जितने मशहूर हैं गालिब के शेर, फिर क्यों उतनी ही गुमनाम है उनकी हवेली: Facts About Ghalib ki Haveli
Amazing Facts About Ghalib's Haveli

Facts About Ghalib ki Haveli: “हुई मुद्दत कि ‘गालिब’ मर गया पर याद आता है, वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता” इस शेर की तरह शानदार शेर और रचनाओं को जन्म देने वाले गालिब आज सारी दुनिया में मशहूर है ! लेकिन क्या आप जानते हैं उनकी ऐतिहासिक हवेली आज गुमनामी में है। साहित्य और उर्दू शायरी में गालिब ने इतना नाम कमाया कि क्या कहने, पर आज भी लोग उसकी इस विरासत से अनजान है। ऐसे में गालिब की उस खास हवेली से हम आज आपको रूबरू करवाएंगे ताकि अगर कभी आपका दिल्ली जाना हो, तो गालिब की हवेली को घूमने का भी मुकम्मल मंसूबा आप बना लें।

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क्या गालिब की हवेली के बारे में ये जरूरी बाते जानते हैं आप ? Amazing Facts About Ghalib’s Haveli

क्यों है ये हवेली खास

Facts About Ghalib ki Haveli
Interesting Facts About Ghalib ki Haveli

कई लोगों के मन में ये सवाल होगा, कि गालिब की ये हवेली इतनी खास क्यों है? दरअसल उर्दू शायरी के बेताज बादशाह मिर्ज़ा गालिब की शायरी का हर कोई मुरीद है, ऐसे में अगर आप शायरी के इस बड़े नाम को जानना-समझना चाहते हैं, तो कम से कम एक बार मिर्ज़ा गालिब की हवेली आना तो बनता है। अब गालिब को समर्पित एक म्यूजियम में तब्दील हो चुकी इसी हवेली में गालिब ने अपनी जिंदगी की आखिरी रात भी काटी थी।

हवेली का शानदार इतिहास

अतीत के पन्नो में जब भी झांका जाता है, तो गालिब के शेरों का जिक्र आना लाजमी है। पुरानी दिल्ली के भीड़भाड़ वाले इलाके में कुछ पतली गलियों से होकर आप गालिब की इस शानदार हवेली में पहुंचते हैं। इस हवेली में अपना पहला कदम रखते ही आपको उर्दू की वो अज़ीम खुशबू आती है जो बेहद खास है। इस हवेली की दीवारें जहां गालिब की कहानी को बयां करती है वहीं कुछ अन्य समकालीन शायरों की तस्वीरे और शायरी भी यहां लगी हैं। इतिहास के पन्ने बताते हैं कि उत्तर प्रदेश के आगरा में जन्मे मिर्जा गालिब शादी के बाद जब दिल्ली आए तो लगभग 9 साल तक इसी हवेली में रहे। इसी खास हवेली में उन्होंने उर्दू को वो कमाल शायरी लिखी, जिनका इस्तेमाल आज का हर रोमियो अपनी जूलियट पर, सलीम अपनी अनारकली पर और हर मजनू अपनी लैला पर करता है। दीवान की रचना भी उन्होंने इसी हवेली में की।

जब यहां हो गया कब्जा

मिर्ज़ा गालिब के गुज़र जाने के बाद, इस हवेली की दुर्गति होने लगी। साल 1999 तक इस हवेली के अवशेषों में बाजार लगाया जाने लगा। जब सन 99 में सरकार को इसकी सुध आई, तो इस मुगलकालीन हवेली को ऐतिहासिक धरोहर घोषित कर सरकार ने इसके कंजर्वेशन का काम शुरू किया।

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क्या क्या है यहां

गालिब की इस प्राचीन हवेली के बड़े से दरवाजे के उस पार उनकी संगमरमर की एक मूर्ति है, जिसके इर्द गिर्द उनकी किताबों को खूबसूरती से संजोया गया है। गालिब के परिवार द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले सामान, बर्तन और कपड़े भी यहां प्रिजर्व किए गए हैं। उनकी शतरंज और चौसर की बिसात भी यहां पर है, जो दर्शाता है कि वो भी इन खेलों के शौकीन थे। हवेली के भीतर उनकी एक आदमकद है तस्वीर है जिसमे वो हुक्का गुड़गुड़ाते हुए दिख रहे हैं। इस हैं की दीवारों पर उस्ताद जौक, हकीम मोमिन खां ‘मोमिन’ और अबू जफर जैसे मशहूर शायरों की निशानियां भी हैं।

कैसे पहुंचे

अगर आप मिर्ज़ा गालिब की हवेली जाना चाहते हैं, तो दिल्ली के चावड़ी बाजार मेट्रो स्टेशन से एक ऑटो के जरिए हवेली तक पहुंच सकते हैं। आपको पतली गलियों के कारण थोड़ा पैदल भी चलना पड़ेगा।