‘मेरी आयु 31 वर्ष की है पर मेरे पति 50 वर्ष से अधिक आयु के हैं। क्या इससे मेरे शिशु पर कोई असर हो सकता है।”
आमतौर पर अब तक यही माना जाता था कि प्रजनन प्रक्रिया में पिता की जिम्मेदारी सिर्फ गर्भाधान तक सीमित है लेकिन 20वीं सदी में ही पता चल सका कि पिता के स्पर्म से ही यह तय होता है कि पैदा होने वाले शिशु का लिंग क्या होगा। वह लड़का होगा या लड़की! इसी वजह से जाने कितनी रानियों के सिर धड़ से जुदा करवा दिए गए क्योंकि वे एक पुत्र की मां नहीं बन सकती थीं। इसके काफी समय बाद शोधकर्ताओं को यह संदेह भी होने लगा कि अधिक आयु के पिता के शुक्राणुओं (स्पर्म) की वजह से ही जन्मजात विकृति व गर्भपात का खतरा काफी बढ़ जाता है।
 

अधेड़ माता की तरह, अधेड़ आयु के पिता के स्पर्माटोसाइटिस भी पर्यावरणीय कारणों से प्रभावित होते हैं, इन पर भी बुरा असर पड़ सकता है। शोधकर्ताओं ने पाया कि मां की आयु के अलावा, अधेड़ आयु के दंपत्ति के लिए गर्भपात का खतरा ज्यादा होता है। यदि पिता की आयु 50 या उससे अधिक हो तो डाउन सिंड्रोम के मामले भी काफी बढ़ जाते हैं।

हालांकि इस बारे में कोई पक्के प्रमाण नहीं मिलते क्योंकि शोध अभी पूरे नहीं हुए हैं।वैसे जेनेटिक सलाहकार, हर आयु की गर्भवती मां के लिए जिस स्क्रीनिंग की सलाह देते हैं,उससे आपको काफी हद तक निश्चिंत हो जाना चाहिए। यदि आपके स्क्रीनिंग की जांच सामान्य है तो इस बारे में कोई चिंता न करें।आपको ‘एमनियोसेंटेनिस’ करवाने की भी कोई आवश्यकता नहीं है।

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