आज जंगल के नदी किनारे वाले वट वृक्ष पर बड़ी गहमागहमी का माहौल है, पत्तियों की सरसराहट वातावरण के तनाव को और बढ़ा रही थी।  बंदरों की पलटन आज वटवृक्ष से दूर ही थी। वटवृक्ष के नीचे ‘अखिल भारतीय गिरगिट महासंघ’ का बड़ा सा बोर्ड लगा हुआ है। सम्पूर्ण भारत के कोने-कोने से  गिरगिट आज यहां एकत्र हुए हैं।

हर कोई अपने अनूठे रंग में, कोई सतरंगी इंद्रधनुष सा तो कोई मोरपंखी, कोई बादल के रंग में रंगा था तो कोई फुलवारी सा,  आयोजक गिल्लू गिरगिट तो नई जैकेट स्टाइल में यहां-वहां व्यवस्था देखते भागदौड़ कर रहा था। उत्सुकतावश जंगल के अन्य जानवर भी चारों ओर दूर खड़े हो कर समझने की कोशिश कर रहे थे कि आखिर माजरा क्या है? 

सभा प्रारंभ हुई और सभापति बल्ली गिरगिट ने मुंडी घुमाते हुए कहा ‘साथियों आज की हमारी यह सभा मनुष्यों के विरोध में है।  पिछले कुछ वर्षों से जिस प्रकार मानव समुदाय ने हमारे नाम का दुरुपयोग किया है, वह सर्वथा निंदनीय है और हम इसकी कड़ी निंदा करते हैं। बिहार के जंगल से आए बिहरू गिरगिट ने पूंछ लाल करते हुए हुंकार भरी, ये मनुष्य हमें समझते क्या हैं? हमारे यहां के एक नेता जानवरों का चारा खाकर जेल गए और फिर धरम कमानेे खातिर गैयन के चारा खिला रहे और भैय्या सब लोग कहत रहे देखो इ तो गिरगिट की तरह रंग बदल रहे हैं, अब बताइए जरा ये भी कोई बात हुई भला।’ 

इतने में उत्तर प्रदेश से आए युवा गिरगिट उत्तम ने हरे रंग की कलंगी उचकाते हुए कहा ‘अरे भाईयों इन मनुष्यों ने तो नेता नाम के इस जीव को हमारा पर्यायवाची बना दिया है। करम करे ये, पेट भरे ये और नाम हमारा खराब हो यह हम सहन नहीं करेंगे।’  

‘हां, भैय्या तुम के तो सही रहे, भगवान जानत है कि हमने रंग हमेशा अपने बचाव खातिर या पेट भरबे खातिर बदलो है।’  बुंदेलखंड से आए बुजुर्ग घीसा का दर्द छलक उठा। ‘कल मैं एक नदी, किनारे वाले बगीचे में बैठा था बहुत से रिपोर्टर चारों ओर माइक हाथ में लिए गिर-गिर पड़ रहे थे और सरकार के मंत्री जी उनके बीच आंखों में घड़ियाली आंसू लिए बाढ़ पीढ़ितों के लिए की गई करोड़ों रुपये की शासन की घोषणा के विषय में बता रहे थे।

मंत्री जी अपनी ओर से भी बीस लाख रुपये देने की बात कहते हुए, उनके लिए संवेदना से भर गए। कई लोग मारे गए और बहुत से बेघर हो गए थे।  बाढ़ पीड़ितों के कंधे पर हाथ रख कर मंत्री जी ने बड़ी आत्मीयता से उनका हाल जाना, बहुत फोटो ली गई और मंत्री जी के जय जयकार के नारे गूंजने लगे। पास ही उनकी गाड़ी खड़ी थी, जनता के दुख से द्रवित हृदय और मुख पर बारह बजाए मंत्री जी ज्योंही अपनी कार में धसे, उनके चेहरे के भाव बदल गए, तुरंत अपने साथी को कहा, अच्छा मौका है दो-चार शिविर लगवा दो, थोड़ा बहुत खाना, कपड़ा भेज दो, इतना काम तो, जो जन सहयोग से पैसा एकत्र हुआ है उसी से हो जाएगा और उसका कोई हिसाब भी नहीं देना पड़ेगा। मीडिया कवरेज धांसू होनी चाहिए समझे और हां, वो अपने सरकारी करोड़ों का क्या करना है पता है ना।’

चीमा गिरगिट ने आंखों में आंसू भरकर कहा, ‘अब आप ही बताइए भाईयों, ये सत्ता के गिरगिट तो हमें बदनाम कर रहे हैं,  लाशों पर राजनीति की प्लेटे चमकाने वाले इन दलालो से हमारी तुलना हमें स्वीकार नहीं। हम तो फिर भी जानवर हैं ये तो वो भी नहीं।’ माहौल गमगीन हो गया। अरे! ये तो कुछ भी नहीं, मैं जिनके बंगले के बगीचे में रहता हूं कल ही वादा कर रहे थे पास की झोपड़पट्टी वालों से कि उन्हें किसी हाल में बेघर नहीं होने देंगे, लोगों ने भर-भरकर दुआएं दी, थोक में और उसी शाम शहर का सबसे बड़ा बिल्डर एक बैग लिए घुसते देखा मैंने, अगले दिन नेताजी विदेश रवाना और उनके आने तक झोपड़पट्टी साफ।’ अब ये रंग कहां मिलते हैं भाई और कैसे बदले जाते हम नादान क्या जाने? यह पीलू की आवाज थी।

आसपास खड़े जानवरों ने भी समर्थन किया कि मनुष्य अपनी मानवीय दुर्बलताओं और प्रवृत्तियों को जानवरों का नाम देकर गलत कर रहा है,  मनुष्य कभी जानवर नहीं हो सकता क्योंकि लोभ, मोह, घृणा, अहंकार जैसे दुर्गुण जानवरों में नहीं होते। सांप ने कहा, ‘सही कह रहे हो भाई, मेरा जहर हमेशा जानलेवा नहीं होता और मैं बेवजह किसी को काटता भी नहीं लेकिन मनुष्य विश्वासघात करता है और उसे हमारा नाम देकर ‘आस्तीन का सांप’ कहता है, अब बताओ भला विश्वासघात जैसा मानवीय दुर्गुण हममें कहां है।’ समर्थन में सबने मुंडी हिलाई। आखिर में इस समस्या का हल क्या है, हम जंतर-मंतर पर धरना दें क्या? नवयुवक मंडल के अध्यक्ष गदकू ने पूछा।

गंभीर मुद्रा धारण किये अखिल भारतीय गिरगिट महासंघ के अध्यक्ष दिल्ली से पधारे श्री श्री गिरगिटानंद उठ कर बोले,  ‘देखिए अब वक्त आ गया है कि हम कोई सख्त कदम उठाएं, धरना विरोध का सशक्त माध्यम है मानता हूं लेकिन धरना देने का कोई फायदा नहीं क्योंकि रंग बदलने में हमें भी मात देने वाले हमारे गुगलीवाल जी ने इसका सत्यानाश कर डाला है। ‘कभी रुठे तू, कभी माने तू, तेरी अदाओं ने मारा।’ गाती जंतर-मंतर की हवाएं अब धरने के नाम पर हंस देती हैं तो थोड़ा मेटर सीरियस की बजाय कॉमेडी जोन में जाने का खतरा है।

आखिर हम करें क्या? सबने समवेत स्वर में कहा। बुजुर्ग भुरिया ने हल सुझाते हुए कहा कि कल से हम सब हड़ताल पर जाएंगे और यह हड़ताल अनूठी होगी। यहां हम तो काम करेंगे लेकिन इन नेताओं को काम नहीं करने देंगे,  हमारी एक ही मांग होगी कि अध्यादेश लाया जाए कि इनके कामों के लिए इन्हीं को कोसा जाए, हमारा नाम लेना कानूनी अपराध होगा। सभी ने एक स्वर में सहमति दी और चल पड़े अपने-अपने रंग बदलते कल की हड़ताल के लिए।