Sanitary Pad Tips: पीरियड्स के दौरान सैनेटरी नैपकिंस का प्रयोग प्रत्येक महिला के स्वास्थ्य से भी जुड़ा है और उनकी गरिमा से भी। इनका प्रयोग करते समय कुछ तथ्य ऐसे हैं, जिनका ध्यान रखा जाना बहुत आवश्यक है। आइए जानें, उनके बारे में-
आज के समय में जहां देश में स्वच्छता अभियान और घर-घर शौचालय बनाने की बात हो रही है और इस पर लोगों में जागरुकता भी बढ़ रही है। यहां तक कि इस पर एक फिल्म ‘टॉयलेट एक प्रेमकथा भी बन गई। जल्दी ही ‘पैडमैन आ रही है। शौचालय के साथ-साथ ‘सैनेटरी नेपकिन पर भी बात होना बहुत जरूरी है, क्योंकि शौचालय के साथ-साथ हर स्त्री की सेहत के लिए मासिक धर्म के दौरान सैनेटरी नेपकिन का प्रयोग अति आवश्यक है।
सैनेटरी नेपकिन या सैनेटरी पैड की बात करें तो आज भी इंडियन सोसायटी में महिलाओं के पीरियड्स पर बात करना बहुत बड़ा टैबू माना जाता है या यूं कहें कि इस पर चर्चा करना अशोभनीय लगता है। सैनेटरी नेपकिन का अर्थ है एक सोखने वाला पैड, जिसे एक महिला अपने पीरियड्स के दौरान रक्त को अवशोषित करने के लिए अपनी पैंटी के अंदर पहनती है। रिसर्च के अनुसार एक शहरी महिला पूरी जिंदगी में करीब सत्रह हजार (17,000) पैड इस्तेमाल करती है।
सैनेटरी नेपकिन पर लोगों में जागरुकता तो आई है, पर क्रांति की गति बहुत धीमी है। यद्यपि सैनेटरी पैड की जरूरत को ध्यान में रखते हुए टेलीविजन पर भी विज्ञापन आते रहे हैं कि मासिक धर्म का रक्त प्रवाह कितना भी ज्यादा क्यों न हो, सैनेटरी पैड सब अवशोषित कर लेता है। उल्लेखनीय यह है कि इसके लिए सैनेटरी नेपकिन पर रेड की जगह ब्लू इंक दिखाई गई। जबकि सैनेटरी नेपकिन बनाने वाली एक कंपनी बॉडीफॉर्म ने इस टैबू को तोड़ते हुए ब्लू की जगह रेड इंक दिखाई। यह एड (विज्ञापन) ब्लड नॉर्मल कैंपेन का हिस्सा है, जिसके जरिये यह बताने की कोशिश की गई है कि पीरियड्स और ब्लड नॉर्मल है और इसे दिखाना भी बिल्कुल नॉर्मल, जबकि नीली इंक पैड पर इसलिए दिखाई जाती थी कि अगर टीवी पर यह एड पूरा परिवार एक साथ बैठकर देख रहा है, उस स्थिति में भी लोग असहज न महसूस करें।
विशेषज्ञों का मानना है कि बड़े शहरों में अधिकांश महिलाएं डिस्पोजेबल सैनेटरी नेपकिन का इस्तेमाल करती हैं, पर उन्हें यह नहीं मालूम कि ये उत्पाद कुछ रासायनिक पदार्थों की मौजूदगी के कारण स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं। इसी तरह ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश महिलाएं कपड़े का इस्तेमाल करती हैं, जो आवश्यकतानुसार पूरी तरह से साफ न होने के कारण उनके लिए कई प्रकार की स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा कर सकता है। इसी पर एक एनजीओ चलाने वाली श्रीमती पूनम त्यागी, जिन्होंने हाल ही में सैनेटरी पैड बनवाकर गांवों में बांटना शुरू किया है, कहती हैं कि ‘कई गांव तो ऐसे हैं, जहां पर कपड़ा तो मिलता ही नहीं है, बल्कि महिलाएं पीरियड्स के दौरान पुआल, सूखी घास, जो भी उपलब्ध होता है, उसे ही प्रयोग में लाती हैं। यह तो सेहत के साथ होने वाला जबरदस्त खिलवाड़ है। इसका मुख्य कारण देखा जाए तो यह है कि आॢथक स्थिति का बहुत कमजोर होना, अशिक्षा और आज के माहौल में प्योर कॉटन (शुद्ध सूती) कपड़े की उपलब्धता बहुत कम होना।Ó
Also read: स्वास्थ्य का साथी – सूप
सैनेटरी नेपकिंस के प्रयोग से जुड़ी सावधानियां
डॉ. आशा बंसल कहती हैं कि आज के समय में कई महिलाएं सैनेटरी नेपकिंस का प्रयोग करते समय काफी लापरवाही बरतती हैं। अत: कुछ सावधानियां अवश्य बरतनी चाहिए।
- माहवारी के दौरान प्रयोग में लाने वाले सैनेटरी नेपकिन एक ही ब्रांड का इस्तेमाल करें। हर बार नये सैनेटरी नेपकिन का प्रयोग करना बिल्कुल गलत है।
- अगर किसी सैनेटरी नेपकिन का ब्रांड आपको सूट नहीं करता तो इसका प्रयोग दोबारा कभी नहीं करें। ऐसा करने से स्वास्थ्य संबंधी अन्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
- पूरे दिन में एक ही नेपकिन का प्रयोग करने से आपको संक्रमण या रैशेज हो सकते हैं। अत: कम से कम ये चार बार तो बदलने ही चाहिए। इसके अलावा यदि प्रवाह ज्यादा हो तो और जल्दी बदलें। अपने मासिक धर्म के आधार पर बड़े आकार के पैड प्रयोग में लाएं।
- नया पैड बदलते समय योनि क्षेत्र को साफ करें, पर हर बार साबुन का प्रयोग नहीं करें। साथ ही सैनेटरी नेपकिन से होने वाले रैशेज से बचने के लिए शरीर के उस भाग को हमेशा सूखा रखें। साथ ही टेलकम पाउडर का प्रयोग करें।
- प्रयोग करने के बाद सैनेटरी नेपकिन को ठीक तरह से डिस्पोज ऑफ करें, क्योंकि इससे सैनेटरी नेपकिन का कचरा उठाने वाले स्वास्थ्यकर्मी के लिए खतरा उत्पन्न नहीं होगा। कारण इन्हें रिसाइकिल नहीं किया जा सकता है। अत: किसी बैग या पेपर में अच्छी तरह लपेटकर ही कूड़ेदान में डालें। नेपकिन कभी फ्लश न करें।
- इसके अलावा जब भी नेपकिन खरीदें, इस बात का ध्यान रखें कि पैकेट के ऊपर धूल न हो। साथ ही पैकेट कहीं से फटा हुआ न हो। इससे पैड भी कीटाणुयुक्त हो सकते हैं।
लेडी इरविन कॉलेज के फैब्रिक एंड अप्रैरेल ने वज्ञान विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. भावना चानना का कहना है कि सैनेटरी नेपकिन का उद्देश्य सिर्फ सोखना ही नहीं है। उत्पाद पर इसके स्वास्थ्य मानकों का कि वे कितने सुरक्षित हैं, लिखा होना आवश्यक है। दुर्भाग्य से लोग सैनेटरी नेपकिंस का चुनाव उसकेमूल्य, बनावट और पैकेजिंग करके करते है।
जबकि चुनाव करने का मुख्य मानक स्वास्थ्य होना चाहिए। सैनेटरी नेपकिंस आज हर महिला की जरूरत है। बॉलीवुड इंडस्ट्री की दीया मिर्जा, एक न्यूज वेबसाइट को दिए अपने एक इंटरव्यू में सैनेटरी नेपकिंस के बारे में बेझिझक बताया कि मैं सैनेटरी नेपकिन का इस्तेमाल नहीं करती। उसकी जगह 100त्न प्राकृतिक रूप से नष्ट हो जाने वाले बायो नेपकिन का प्रयोग करती हूं। यह नेपकिन मिट्टी को भी नुकसान नहीं पहुंचाते और खाद का काम करते हैं। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए यह एक अच्छा कदम है। सैनेटरी नेपकिन से होने वाली बीमारियां
- लंबे समय तक नेपकिन के इस्तेमाल से वैजाइना में स्टेफिलोकोकस ऑरेयस बैक्टीरिया बन जाते हैं। इससे डायरिया, बुखार और ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों का खतरा रहता है।
- नेपकिन बनाने के दौरान इन पर कृत्रिम फ्रेगरेंस और डियो छिड़का जाता है। इनसे एलर्जी और त्वचा को नुकसान होने की संभावना रहती है।
- सैनेटरी नेपकिन में रुई के अलावा रेयॉन को भी उपयोग में लाया जाता है। इससे मासिक रक्त प्रवाह सोखने की क्षमता बढ़ती है। रेयॉन में भी डायोक्सिस होता है। वहीं कपास की खेती के दौरान उस पर कई पेस्टीसाइड छिड़के जाते हैं। इनमें से ‘फुरानÓ नाम का कैमिकल रुई पर रह जाता है। इससे थायरॉयड, डायबिटीज, अवसाद व नि:संतानता की समस्या हो सकती है।
- सैनेटरी नेपकिंस में डायोक्सिन का इस्तेमाल किया जाता है। डायोक्सिन को नैपकिन को सफेद रखने के लिए काम में लाया जाता है। हालांकि इसकी मात्रा कम होती है, फिर भी यह नुकसान पहुंचाता है। इसके चलते ओवेरियन कैंसर, हार्मोन डिसफंक्शन, डायबिटीज, थायरॉयड की समस्या हो सकती है।
- बाजार में मिलने वाले ब्रांडेड सैनेटरी नेपकिन में सुपर एबजॉर्वंेट पॉलीमर्स (जेल) ब्लीच किया हुआ सेलुलोज, वूड पल्प, सिलीकॉन पेपर, प्लास्टिक, डियोडरेंट आदि का इस्तेमाल होता है, जो कहीं न कहीं नुकसान पहुंचाते हैं।
