anmol uphaar
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भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

“माँ, तुम्हें याद है ना अगले हफ्ते मेरा जन्मदिन है। पहले ही बता रहा हूँ कि इस बार अगर तुमने मुझे बच्चों के लिए उपहार नहीं लेकर दिए तो मैं स्कूल ही नहीं जाऊँगा।” स्पष्ट शब्दों में फरमान सुनाते हुए राहुल बोला।

सिलाई करते हाथ अचानक रुक गए मशीन पर शीला के।

“तू समझता क्यों नहीं रे बाबा? इतनी औकात नहीं है हमारी। टॉफी का पैकेट तो ले जाता है हर बार। अब ये उपहार कहाँ से आ गया?”

टॉफी के साथ सब उपहार भी लाते हैं, मैं ही नहीं लेकर जाता बस। कितनी शरम आती है मुझे सबके सामने! हर बार तुम टॉफियाँ पकड़ा देती हो बस। इस बार सच बोल रहा हूँ, उपहार नहीं लाकर दोगी तो स्कूल नहीं जाऊँगा।”

पाँव पटकते हुए राहुल कमरे से बाहर निकल गया।

शीला माथे पर हाथ रखकर बैठ गई। समझ गई कि राहुल अब बड़ा हो गया है। उसे बहलाना आसान नहीं होगा। पहले तो प्यार से समझा-बुझाकर मना लेती थी, पर अब पाँचवी कक्षा में आ गया है और सब समझता है। छः वर्ष का था जब उसके पिताजी गुजर गए थे। मरने के बाद एक मजदूर कितनी जायदाद छोड़कर जा सकता था! पहले ही पेट भरने भर की ही तो कमाई थी। शीला घर के काम-काज के बाद थोड़ा बहुत सिलाई का काम कर लेती थी जिससे जैसे-तैसे गुजर बसर हो जाती थी। पति के गुजर जाने के बाद से ये सिलाई की मशीन ही उसके और बेटे के जीवन-यापन का एकमात्र सहारा है। दिन-रात कपड़े सिल-सिलकर घर का गुजारा मुश्किल से हो पाता था। राहुल पढ़ने में बहुत तेज था इसलिए उसे अच्छे प्राइवेट स्कूल में पढ़ा रही थी, इस आशा के साथ कि पढ़-लिखकर काबिल बन जायेगा तो दोनों का भविष्य सुधर जायेगा। स्कूल की फीस, खोली का किराया और बाकी के खर्चों की ही मुश्किल से भरपाई हो पाती। अब कहाँ से लेकर आएगी इतने बच्चों के लिए गिफ्ट!

“बाबा, बाबा अंदर तो आ। तू समझता क्यों नहीं है बेटा? हम लोग नहीं कर सकते ये सब। तेरे साथ अमीरों के बच्चे पढ़ते हैं। हम मुकाबला नहीं कर सकते उनका, बेटा।”

“माँ, फिर मुझे पढ़ने के लिए वहाँ क्यों भेजा तुमने? सब मेरा वहाँ मजाक बनाते हैं। कोई भी मेरे साथ दोस्ती करना पसंद नहीं करता। सबको लगता है कि मैं गरीब हूँ। तुम्हें पता है कितने बच्चों के पास तो अपना मोबाइल भी है और मेरे पास वह भी नहीं है! तुम्हारा मोबाइल ही देख लो कितना छोटा-सा है। कैमरा तक नहीं है इसमें।” विद्रोही भाव उभर आए थे बच्चे के।

“तुझे पढ़ने के लिए डाला है मैंने वहाँ। तू हर बार प्रथम आता है न तो क्या उन बच्चों से ज्यादा अच्छा नहीं है? केवल पढ़ाई से मुकाबला कर बेटा उनका, उनके धन-वैभव से बराबरी नहीं।” शीला प्यार से समझाते हुए बोली।

“तुम कुछ भी कह लो, पर मुझे उपहार लेकर जाना है इस बार अपने जन्मदिन पर। नहीं तो सब बच्चे मेरा फिर मजाक उड़ाएँगे।” राहुल अपनी बात से टस से मस होने को तैयार नहीं था।

“ठीक है अब तू बैठकर पढ़ाई कर। कुछ हो सका तो ला दूंगी उपहार।” माँ ने बात को खत्म करने के उद्देश्य से कहा।

अब तो रोज दिन में दो-चार बार इस विषय पर माँ-बेटे में बहस हो ही जाती थी। जन्मदिन के एक दिन पहले राहुल ने चेतावनी दे दी, अगले दिन वह बिना उपहार के स्कूल नहीं जाएगा। माँ ने बहुत समझाया, मनाया, पर राहुल न माना।

“ठीक है, कल मैं कक्षा के सब बच्चों के लिए उपहार ले आऊँगी।” हार स्वीकार करते हुए शीला ने बेटे से कहा।

“झूठ मत बोलो, कहाँ से लाओगी इतने सारे उपहार? उपहार के पैसे हैं क्या तुम्हारे पास? शाम भी हो गई है। सुबह कैसे लेकर जाऊँगा मैं अब? मैं नहीं जाऊँगा कल स्कूल क्योंकि हर बार की तरह फिर सब मेरा मजाक उड़ाएँगे। तुम्हें क्या है? शरम तो मुझे आएगी न फिर से।” राहुल गुस्से से चिल्लाते हुए बोला। उसकी आँखों से आँसू छलक आए।

“ओह हो, चिल्ला तो मत। कहा न, ले आऊँगी उपहार तेरे साथियों के लिए।” रुआँसे स्वर में शीला बोली।

“पर अब कब लाओगी?”

“ये तो सरप्राइज है तेरे लिए। देख लेना, पक्का कल तुझे उपहार मिल जाएँगे सब बच्चों के लिए। मैं तेरे लंच ब्रेक में खुद लेकर आऊँगी सबके लिए उपहार,” शीला ने समझाते हुए कहा।

“मुझे पता है तुम झूठ बोल रही हो। मुझे भेज दोगी फिर खुद आओगी नहीं।” राहुल की बात पर शीला ने कहा, “तेरी कसम, पक्का आऊँगी। तू टॉफियाँ लेकर स्कूल चले जाना। मैं तेरे दोस्तों के लिए गिफ्ट खुद ले आऊँगी।”

“पक्का”

“हाँ पक्का”

माँ ने किसी तरह समझा-बुझाकर राहुल को अगले दिन स्कूल जाने को मना लिया। स्कूल जाते-जाते भी राहुल माँ से वादा लेकर ही गया कि वो उपहार लेकर जरूर आएगी।

आज राहुल का कक्षा में मन नहीं लग रहा था। पल-पल में निगाह दरवाजे पर ठहर जाती कि शायद अभी माँ कक्षा में उपहार लेकर आएगी। बार-बार सोच रहा था कि वह क्या गिफ्ट लाएगी? जरूर कॉपी, पेंसिल लाएगी या शायद कोई खिलौना। पता नहीं क्या होगा सरप्राइज? कब आएगी माँ? अगर न आई तो?

ऐसा विचार आते ही उसके कान खड़े हो जाते, मायूसी छा जाती उसके चेहरे पर। अपने को दिलासा देता नहीं…नहीं, माँ जरूर आएगी। कसम खाई थी उसने मेरी।

उफ्फ, ये बचपन!

न मजबूरी जानता है न जिम्मेदारी समझता है, सुनता है तो अपने दिल की, मानता है तो अपने दिल की बस!

खैर राहुल के लिए एक-एक पल एक-एक वर्ष के समान हो रहा था। बेचैन राहुल सोचता कि कब आएगी माँ?

“अंदर आ सकता हँ मैडम?”

दरवाजे पर माँ तो नहीं, हाथ में एक डिब्बा लिए चपरासी खड़ा था।

“मैडम, ये राहुल की मम्मी देकर गई हैं। राहुल के जन्मदिन पर बच्चों के लिए गिफ्ट। आप सब बच्चों में बाँट दीजिए।”

डिब्बा देकर चपरासी चला गया। सारी कक्षा में अचानक हलचल और खुसर-पुसर शुरू हो गई। राहुल के चेहरे पर अजब चमक आ गई। छाती गर्व से फूल गई। माँ ने आखिर अपनी कसम निभाई और राहुल की भी बच्चों के सामने लाज बच गई थी।

“राहुल, इधर आओ और आकर डिब्बा खोलो।” मैडम ने पुकारा।

राहुल सब बच्चों पर एक सरसरी निगाह डालते हुए मैडम की तरफ ऐसे कदम बढ़ा रहा था जैसे परमवीर चक्र प्राप्त करने जा रहा हो। अनगिनत आकांक्षाओं के साथ बच्चे टकटकी लगाए डिब्बे को हसरत भरी निगाहों से देख रहे थे जैसे भानुमती के पिटारे से न जाने क्या खजाना निकलने जा रहा हो। धड़कते दिल से राहुल ने डिब्बा खोला। दो लिफाफे निकले उसमें से। एक पर “अध्यापकों के लिए” और दूसरे पर “विद्यार्थियों के लिए” लिखा हुआ था। राहुल ने पहले विद्यार्थियों वाला बड़ा-सा लिफाफा खोला। अरे! ये क्या? इसमें तो रंग-बिरंगे मास्क पड़े हुए थे। वो कुछ समझ न पाया। दूसरे लिफाफे में भी मास्क ही थे। क्या है ये? ये उपहार भेजे हैं माँ ने? सोच कर उसका मुँह लटक गया। उसकी आशाओं पर पानी-सा फिर गया। आँखों में आँसू आ गए। टीचर उसकी मनोदशा भाँपते हुए झट से कक्षा के सभी बच्चों से बोली, “देखो बच्चों राहुल की मम्मी ने कितने सुंदर रंग-बिरंगे कार्टून और फूल बने मास्क भेजें है आप सबके लिए। कितनी महत्त्वपूर्ण और योग्य गिफ्ट भेजी है सबके लिए। सब जोर से ताली बजाओ और राहुल को धन्यवाद बोलो।” बच्चे बिना कुछ समझे ही ताली बजाने लग गए।

“जाओ राहुल एक-एक मास्क सब बच्चों को दो।”

अरे ये क्या हो गया? कार्टून, फूल आदि वाले सुंदर मास्क देखकर बच्चों में तो मास्क माँगने की होड़-सी लग गई।

“कितने सुंदर मास्क हैं यार? कहां से लिए?” एक साथी ने पूछा।

तुम्हारी मम्मी ने खुद बनाए हैं क्या?

मुझे दो पहले?

ओय राहुल, मुझे भी दे ना यार।

सब ओर राहुल के मास्क के लिए खींचातानी शुरू हो गई। राहुल को लगा माँ ने तो सच में ही कमाल का सरप्राइज दे दिया। कब बनाए इतने सारे मास्क! उसे तो पता ही न चला।

अध्यापक ने भी मास्क की बहुत प्रशंसा की और उसकी कक्षा के सब अध्यापक और प्रधानाध्यापक को भी मास्क देने को कहा।

आज राहुल की खुशी का ठिकाना न था। माँ के सरप्राइज उपहार ने उसका दिन खास बना दिया था। घर पहुँचते ही माँ के गले में बाहें डालकर उत्साहित हो सारी घटना सुनाने लगा। माँ भी अपने बच्चे के मुख पर मुस्कान देख गदगद हुई जा रही थी। उसके पास इतना पैसा था नहीं कि वह इतने उपहार खरीद सके, इसलिए लोगों के कपड़ों से बची कतरनों से राहुल की गैरमौजूदगी में दिन-रात बैठकर उनपर कढ़ाई करके बच्चों के लिए शीला ने बहुत सुंदर मास्क बना दिए थे।

अगले दिन सुबह स्कूल पहुँचते ही सब ओर सिर्फ राहुल के मास्क की चर्चा हो रही थी। आज राहुल के दोस्तों की गिनती भी बढ़ गई थी। प्रार्थना के बाद प्रधानाध्यापक स्टेज पर आए और पूरे स्कूल के बच्चों के सामने राहुल को बुलाकर उसके मास्क वाले उपहार की प्रशंसा करते हुए उसके महत्त्व के बारे में बताने लगे। सब स्कूल के बच्चों ने एक बार फिर राहुल के लिए तालियाँ बजाईं। आज राहुल के दिल से हीनता की भावना सदा के लिए समाप्त हो गई। आज उसे अपनी माँ पर गर्व हो रहा था।

दोपहर में राहुल को प्रधानाध्यापक ने अपने कमरे में बुलाया और कहा, “राहुल बेटा, ये मास्क बहुत सुंदर हैं किसने बनाए हैं?”

राहुल ने उत्तर दिया, “सर, मेरी माँ ने खुद बनाए हैं, वो घर पर सिलाई का काम करती हैं।”

“कल अपने साथ स्कूल लेकर आना अपनी माँ को। बात करनी है कुछ।” प्रधानाध्यापक ने राहुल को कहा।

अगले दिन राहुल की माँ को सारे स्कूल के लिए मास्क बनाने का ऑर्डर दिया गया। माँ-बेटे की खुशी का ठिकाना न रहा। जाने-अनजाने राहुल के उपहार की जिद और शीला की सूझ-बूझ ने जिंदगी में कुछ कर गुजरने के लिए सार्थक राह अपना ली थी।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’