‘‘मेरी सहेली का कहना है कि अजन्मे बच्चे को काँसर्ट में ले जाने से वह संगीत प्रेमी पैदा होगा। दूसरी सहेली के पति अपने अजन्मे बच्चे को प्यारी-प्यारी कहानियाँ सुनाते हैं। क्या मुझे भी ऐसा ही कुछ करना चाहिए?”

हर माता-पिता किसी न किसी तरीके से अपने बच्चे की बेहतरी चाहते हैं लेकिन आपको अभी से उनकी पढ़ाई की चिंता करने की जरूरत नहीं है। यह तो सच है कि दूसरी तिमाही के अंत में शिशु के सुनने की क्षमता विकसित हो जाती है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वह कँसर्ट में संगीत सुनेगा और जन्म लेने के बाद संगीत विशारद बन जाएगा।

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नन्हें अजन्मे शिशु पर अभी से इतनी जिम्मेवारियों का बोझ न लादें। वह बड़ा होकर स्वयं ही अपनी इच्छा व प्रतिभा के बल पर सब कुछ सीख लेगा। यदि आप कोख को ही कक्षा बनाने की कोशिश करेंगी तो शायद उसकी कुदरती नींद में खलल पड़ सकता है या उसके कुदरती विकास में रुकावट आ सकती है। हालांकि अपने शिशु को पास से महसूस करने के लिए आप कोई भी तरीका अपना सकती हैं। उसके लिए कुछ गाएँ, उसे कुछ पढ़कर सुनाएं। उसे अपने हाथों का स्पर्श दें।इस तरह पढ़ाई-लिखाई के माहौल में उसे किसी विश्वविद्यालय की डिग्री तो नहीं मिल जाएगी लेकिन उसकी व आपकी निकटता काफी बढ़ जाएगी।

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अजन्में शिशु को शास्त्रीय संगीत की स्वरलहरियाँ भी पसंद आ सकती हैं इससे जन्म के बाद भी उसे हल्के संगीत के बीच सुकून मिला करेगा। अपने पेट को हल्के हाथों से छुएँ। नन्हे को संगीत सुनाएँ। उसे आपकी आवाज़ सुनने का अभ्यास हो जाएगा और नजदीकियाँ काफी बढ़ जाएँगी। शिशु से प्यार का नाता जोड़िए उसे अभी से पढ़ाने का चक्कर छोड़ दीजिए,इसके लिए तो पूरी जिंदगी पड़ी है। कम से कम जन्म से पहले तो उसे इस प्रतियोगी दुनिया की भाग-दौड़ से दूर रखिए।

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