एक कस्बे में तीन मित्र रहते थे। एक वकील था, दूसरा गणितज्ञ और तीसरा इंजीनियर। एक बार तीनों में बहस छिड़ गई कि कौन ज्यादा बुद्धिमान है। जब बहुत देर तक तर्क-वितर्क के पश्चात भी वे किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सके तो उन्होंने पास खड़े एक बुजुर्ग से कहा कि वह इस मसले को सुलझाएं। बुजुर्गवार बोले कि तुम तीनों अपने-अपने हुनर से सामने वाले मंदिर की ऊंचाई पता करके बताओ।
जो सबसे पहले मंदिर की सही ऊंचाई मुझे बताएगा, वही तीनों में सर्वाधिक बुद्धिमान समझा जाएगा। सबसे पहले इंजीनियर ने अपनी युक्ति लगाई। वह मंदिर की चोटी पर चढ़ गया। उसने वहाँ से एक रस्सी में भार बांधकर नीचे गिराया और जहां तक रस्सी उसके हाथ में रही, वहाँ निशान लगा लिया। उधर गणितज्ञ ने मंदिर के आधार से जहां तक उसकी छाया पड़ रही थी, वहाँ तक की लंबाई नापी और कुछ देर के जोड़-घटाव के बाद निष्कर्ष निकालकर बुजुर्गवार के पास पहुँचा।
उसी समय इंजीनियर भी वहाँ पहुँच गया। लेकिन वकील पहले से मौजूद था। बुजुर्ग बोले कि तुम तीनों में यही सबसे पहले यहाँ पहुँचे हैं, और इन्होंने मंदिर की वास्तविक ऊंचाई भी जान ली है। दोनों ने वकील से पूछा। वकील बोला कि मैं मंदिर पुजारी के पास गया और उससे पूछ लिया कि मंदिर की ऊंचाई कितनी है।
सारः जीवन में कई बार व्यावहारिकता सिद्धांतों से ज्यादा काम आती है।
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