भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
उसके कमरे में आराइश-ओ-जेबाइश (सजावट-बनावट) का सामान बहुत कम था। तस्वीरों से भी उसे कोई खास दिलचस्पी नहीं थी। अपने बिस्तर की सामने वाली सफेद दीवार पर सिर्फ एक तस्वीर लगी हुई थी और वो भी उसकी अपनी तस्वीर थी जिसमें उसका हँसता-मुस्कराता चेहरा मौजूद था। अपनी ये तस्वीर उसको सबसे ज्यादा पसंद थी, जिसमें फिक्र की किसी लकीर ने अभी उसके चेहरे पर अपने निशान सब्त (अंकित) नहीं किए थे। इस चेहरे के अकब (पार्श्व) में कई किस्म के फूल खिले थे, जिनमें ज्यादा तादाद गुलाबों की थी और गुलाबों के इस मंजर ने तस्वीर को मजीद हसीन (अतिरिक्त सुंदर) बना दिया था। उसके बिस्तर की साइड-टेबल पर लैम्प, घड़ी, टूथ पिक और सिगरेट का डिब्बा, एक कापी-कलम रखा रहता। इसमें वो अपनी रोज की मीटिंग का मन्सूबा तरतीब देता था। घर में सिर्फ बूढ़ी दादी, बीवी और एक मुलाजिमा (नौकरानी) रहती थीं, जो काम के बोझ को देखकर उसे अपना ख्याल रखने को कहतीं तो वो मुस्करा देता। वो अपने घरवालों से बहुत कम बात करता था, बल्कि ये कहना ज्यादा दुरुस्त होगा कि महज जरूरत पड़ने पर जबान खोलता। उसके घर में किसी चीज की कोई कमी नहीं थी।
उसके हलका-ए-अहबाब (मित्र-मंडली) में बड़े-बड़े कॉरपोरेट अहल-कार (अफसर) और कारोबारी लोग शामिल थे, जो अपने आबा-ओ-अजदाद (पूर्वजों) की तरफ से मिली हुई जमीन-जायदाद को निहायत वसीअ (समृद्ध) कर चुके थे और दिन-ब-दिन इसमें मजीद तरक्की के मंसूबे बनाते रहते। उनके दरमियान रुपया-पैसा, जमीन-जायदाद, गैर मुल्की तफरीहात का जिक्र आम होता। अनुराग भी खुद को इस महफिल का सरगर्म और फआल रुक्न (उद्यमशील सदस्य) बनाने की जद्दोजहद में लगा हुआ था। इस हलके में शामिल तमाम लोगों का एक ही हदफ (लक्ष्य) था कि पैंतालीस साल की उम्र तक जितना हो सके ज्यादा से ज्यादा कमा लिया जाये और बाकी जिंदगी सैरो-तफरीह में गुजारी जाये। अनुराग का भी यही ख्वाब था, क्योंकि उसे मालूम था कि सेल्स की नौकरी की भी एक उम्र होती है। घर पर उसको हमेशा कम्प्यूटर पर झुके या फोन पर किसी से बात करते हुए ही देखा जाता। वो अपनी बीवी के बिस्तर छोड़ने से पहले ही काम पर निकल जाता और जब घर की बत्तियाँ बुझा दी जातीं, बीवी उसके इंतिजार में कमरे की खिड़की से टिके, नीचे खिले गुलाबों को मसरूर (उल्लसित) और हसरत भरे अंदाज में ताक रही होती, तो दरवाजे पर आहट होती। वो रस्मन अलेक-सलेक (औपचारिक अभिवादन) के बाद हाथ-मुँह धोता, खाना खाता और करवट लेकर सो जाता, बीवी बेचैनी से आधी रात तक करवटें बदलती रहती बिलआखिर नींद में डूब जाती।
जिंदगी के हदफ को हासिल करने के लिए उसको सेल्स के हदफ को पूरा करना जरूरी था। महीने के आखिर में उसे अपने बॉस को सारी मीटिंग्स का कच्चा-चिट्ठा फराहम (प्रस्तुत) करना होता था। अपने टारगेट को पूरा करने के लिए वो जद्दोजहद में लगा रहता। उसकी दो मीटिंग कामयाब हो चुकी थीं। उस रात वो अपनी इसी कामयाबी की खुशी को दिल में महसूस करता हुआ घर लौटा। तीसरी और चौथी डील अगले हफ्ते मुकम्मल होने वाली थी उसने याद-दहानी के तौर पर अपने कस्टमर को मैसेज डालने के लिए फोन निकाला, लेकिन वक्त देखकर इरादा मुल्तवी (स्थगित) करने को था कि अचानक अपने टार्गेट को मुकम्मल करने की धुन में मैसेज कर दिया और बिस्तर की तरफ बढ़ गया। सबह होने से पहले कई मर्तबा वो नींद के आलम में फोन की स्क्रीन देख चुका था।
सुबह फोन की घंटी पर उसकी आँख खुली तो हड़बड़ाकर उठ बैठा। कस्टमर का नंबर स्क्रीन पर चमचमा रहा था। उसने मुस्कुराते हुए फोन उठाया-
“जी, सेठ जी! कैसे हैं आप?”.
“बस अनुराग जी, क्या बताएँ, कल शाम माताजी का देहांत हो गया भली-चंगी थीं, अचानक यूँ चट-पट हो गईं।” उन्होंने भीगे हुए लहजे में कहा।
“ओहो…बहुत अफसोस हुआ सुनकर। भगवान ने उनकी उम्र इतनी ही लिखी थी। आप खुद को सम्भालें।”
अनुराग ने ऐसे हालात में मीटिंग का कोई जिक्र नहीं किया और ना ही सेठ जी ने उसे जरूरी समझा, मगर अनुराग के दिल में कहने ना कहने की कशमकश चलती रही और आखिर में उसने फोन बंद कर दिया।
उसके चेहरे का तास्सुर (हाव-भाव) देख बीवी ने पूछा, “सब ठीक तो है? कोई अनहोनी हो गई है क्या? किस का फोन था…?”
…और वो बगैर उससे कुछ कहे बिस्तर से उतरकर गुसल-खाने में घुस गया।
‘कोई बात नहीं, एक-दो दिन की बात है। दोबारा फोन करूँगा और बातों-बातों में डील के बारे में भी पूछ लूँगा। वैसे भी तकरीबन फाइनल ही थी, बस उन्हें अपने साइन करने थे। वो अगले हफ्ते तक कर ही देंगे। ठीक इंसान हैं और उन्हें अपना कारोबार आगे ही बढाना है।’
पानी की ठंडी बूंदें उसके जिस्म को मुसलसल (लगातार) भिगो रही थीं।
“क्या बात है आज आपको ऑफिस नहीं जाना..?” बीवी ने दरवाजा खटखटाया तो वो चौंका।
फौरन तौलिया बाँधकर बाहर निकला और घड़ी की जानिब देखा। ‘आधा घंटा लेट…!’ उसने मुँह में बड़बड़ाया और तैयार होकर बगैर नाश्ता किए गाड़ी की तरफ दौड़ लगा दी। शायद आज उसका चौथा कस्टमर मीटिंग के लिए तैयार हो जाए।
दो दिन बाद उसने सेठ जी को फोन मिलाया और माँ के मुताल्लिक जज्बाती वाबस्तगी (भावनात्मक जुड़ाव) को दरकिनार करते हुए रस्मी तरीका इखतियार किया और अपने मुद्दे पर आ गया
“…तो सेठ जी, आपने साइन करने के बारे में क्या सोचा? मैं कल आपके पास कागजात लेकर आ जाऊँ?”
“कौन से कागजात…?”
“अरे, आपको जो डील फाइनल करनी थी, सारे मामलात तय हो चुके थे।”
“ओह…अच्छा उस बारे में बात कर रहे हैं। अनुराग साहब, बात ये है कि अब मैं वो डील करना नहीं चाहता।”
“लेकिन सर…आपने सब फाइनल कर दिया था…” मामले को सँभालने के लिए वो ‘सर’ का इस्तेमाल जरूर करता था।
“जी, जी, अनुराग जी, आप ठीक कह रहे हैं। लेकिन बात दरअसल ये हुई कि माताजी के देहांत के बाद जायदाद के हिस्से हो गए, इसी कारण मैं ये डील नहीं कर सकता।”
“लेकिन सर, आप कोशिश तो कर सकते हैं। अगर आपको वक्त लेना है तो मैं तैयार हूँ, हम अगले महीने कर लेंगे। आपके नाम पर पैसों का हिसाब भी कंपनी ने कर लिया है। आपको करना ही होगा सर, क्योंकि सारा काम कंप्लीट था बस साइन…” उसने पेशानी (माथे) पर आए पसीने को घबराहट के आलम में साफ किया।
“देखिए अनुराग साहब, सारी बात अपनी जगह लेकिन आपसे जो कह दिया वही सच है, मैं डील करने की परिस्थिति में नहीं हूँ।”
“आप सोचने का वक्त ले सकते हैं।”
“मैंने कह दिया है। मैं फैसला कर चुका हूँ।” ये कहकर उन्होंने फोन काट दिया और अनुराग के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं। उसको अचानक उस खौफ ने आ घेरा कि अपने बॉस से क्या कहूँगा। वो कम्बख्त तो ना सुनने का आदी ही नहीं है। कैसे उसे समझाऊँगा। उसे अपनी कमर से आग के शोले निकलते हुए महसूस हुए, उसने एक हाथ से दूसरे हाथ को दबाया, आँखों को फैलाकर आसमान की तरफ उठाया, एक लंबी साँस छोड़ी और अपने अगले कस्टमर को फोन मिला दिया।
“हेलो सर, कैसे हैं…?”
“बस बढ़िया, भगवान की कृपा है।”
“सर आपके साथ जो डील चल रही थी हमारी, उसके बारे में बात करनी थी।”
“अरे, तो आप इसमें डिलीवरी का कोई टाइम फिक्स नहीं कर रहे हैं फिर बताइए मैं कैसे करूँ डील?”
“सर, हमने आपको बताया था कि कम से कम दो हफ्ते लग जाएंगे। लेकिन मेरी गारंटी है कि दो हफ्ते के अंदर-अंदर डिलीवरी हो जाएगी।”
“भई, मैं इतना लंबा इंतजार नहीं कर सकता ना, मुझे अगले महीने होटल की ओपनिंग करनी है। आप इतना वक्त माँगेंगे तो नहीं चल पाएगा।”
“सर मैं अपने बॉस से बात करके आपको बताता हूँ।” अनुराग ने सोचने वाले अंदाज में पेशानी पर खुजाते हुए कहा।
पूरे रास्ते वो कल के बारे में सोचते हुए कि बॉस से क्या कहूँगा घर पहुँच गया। काम से फारिग होकर बिस्तर पर लेटा तो अपनी बीवी के बेडौल जिस्म को देखकर ठिठक गया। अचानक बीवी से नजरें मिलीं, जिसमें ढेर सारा शिकवा मौजूद था। वो बीवी के पास गया और उसको अपने गले से लगा लिया। काफी अरसा बाद जज्बे से भरपूर लम्स की हद त (आत्मिक स्पर्श) महसूस करके दो आँसू बीवी के गालों पर ढुलककर अनुराग के कपड़ों में जज्ब हो गए।
“आई एम सॉरी, मुझे पता ही नहीं चला, असल में इतनी मेहनत और भाग-दौड़ तुम लोगों की खुशियों के लिए कर रहा हूँ ताकि तुम्हें किसी चीज की कमी ना हो। तुम भी दूसरी औरतों की तरह ठाठ से जिंदगी गुजारो।”
“मैं तो अब भी खुश हूँ। बस एक ही चीज की कमी है।” उसने अपनी आँखें उसकी आँखों में डाल दीं।
अगले दिन शाम में उसको बॉस से मिलना था। सुबह दफ्तर के बाहर कैफेटेरिया में बहुत से दोस्त नजर आए, तो वो उनके पास आकर बैठ गया।
“अनुराग कैसे हो? काम कैसा चल रहा है? आज तुम्हारे चेहरे पर रौनक नजर नहीं आ रही है?”
और अनुराग अपने जज्बात को छुपाते हुए चेहरे पर मस्नुई तास्सुर (कृत्रिम भाव) लाते हुए गोया हुआ (बोला)
“नहीं, बस जरा रात देर से नींद आई।” इतने में विक्रम ने कहा, “अरे भई, सुना है हमारे बॉस अगले महीने नए घर में शिफ्ट हो रहे हैं। क्यों अनुराग, तुम्हारी भी शायद कई डील साइन हुई हैं, तुम्हारा क्या इरादा है?”
“जी, ठीक सुना है। मेरा भी अगले महीने नई कार खरीदने का इरादा है।” वो यकायक बगैर सोचे-समझे खुशी को तारी करते हुए कह गया और फोन की घंटी पर माजरत (क्षमा याचना) करता हुआ अंदर की जानिब बढ़ गया और उसके दोस्तों की रश्क (ईर्ष्या) भरी नजरों ने उसका पीछा किया।
उसकी दादी का इंतिकाल हो गया था। वो अफसोस के आलम में घर पहुँचा। दादी का अंतिम संस्कार करते वक्त उसको सिर्फ अपने बॉस का चेहरा याद आ रहा था कि अपने टारगेट के मुकम्मल ना होने पर क्या जवाब देगा। वो जल्दी-जल्दी बगैर किसी तास्सुर (निर्लिप्त भाव से) के सारी रसूम अदा करके दफ्तर की तरफ रवाना हो गया।
वो दो घंटा की देरी से पहुंचा था।
“आओ अनुराग, मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था।”
“जी सर, सुबह दादी की डेथ हो गई थी तो इसीलिए देर…”
“ओह…! सुनकर अफसोस हुआ। कितनी एज थी उनकी?” बॉस ने चेहरे पर फिक्रमंदी जाहिर की।
“यही कोई 88-89 के आस-पास…”
और बॉस के चेहरे पर आया फिक्रमंदी का तास्सुर जाइल (लुप्त) हो गया।
“तो काम शुरू करें…” उसने कुर्सी की पुश्त से टेक लगाई, “…हाँ तो तुम्हारा काम कैसा चल रहा है?”
“सर, एक्चुअली तीसरे कस्टमर ने मना कर दिया तो टार्गेट पूरा नहीं हो पाया, क्योंकि उसकी माताजी की डेथ के बाद मामला कुछ अलग हो गया था।”
“तुमने इफट्स नहीं लगाए?”
“ऐसा नहीं है सर, मैंने बहुत कोशिश की लेकिन वो तैयार नहीं हुआ।”
“फिर टारगेट को पूरा करने का क्या प्लान है…?” बॉस ने पेन को मेज पर रखते हुए कहा।
एक और डील है, लेकिन उन्हें डिलीवरी इसी हफ्ते चाहिए और हम दो हफ्ते से पहले कर नहीं सकते।”
“हम्म…” बॉस कुर्सी पर सीधा होकर बैठ गया और उसकी जानिब झुककर बोला।
“देखो अनुराग इस दुनिया में झूठ कुछ भी नहीं है और सब कुछ झूठ है, बस फर्क ये है कि तुम्हें अपनाना किसको है और इस नजरिये को तुम्हारा दिमाग किस हद तक एसीमलेट करके दूसरों को ट्रांसफर करता है। तुम अपनी बात को सामने वाले के दिल में पूरे कॉन्फिडेंस के साथ कैसे उतार सकते हो कि तुम्हारे चेहरे से वो अंदाजा लगा ले। पता है अनुराग, इस दुनिया में सच और झूठ की कोई डेफिनीशन नहीं है।” उन्होंने सिगरेट सुलगाते हुए कहा, “ये तो तुम्हें तुम्हारा प्रोफेशन सिखाता है कि तुम्हारे लिए क्या सच है और क्या झूठ, तुम्हें अपने क्लाइंट से कह देना चाहिए था कि ‘आई मस्ट डिलीवर विदिन नेक्स्ट टू-थ्री डेज’ क्योंकि ये तो तुम्हें भी नहीं मालूम कि ये सच होगा या झूठ। असल में हमारी सिचुएशन और हमारे डिसीजंस कब बदल जाएँ कोई नहीं बता सकता। समझ रहे हो ना?”
“जी सर।”
“बाकी अगले महीने हेड ऑफिस से सीनियर मैनेजर आ रहे हैं, तैयार रहना।”
वो ऑफिस से बाहर निकला तो उसे एहसास हुआ कि दुनिया के चौराहे पर जिंदगी मुख्तलिफ (विभिन्न) रूप धारे खड़ी है। उसे मजीद (अतिरिक्त) मेहनत करनी थी। उसका दिमाग अब हमा वक्त तरह-तरह के मंसूबे बनाता रहता। अपना हदफ पूरा करने के लिए दिन-भर दौड़-धूप करता। कस्टमर से मुलाकात के लिए घंटों उनका इंतजार करता। इस दौरान कई मर्तबा वो अपनी घड़ी को देखता। कई दफा तो ऐसा होता कि उसका क्लाइंट लंबा इंतजार करवाने के बाद, जरूरी काम आ जाने की वजह से मिलने से इन्कार कर देता और वो गुस्से के आलम में दिल ही दिल में गालियाँ देता और कुढ़ता हुआ वापस चला जाता।
“अभी तो बहुत कुछ करना है…” उसे फिर अपने सिर के पिछले हिस्से में दर्द महसूस हुआ।
दिन-रात पागलों की तरह काम करने के बावजूद एक या दो डील ही मुकम्मल हो पाती थीं। पिछली मर्तबा सीनियर मैनेजर ने उसके ओहदे को बहाल रखा था। मगर इस बार मामला ठीक नहीं लग रहा था। उसने अपने दोस्तों के दरमियान अपने रुतबे की पाएदारी को बरकरार रखने के लिए लोन पर एक शानदार गाड़ी भी खरीद ली थी, जिसमें बैठने के बाद खुशी के एहसास पर हमेशा लोन चुकाने की फिक्र गालिब हो जाती। शौहर की मसरुफियात को देखते हुए बीवी ने भी अपना हलका-ए-अहबाब तरतीब दे लिया था।
वक्त का पहिया अपनी रफ्तार के साथ तेजी से घूम रहा था। अनुराग की आज अपने मैनेजर के साथ मीटिंग थी। मीटिंग से पहले वो कई सिगरेटें फूंक चुका था और जेहन में ख्यालात गड-मड हो रहे थे। मीटिंग-रुम में सब मौजूद थे और मैनेजर एक-एक करके सबके काम के मुताल्लिक दरियाफ्त कर रहा था
“जी अनुराग, आप बताइए कैसा चल रहा है सब?”
वो एकदम चौंका लेकिन जल्द ही सँभल गया, “सर, अभी तक सब बेहतर है।”
“मगर आपकी परफार्मेंस का लेवल तो काफी नीचे चला गया है, हमने पिछले हफ्ते फोन पर भी काफी लंबी बात की थी।”
वो खामोश रहा जैसे अल्फाज खत्म हो चुके हों।
मीटिंग बखास्त हो गई और वो अपने सिर के पिछले हिस्से को दबाता हुआ बाहर निकल आया। अगली सुबह उसको अपनी डेस्क पर एक नोटिस नजर आया। उसने खोलकर देखा वो पीआईपी नोटिस था। वो फौरन बॉस के पास गया और मैनेजर से बात करने के लिए कहने लगा क्योंकि उसे एहसास हो गया था कि इस महीने भी नाकामी हाथ आने वाली है। घबराहट के आलम में वो पानी के कई गिलास चढ़ा चुका था।
“काम डाउन अनुराग…देखो पहली बात तो ये है कि वो तैयार नहीं होगा, दूसरा ये कि हकीकत में यहाँ कोई किसी का दोस्त या हमदर्द नहीं, यहाँ के लोगों के लिए पैसा और टारगेट ही सबसे अहम चीज है। सबको अपनी दौड़ में दूसरे से आगे निकलने की जल्दी है। अब तुम्हें कैसे खुद को मंजिल तक पहुँचाना है, ये तुम्हें सीखना होगा। अनुराग ये नौकरी एक कार्ट-रेसिंग है, जिसमें टारगेट को पाना ही सब कुछ है। सो बी पैशनेट…” कहता हुआ वो कमरे से बाहर निकल गया और अनुराग के दिल में आया कि इस जोर से मेज पर हाथ मारे कि वो चकनाचूर हो जाए।
बे-मकसद वो सड़कों पर गाड़ी दौड़ाता रहा। उसका दिल उचाट था। इतनी मेहनत करने के बाद भी कोई गारंटी नहीं, कोई सिला नहीं… “गारंटी तो जिंदगी की नहीं है अनुराग बाबू…” उसकी पिछली सीट से किसी की आवाज आई, मुड़कर देखा तो वहाँ कोई नहीं था। उसकी गाड़ी ट्रक से टकराते-टकराते बची। गाड़ी को साइड में खड़ा करके सीट को पीछे किया और उस पर टिक गया। आज उसे शिद्दत से एक गमगुसार (दुख बाँटने वाले) की तमन्ना हो रही थी।
मैं बिलकुल अकेला हो गया हूँ। किस से दिल का हाल कहूँ, कोई मेरी जिंदगी में आया ही नहीं, किसी ने मुझमें झाँकने की कोशिश ही नहीं की। लेकिन किसी का क्या कसूर… ये तो मेरा ही बुना हुआ जाल है… मेरी बीवी… उससे क्या शिकायत… मैंने ही तो उसे ऐसा बनाया… और वैसे भी इस लश्कर में हर सिपाही राजा भी है और हर राजा सिपाही भी। ये तो शतरंज की वो बिसात है, जहाँ इतने प्यादों की आड़ में खड़े होने के बावजूद राजा को मौत का सामना करना ही पड़ता है… उसके करीब खड़ी रानी भी महज तमाशबीन ही होती है…और कुछ नहीं।
तेज हॉर्न की आवाज पर वो चौंका। एक लंबी दर्द-भरी साँस खारिज की, सीट को दुरुस्त किया और म्यूजिक प्लेयर पर मशहूर इतालवी गाना Bella ciao को तेज आवाज में बजाता हुआ जन से गाड़ी उड़ा ले गया।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
