LEPROSY

Leprosy: दुनिया भर में लेप्रोसी को एक हवाजनित, बेहद संक्रामक और लाइलाज बीमारी माना जाता है। संक्रमण के डर से इसके रोगियों के साथ आज भी भेदभाव किया जाता हैै। उन्हें नाते-रिश्ते काटकर घर-समुदाय से निकाल दिया जाता है, उनकी रोजी-रोटी या नौकरी छीन ली जाती है। लोग अपनी बीमारी की प्राइमरी स्टेज पर अपने लक्षणों का खुलासा करने और इलाज करवाने से हिचकिचाते हैं। फलतः समय पर इलाज न होने की वजह से रोगी ठीक नहीं हो पाते और गंभीर अवस्था में पहुंच जाते हैं। यहां तक कि अपंग भी हो जाते हैं। जबकि अगर वो समय रहते आगे आएं और समय पर इलाज कराएं। तो कुष्ठ रोग का पूरा इलाज हो सकता है और वो ठीक होकर दूसरे व्यक्ति की तरह नॉर्मल जिंदगी जी सकते हैं।

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लाइलाज नहीं हैं कुष्ठ रोग,जानिए कैसे संभव है इलाज: Leprosy 3

डब्ल्यूएचओ के चयनित 139 देशों के आंकड़ो के अनुसार वैश्विक स्तर पर करीब एक लाख 30 हजार नए कुष्ठ रोग के मामलों का पता चला। जिनमें 15 साल से कम उम्र के 8,629 बच्चे शामिल थे। इसे देखते हुए डब्ल्यू एचओ ने वैश्विक स्तर पर 2021-30 के लिए ‘टूवर्ड्स जीरो लेप्रोसी-ग्लोबल लेप्रोसी स्ट्रेेटेजी‘ जारी की है। जिसके तहत ई-लर्निंग मॉड्यूल विकसित किया है जो संदिग्ध कुष्ठ रोगियों का पता लगाने और समुचित उपचार के लिए सक्रिय कर्मचारियों के कौशल को बढ़ाएगा।    

क्या है कुष्ठ रोग- 

कुष्ठ रोग माइक्रोबैक्टेरियम लेप्रे बैक्टीरिया के फैलने वाली संक्रामक बीमारी है। मरीज के खांसने या छींकने पर निकलने वाली बूंदों में होते हैं। लेप्रे बैक्टीरिया हवा के साथ मिलकर दूसरे स्वस्थ व्यक्ति तक पहुंचते हेैं और  बीमारी फैलाते हैं। हालांकि इसे संक्रामक बीमारी माना जाता है लेकिन बहुत धीरे-धीरे फैलता है और हमारे नर्वस सिस्टम को भी प्रभावित करता है। इसमें एक लंबे समय तक रोगी के संपर्क में रहने से दूसरे व्यक्ति को संक्रमण होता है। कुष्ठ रोग किसी भी आयु में स्त्री- पुुुरूष सभी को हो सकता है। कुष्ठ रोग से प्रभावित 10 में से केवल 1 व्यक्ति ही संक्रामक होता है। अगर किसी व्यक्ति की इम्यूनिटी कमजोर हो या कुपोषण का शिकार है , तो उसे कुष्ठ रोग होने की संभावना ज्यादा होती है। संक्रमित व्यक्ति के साथ लंबे समय तक संपर्क में रहने पर ही कुष्ठ रोग फैलता है। स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में पहुंच कर लेप्रे बैक्टीरिया को पनपने (इन्क्यूबेशन)  में  काफी लंबा समय (1-20 साल) लग जाते हैं। प्राइमरी या अर्ली स्टेज पर लेप्रोसी के लक्षणों की अनदेखी करने से रोगी अपंगता का शिकार भी हो सकता है।    

लक्षण  

आमतौर पर शरीर के वो हिस्से जिनका टैम्परेचर दूसरे अंगों से कम रहता है जैसे- स्किन, नसें, आंख, नाक और कान। इनमें कुष्ठ रोग का प्रभाव अधिक होता  है।

 प्राइमरी स्टेज  

  • हाथ-पैर, मुंह जैसे खुले अंगों  में ब्लड या ऑक्सीजन की सप्लाई कम हो जाती है और त्वचा पर हल्के रंग के पैच पड़ने लगते हैं। पैच वाली त्वचा रूखी, सख्त और सुन्न होने लगती है।
  • चेहरे,कान के आसपास छोटी-छोटी दर्दरहित गांठें या सूजन उभर आना
    हाथ सुन्न होने पर ठंडे-.गर्म  या चोट का अहसास नहीं रहता और ये आसानी से ठीक नहीं होते।
  •  जलने या चोट लगने पर इंफेक्शन होने से हड्डियां गलने लगती हैं और धीरे-धीरे छोटी हो जाती हैं।
  • पैरों के तलवे सुन्न हो जाते हैं। ज्यादा चलने, चोट लगने या पत्थर वगैरह चुभने पर घाव हो जाते हैं।   हड्डियां गलने पर पैरों के आकार में विकृति आने लगती है।

एडवांस स्टेज

  • बैक्टीरिया धीरे-धीरे मरीज की सेंट्रल नर्वस को भी प्रभावित करने लगते हैं। नर्व्स मोटी और कमजोर हो जाती हैं।
  • हाथ-पैरों की मांसपेशियां काम करना बंद कर देती हैं जिससे हाथ-पैर तेढ़े होने लगते हैं।
  • हाथ की हड्डियां अकड़ जाती हैं, ग्रिप खत्म होने लगती है जिससे काम करने में तकलीफ होती है।
  • पैरों की हड्डियां अकड़ जाती हैं और चलने-फिरने में मुश्किल होने लगती है।
  • लेप्रे बैक्टीरिया आंख की पुतलियों की नर्व्स को भी संक्रमित करता हैं। आंखें झपक नही पातीं, हमेशा खुली रहती है। हवा के संपर्क में आने से ड्राई होना,लाल होना, पानी निकलना, दर्द होना  और इंफेक्शन होने जैसी समस्याएं होती हैं। मरीज को आईराइटिस अल्सर हो सकता है जिससे कॉर्निया सफेद हो जाता है और दिखना तक बंद हो जाता है।  

डायगनोज  

अर्ली डिटेक्शन लेप्रोसी का इलाज है। यानी इनमें से किसी भी तरह के लक्षण होने पर तुरंत अपने क्षेत्र के हैल्थ सेंटर या लेप्रोसी अस्पताल के डॉक्टर्स से संपर्क करना चाहिए। राष्ट्रीय कुष्ठ रोग उन्मूलन प्रोग्राम के तहत लेप्रोमाइट टेस्ट से जांच की जाती है। कुष्ठ रोगी की स्थिति को 2 वर्गो  में बांटा गया है- पॉसी-बैेसिलरी   लेप्रोसी- मरीज के शरीर पर अगर कुष्ठ रोग के 5 तक चकते मिलते है, नस ज्यादा न फूली हों, और बॉयोप्सी में लेप्रे बैक्टीरिया कम मात्रा में दिखते हैं। मल्टी-बैेसिलरी लेप्रोसी- मरीज के 6 से ज्यादा चकते शरीर पर हों, एक से ज्यादा नस फूली हो, ज्यादा बैक्टीरिया दिखें।

इलाज  

डब्ल्यूएचओ ने कुष्ठ रोग के लिए मल्टी ड्रग थेरेपी (एमडीटी) नामक प्रोटोकॉल जारी किया है। कुष्ठ रोगियों को उनकी स्थिति के हिसाब से सरकार की तरफ से एमडीटी ओरल मेडिसिन (डैप्सोन, रिफैम्पिसिन और क्लोफाजिमिना )मुफ्त में उपलब्ध कराई जाती है। पॉसी-बैेसिलरी लेप्रोसी के मरीज को इसका कोर्स 6 महीने और मल्टी-बैेसिलरी लेप्रोसी के मरीज को एमडीटी ड्रग 12 महीने तक दी जाती है। अगर किन्हीं कारणों से मरीज को आराम नहीं मिलता और उनमें कुष्ठ रोग के लक्षण एमडीटी ड्रग का कोर्स पूरा करने के बाद भी नजर आते हैं, तो उनका रि-एग्जामिन किया जाता है और स्थिति के हिसाब से दवाई दी जाती हैं। जिसके बाद व्यक्ति सामान्य जीवन बिताने में समर्थ हो सकता है। डब्ल्यूएचओ ने कुष्ठ रोग के लिए एकल खुराक रिफैम्पिसिन पोस्ट.एक्सपोज़र प्रोफिलैक्सिस (एसडीआर-पीईपी) को मंजूरी दी है। रिफैम्पिसिन की खुराक उन लोगों को दी जाती है जिन्होंने हाल ही में कुष्ठ रोग से पीड़ित व्यक्ति के साथ विस्तारित और निकट संपर्क किया है। इन व्यक्तियों को एसडीआर.पीईपी प्रदान करने से कुष्ठ रोग के जोखिम को लगभग 60 प्रतिशत तक कम करने के लिए दिखाया गया है। हाथ-पैरो में आई विकृति को आधुनिक सर्जरी के द्वारा इलाज किया जाता है। अगर व्यक्ति कोई ऐसा काम करना चाहता है जिसके लिए हाथ में फाइन कंट्रोल जरूरी है तो फिजियोथेरेपी के माध्यम में मरीज के हाथ-पैरो को इस योग्य बनाया जाता है।

गलतफहमियां

कई लोग कुष्ठ रोग को एक अभिशाप या दैवीय प्रकोप यमानते हैं। यह सच नहीं हैए कुष्ठ रोग केवल एक बैक्टीरिया के कारण होता है जो एक व्यक्ति को लंबे समय तक उजागर किया गया है। यह एक बीमारी है जिसमें इलाज के बाद मरीज ठीक हो जाता है। मरीज की त्वचा की बॉयोप्सी करके चैक भी किया जाता है जो बैक्टीरिया पहले पाए जाते थे, वो नजर आने बंद हो जाते हैं। यानी मरीज इस बीमारी से पूरी तरह ठीक हो जाते हैं।

  • लोगों को लगता है कि कुष्ठ रोग संक्रामक बीमारी है। जबकि यह बीमारी आसानी से नही फैलती, काफी लंबा समय लगता है।
  • कुष्ठ रोग वंशानुगत बीमारी नहीं है। मां-बाप से अजन्मे बच्चे को नही होता और न  यह योैन संबंध बनाने से फैलता है- इसलिए डरना नहीं चाहिए।
  • कई लोग इसे छुआछूत बीमारी मानते हैं कि कुष्ठ रोगी के साथ बैठने, खाना खाने या हाथ मिलाने से रोग फैलता है। जबकि कुष्ठ रोग छूने से नही फैलती। यह हवाजनित संक्रामक बीमारी है। अगर आप स्वस्थ है तो आपको होने की बहुत कम संभावना है।
  • ऐसा माना जाता है कि कुष्ठ रोगी की उंगलियां पिघल कर गिर जाती हैं। ऐसा नही है। घाव हाथ-पैर कमजोर होने और सुन्न पड़ने के कारण होते हैं। घाव की केयर न हो पाने से वो भरते नही हैं। सही समय पर इन घावों का इलाज शुरू करने पर ये ठीक हो जाते हैं।
  • कई लोग मानते हैं कि अगर किसी को कुष्ठ रोग हो गया है तो उसे जीवन भर अपने घरवालों से अलग रहना पड़ेगा। जबकि ऐसा नही है। एक बार अगर इलाज शुरू हो जाता है, तो उसे संक्रमण होने या दूसरों को फैलाने की संभावना न के बराबर हो जाती है। कुष्ठ रोग के इलाज के साथ उसका सामाजिक उत्थान और आर्थिक दृढ़ीकरण करने में मदद की जाती है। मरीज से किसी तरह की हीन भावना नहीं रखनी चाहिए।
    (डॉ राजीव जॉय नेथन, मेडिकल सुपरीटंेडंेट, द लेप्रोसी मिशन अस्पताल, दिल्ली)

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