कलिंग युद्ध में भीषण हिंसा के कारण सम्राट् अशोक का हृदय पसीज उठा और उसने बौद्ध धर्म की दीक्षा ले ली। इस धर्म का प्रचार करने हेतु उसने अपनी पुत्री संघमित्र को लंका भेजा। बौद्ध धर्म के अनुयायी बनाने में जहाँ उसे सफलता प्राप्त हुई, वहीं दूसरे धर्मवाले उसके शत्रु भी हो गये। उन्होंने विचार-विमर्श कर उसे समाप्त करने का निश्चय किया।
अमावस्या की एक रात्रि को उनमें से एक युवक उसकी कुटिया के समीप आया। उसने देखा कि आँगन में दीपक के पास एक गाय के समीप संघमित्र बैठी हुई है। वह युवक पीछे से आया और उसने हाथ में रखे छुरे से उस पर वार करना चाहा ही था कि उसके हाथ ठिठक गये, हाथ से छुरा गिर पड़ा। बात यह थी कि संघमित्र अपने पहने वस्त्रें को फाड़कर उस घायल गाय के घाव पोंछ रही थी। यह दृश्य देखकर उसका पत्थर- – तूल्य हृदय भी द्रवित हो गया। वह संघमित्र के चरणों में गिर पड़ा। उसने अपनी पूर्व मनीषा बतायी तथा क्षमा माँगी।
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