Hundred Dates
Hundred Dates

Hindi Love Story: “अब लग रहा कुछ काम निपटे हैं।” उसने गहरी साँस छोड़ते हुए कहा। उसने कहा था कि मैं ऑफिस से लौटते समय बाज़ार से उसे भी लेते चलूँ, आज उसकी गाड़ी उसका भाई ले गया है और सामान बहुत है उसके पास।

“क्या काम बाकी थे?” उसकी बुआ की लड़की की शादी थी, मैडम की ख़रीदारी पूरी नहीं हो पा रही थी।

“देखो, ये इअररिंग कैसे हैं?” उसकी शक्ल से थकान और जंजाल तुरंत गायब होते दिखे और उसने बाल हटाकर कानों से इअररिंग लगाते हुए मुखड़ा मेरी ओर उभारा।

“अच्छे हैं, इसके लिए इतना परेशान थी?” मुझे इअररिंग के फैशन का पता कुछ भी नहीं था।

“रुको, और दिखाती हूँ…”

उसने एक-एक करके दो-तीन बालियाँ, एक पेन्डेन्ट सेट और एक अँगूठी दिखाई। मुझे उन्हें देखने से ज़्यादा दिलचस्पी उस ऊर्जा को महसूसने में थी, जो उसमें बह रही थी।

“सब अच्छा मिल गया ना?” उसने पूछा या बताया, पता नहीं।

“हाँ, अगर अच्छा नहीं होता तो तुमने लिया ही क्यूँ होता?”

“वाह, ये भी कोई बात हुई। तुम्हें कैसा लगा? और वो पेन्डेन्ट, वो तो डायमंड का है; पहली बार अकेले लिया, वरना कोई ना कोई तो साथ रहता ही। सबके नाटक थे आने में, तो मैं गुस्से से अकेले ही आई थी। बताओ ना कैसा लगा?”

“तुम अकेले ही बहुतों पर भारी हो डार्लिंग।” मैंने मुस्कराते हुए कहा और जो कहना चाहता था, उससे बचने की कोशिश की।

“हाँ, हथिनी हूँ न मैं। बकवास मत करो, ये बताओ की लगे कैसे? पसंद नहीं आए क्या?”

“सच कहूँ?”

“और क्या तुम मुझसे झूठ भी बोलते हो?” उसने बेपरवाही से ही कहा था क्योंकि तवज्जो अब भी ज़ेवरों को ही थी।

“अच्छा सुनो। मैंने ठीक से उन्हें देखा नहीं; ना ही मुझे इन सब चीजों के बारे में मालूम है कि, किसे सुंदर कहा जाए। मुझे तुम्हारी चमक अच्छी लगती है, ये पत्थर तुम्हें क्या सज़ाएगें; ये अच्छे लगने लगेंगे अगर तुम पहनो।” मैंने एक छोटी नज़र उसके ख़ुश होते चेहरे पर डाली और मुस्कराते हुए कहा।

“मेरे बटरु…” कह कर उसने दाँत भीचें और सीट से उठकर यह बात नज़रअंदाज़ करते हुए मुझे ज़ोरदार चूमा कि मैं ड्राइव कर रहा हूँ।

“ओए…” डिवाईडर से ठुकते हुए मेरी कार बाल-बाल बची।