मिर्जा गालिब को आम आदमी का शायर भी कहा जाता है क्योंकि हम रोजाना की जिंदगी में कई ऐसे बातें और शेर बोल जाते हैं जो हमें उन्हीं की देन हैं। उनकी ज्यादातर शायरियां फारसी भाषा में हैं। उर्दू में उन्होंने बहुत कम लिखा है, लेकिन जितना लिखा है वो ही आने वाले कई ज़मानों तक लोगों को सोचने पर मजबूर करने के लिए काफी है। जिंदगी के लगभग सभी पहलुओं पर उनकी कलम चली है। आइए जानते है उनकी ऐसे ही 10 चुनिंदा शायरियां जिनकी ताजगी आज भी बरकरार है –

 
 
1.
आये है बेकसी-ए-इश्क़ पे रोना ‘ग़ालिब’
किसके घर जायेगा सैलाब-ए-बला मेरे बाद 
 
2.
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
 
3.
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़े-ग़ुफ़्तगू क्या है
 
4. 
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है

 

5.
दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है
 
6.
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है
 

7. 
बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना
आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना

 

8.
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना
 
9. 
दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ
मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ

 

10.
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले