यह दिखा दिया कि एक महिला भी चाहे तो अपने लौह इरादों से बड़े से बड़े अन्यायी शासन को हिला सकती है।
ये कहानी ‘शौर्य और बलिदान की अमर कहानियाँ’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानी पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Shaurya Aur Balidan Ki Amar Kahaniya(शौर्य और बलिदान की अमर कहानियाँ)
