श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को श्रावणी तीज कहते हैं। उत्तरभारत में यह हरियाली तीज के नाम से भी जानी जाती है। तीज विशेष रूप से महिलाओं का त्योहार होता है। इस व्रत को अविवाहित कन्याएं योग्य वर को पाने के लिए करती हैं तथा विवाहित महिलाएं अपने सुखी दांपत्य के लिए करती हैं। इस त्योहार में महिलाएं सजती संवरती हैं। मेहंदी रचे हाथों से जब वह झूले की रस्सी पकड़ कर झूला झूलती हैं तो यह दृश्य बड़ा ही मनोहारी लगता है मानो सुहागिनें आकाश को छूने चली हों।

इन नामों से भी जानी जाती है तीज

देशभर में तीज का त्योहार बहुत जोश और उल्लास के साथ मनाया जाता है। भारत में तीज का त्योहार कई अलग-अलग नामों से जाना जाता है। उत्तर भारत के क्षेत्रों जैसे बुन्देलखंड, झांसी, राजस्थान इत्यादि क्षेत्रों में हरियाली तीज के नाम से बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश, बनारस, गोरखपुर, जौनपुर, सुलतानपुर आदि जिलों में इसे कजली तीज के रूप में मनाया जाता है। इसे सिंधारा, हरियाली या हरतालिका (हरितालिका) तीज, बूढ़ी तीज, मधुस्रवा तृतीय या छोटी तीज के नाम से भी जाना जाता है।

हरतालिका तीज-  इसे हरतालिका तीज कहने के दो कारण हैं। पहला, ‘हर’ भगवान भोलेनाथ का ही एक नाम है और चूंकि शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए मां पार्वती ने इस व्रत को रखा था, इसलिए इस व्रत का नाम हरतालिका तीज रखा गया और दूसरा, पार्वती कि सखी उन्हें पिता और प्रदेश से हर कर जंगल में ले गयी थी। ‘हरित’ अर्थात हरण करना और ‘तालिका’ अर्थात सखी।

कजली तीज- तीज का आगमन भीषण ग्रीष्म ऋतु के बाद पुनर्जीवन व पुनर्शक्ति के रूप में होता है। ग्रीष्म ऋतु के समाप्त होने पर काले-कजरारे मेघों को आकाश में घुमड़ता देखकर इस त्यौहार को ‘कजली’ या ‘कज्जली तीज’ से जाना जाता है।

बूढ़ी तीज- इस त्योहार को बूढ़ी तीज भी कहा जाता है। क्योंकि इस दिन सास अपनी बहुओं को सुहागी का सिंधारा देती है। 

पहला सावन मायके में मनाती हैं लड़कियां

देखा जाए तो तीज महिलाओं के लिए एकत्र होने का एक उत्सव है। इस दिन महिलाएं मनोवांछित वर व सुखी दांपत्य जीवन की कामना के लिए उपवास रखती हैं। नव विवाहिताएं यह उत्सव अपने मायके में मनाती हैं। शादी के बाद पहला सावन लड़कियां मायके में मनाती हैं। इसलिए इस त्यौहार पर उन्हें सुसराल से पीहर यानी मायके बुला लिया जाता है। इसमें मां अपनी विवाहित बेटी को अनेक भेंट और उपहार भेजती है जिसमें विशेषकर कपड़े (लहरिया), मेहंदी, लाख की चूड़ियां और मिठाईयां विशेषकर गुंजिया, घेवर, फैनी आदि शामिल होते हैं, जिसे पूजा के बाद बहू, सास को सौंप देती है। यदि सास न हो तो स्वयं से बड़ों को अर्थात जेठानी या किसी वृद्धा को देती हैं। इतना ही नहीं नवविवाहिता लड़की के ससुराल से वस्त्र, आभूषण, श्रृंगार का सामान, मेहंदी और मिठाई भेजी जाती है। जिसे सिंधारा कहा जाता है।

 

मेहंदी और झूलों का उत्सव 

तीज का त्यौहार वास्तव में महिलाओं को सच्चा आनंद देता है। इस दिन वे रंग-बिरंगे कपड़े, लकदक करते गहनें पहन दुल्हन की तरह तैयार होती हैं। नवविवाहिताएं इस दिन अपने शादी का जोड़ा भी पहनती हैं। वैसे तीज के मुख्य रंग गुलाबी, लाल और हरा है। इस त्यौहार पर सभी विवाहिताएं विशेष रूप से श्रृंगार करती हैं। बड़ी संख्या में महिलाएं और युवतियां हाथों में मेहंदी रचाती हैं और पैरों में आलता लगाती हैं। राजस्थान में जिसे ‘मेहंदी-मांडना’ कहते हैं। मेहंदी लगाते वक्त तीज के गीत गाए जाते हैं समूचा वातावरण श्रृंगार से अभिभूत हो उठता है। 

तीज में मेहंदी के साथ ही झूलों का भी विशेष महत्त्व है। तीज के कुछ दिन पूर्व से ही पेड़ों की डालियों पर, घर की छत की कड़ों या बरामदे में झूले पड़ जाते हैं और नारियां, सखी-सहेलियों के संग सज-संवरकर लोकगीत, कजरी आदि गाते हुए झूला झूलती हैं और फिर महिलाएं और युवतियां मल्हार और कजरी गाते हुए सहेलियों संग सज संवरकर झूला झूलती हैं और पूरा वातावरण खुशनुमा हो उठता है।

 

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