त्योहारों के समय असंतुलित खान-पान हमें भांति-भांति की बीमारियां भी दे जाते हैं। विशेषकर इस मौके पर अम्लपित्त, अपच तथा गैस आदि रोग पैदा होते हैं। ये बीमारियां एक समस्या बन जाती हैं। जब ये लगातार अधिक दिनों तक रहें तो ऐसी स्थिति में हमें इन बीमारियों के कारणों पर ध्यान देना चाहिए। सामान्य फलों और सब्जियों के यथोचित सेवन से न केवल हम निरोगी रह सकते हैं, अपितु दीर्घायु हो सकते हैं। प्रस्तुत है कुछ रोग और उनकी चिकित्सा-

अम्लपित्त- परस्पर विपरीत गुण धर्म वाली वस्तुओं का एक साथ सेवन, बासी एवं दूषित वस्तुओं का सेवन, मद्यपान, तंबाकू और अंडा मांस का उपभोग करना, तले भुने मिर्च मसालेदार भोजन करने से पेट में इकट्ठा पित्त खट्टा और दूषित होकर अम्लपित्त पैदा करता है। आमाशय के अंदर अम्ल की मात्रा का आवश्यकता से अधिक होना ही अम्लपित्त है।

लक्षण- छाती में जलन, जी मिचलाना, उल्टी आना, भूख कम लगना।

उपचार- इसके लक्षण नजर आते ही सर्वप्रथम तैलीय, मिर्च तथा मसालेदार आहार एवं चाय को त्याग देना चाहिए। अम्लपित्त में आलू, मौसमी, सेब तथा ककड़ी फायदेमंद है। इनके रसों का सेवन भी फायदेमंद है।

  • अम्लपित्त की स्थिति में आंवलों का इस्तेमाल अत्यंत फायदेमंद होता है। आंवले के ऋतु में इसे पीसकर काला नमक, हींग, काली मिर्च मिलाकर भोजन के साथ खाने से अम्लपित्त के लक्षण खत्म हो जाते हैं।
  • अम्लपित्त से राहत पाने के लिए निरंतर खीरा खाने से लाभ होता है।
  • जो लोग पित्त से परेशान हों, उन्हें पके हुए जामुन खाने चाहिए। कम से कम एक महीने तक इसे प्रयोग अवश्य करें। 

 

अपचन

चिकनी चीजों की प्रचुर मात्रा में इस्तेमाल से हमारी आंतों के भीतर की दीवार पर चिकनी चीजों का लेप चढ़ जाता है जिससे पाचक रस असंतुलित मात्रा में आंत में आ जाते हैं। पाचक रसों की कमी, आहार को हजम करने में असफल रहती है। आहार के हजम न होने से अपचन हो जाता है। आंतों में चिकनाहट की मात्रा ज्यादा होने से पित्त की मात्रा भी नैसर्गिक रूप से बढ़ जाती है। पित्त की मात्रा ज्यादा होने से अतिसार हो जाता है। यही वजह है कि घी-तेल या उनसे निर्मित चीजों का ज्यादा प्रयोग करने से दस्त होता है। ग्रीष्म ऋतु में घी-तेल या उनसे निर्मित चीजों का इस्तेमाल कम से कम मात्रा में करना चाहिए, क्योंकि ग्रीष्म काल में जठराग्नि अत्यधिक कमजोर होती है। 

लक्षण- पेट में जलन होना, भोजन नहीं पचना, अत्यंत मद्यपान में भी इसी तरह के लक्षण नजर आते हैं। इसी वजह से मदिरापान भी स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक होता है।

उपचार- अपचन होने की दशा में  सुबह निराहारमुख एक गिलास गुनगुने जल में नमक व नींबू डालकर पीना चाहिए। अदरक के रस में नींबू मिलाकर पीने से फायदा होता है।

गैस (एसीडिटी)- अनियमित खानपान से गैस की बीमारी पैदा होती है।

लक्षण- इस बीमारी में भूख खुलकर नहीं लगती। दस्त खुलकर नहीं होता और सिर भारी रहता है। जी मिचलाना, आलस्य, थकावट, भोजन का हजम ना होना आदि लक्षण पाए जाते हैं।

चिकित्सा 

  • चाय के स्थान पर आंवला, तुलसी, सौंफ, इलायची, दालचीनी इत्यादि वनौषधियों से निर्मित हर्बल चाय अथवा आमला की चाय सुबह-शाम लें जो दोष रहित होने के साथ-साथ गैस और कब्जियत में हितकारी हो लेकिन इसका सेवन 2 कप से ज्यादा ना करें। चावल, तेल-मिर्च मसाले युक्त भोजन न खाएं।
  • एक ग्राम हींग को देशी घी में भूनकर खाने से गैस में फायदा होता है। चुटकी भर हींग नाभि में रखने से शीघ्र आराम मिलता है। 
  • पेट में वायु होने पर हरड़, सेंधानमक, सोंठ सम मात्रा का चूर्ण बनाकर एक-एक चम्मच चूर्ण सुबह, दोपहर, रात पानी से लेना फायदेमंद रहता है। चार काली मिर्च तथा चार लौंग और जरा सा नमक लेकर महीन पीसकर एक कप जल में उबालकर लेने से फायदा होगा।

इस तरह यदि हम थोड़ी-सी समझदारी से काम लें तो त्योहारों के खान-पान से उत्पन्न रोगों का उपचार हम खुद ही कर सकते हैं और त्योहार का लुत्फ उठा सकते हैं।  

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