chaturta
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एक बार एक राजा अपने दरबार में बैठा दरबारियों से बातचीत कर रहा था। इतने में उसके एक प्रिय दरबारी की जेब से सिक्का गिरकर फर्श पर जा गिरा। वह बहुत गरीब था और उसके पास यही एक सिक्का बचा था। वह तुरंत फर्श पर बैठकर अपना सिक्का ढूंढने लगा।

अन्य दरबारी, जो उसकी चतुराई और राजा के उसके प्रति विशेष स्नेह की वजह से उससे ईर्ष्या रखते थे, यह देखकर राजा को उसके खिलाफ भड़काने की कोशिश करने लगे। एक ने कहा कि आपने अब तक इसे कितने कीमती-कीमती उपहार दिए, पर यह इतना अशिष्ट है कि आपकी बात से ज्यादा अहमियत एक सिक्के को दे रहा है। राजा को भी यह बात बुरी लगी।

उसने उस दरबारी से पूछा कि क्या तुम्हारे लिए एक सिक्का हमसे ज्यादा महत्व रखता है। इस पर वह दरबारी बोला, “महाराज, आप गलत समझ रहे हैं। मैं सिक्का इसलिए ढूंढ रहा हूँ कि उस पर आपका चित्र उत्कीर्ण है। और मैं नहीं चाहता कि उस पर लोगों के पैर पड़ें। राजा उसके उत्तर से बहुत खुश हुआ और अपनी उंगली से निकालकर एक हीरे की अंगूठी उसे इनाम में दी।

सारः जो चतुर होते हैं, वे संकट को भी अवसर में बदल देते हैं।

ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंIndradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)