फाइब्रोमेल्जिया महिलाओं में पुराने दर्द की एक ऐसी स्थिति है जिस वजह से पूरे शरीर में दर्द फैल जाता है। यह आम तौर पर 20 से 55 वर्ष की महिलाओं की मांसपेशियों और हड्डियों में होने वाले दर्द के कारण होता है। इसमें कई लोग थकान, नींद में व्यवधान, सिरदर्द और अवसाद तथा चिंता जैसी मानसिक तकलीफ भी अनुभव करते हैं। हालांकि इसमें थोड़ा-बहुत मांसपेशियों का दर्द हमेशा बना रहता है लेकिन दर्द की तीव्रता कम- ज्यादा होती रहती है और चिंता या तनाव, अनिद्रा, थकान या ठंड या नमी के कारण यह दर्द बढ़ जाता है। मांसपेशियों में खिंचाव सोकर उठने के साथ ही शुरू हो जाता है और दिन चढ़ने के साथ यह बढ़ता जाता है।
लगभग 90 प्रतिशत लोगों को लगातार थकान के साथ-साथ अच्छी तरह तरोताजा नहीं रहने या पूरी नींद नहीं लेने जैसी शिकायत रहती है। मरीजों को बांहों तथा टांगों में सुन्नापन, सिहरन या असामान्य खिंचाव भी महसूस हो सकता है। इस स्थिति में माइग्रेन या मस्कुलर सिरदर्द, पेट में गड़बड़ी या पेशाब संबंधी समस्या मसलन ब्लाडर पेन और अचानक से और बार-बार पेशाब लगना जैसी समस्याएं आम हैं।
फाइब्रोमेल्जिया के बारे में समझा जाता है कि यह दर्द के अहसास में होते रहने वाले बदलाव का परिणाम होता है, इस स्थिति को “सेंट्रल सेंसेशन” कहा जाता है जो आनुवांशिक प्रवृत्ति, शारीरिक या भावनात्मक चोट सहित तनाव बढ़ाने वाले कारकों, अनिद्रा या अन्य चिकित्सा स्थितियों के कारण हो सकती है।
फाइब्रोमेल्जिया का इलाज संभव है। इसके इलाज का मकसद दर्द में कमी लाना, नींद में सुधार लाना, शारीरिक गतिविधियो को सुचारू बनाना, सामाजिक मेलजोल बरकरार रखना और भावनात्मक संतुलन स्थापित करना है। इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए मरीजों को सामाजिक सहयोग, शिक्षा, शारीरिक सुधार और दवाइयों से मिश्रित इलाज किया जाता है। दर्द से निजात दिलाने वाले चिकित्सक, साइकोलाॅजिस्ट और फिजियोथेरापिस्ट की मदद से मरीजों को इस स्थिति से उबारा जाता है।
इसके लिए जहां मरीजों में सकारात्मक बदलाव लाने की जरूरत पड़ती है वहीं परिवार के सदस्यों, नियोक्ताओं, नीति निर्धारकों की मदद भी मरीजों की स्थिति पर बड़ा प्रभाव डाल सकती है। क्लिनिशियनों को फाइब्रोमेल्जिया सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्ति की वास्तविक स्थिति समझने के लिए तैयार होना चाहिए जिससे वे मरीज की जिंदगी पर व्यापक असर डाल सकें और उनके साथ सहानुभूति से पेश आना चाहिए। मरीजों को शिक्षित करना और यह समझना जरूरी है कि उचित व्यवहार बनाए रखना और एक हद तक उपचारात्मक प्रक्रिया में सक्रिय भागीदारी करने से उन्हें लाभ मिल सकता है।
एरोबिक एक्सरसाइज से न सिर्फ हर किसी की सक्रियता बढ़ाई जा सकती है बल्कि उनके दर्द में कमी, अच्छी नींद, संतुलित मिजाज, मानसिक स्थिति में सुधार तथा स्वास्थ्य में सुधार भी लाया जा सकता है। हाॅट बाथ, हाॅट वाटर बोटल, इलेक्ट्रिक हीट पैड या साउना जैसे हीट प्रक्रिया मांसपेशियों को आराम पहुंचाती है, व्यायाम करने के योग्य बनाती है और बेहतर सेहत का अहसास कराती है। इस स्थिति से उबरने के लिए आजमाई गई कुछ नई चिकित्सा पद्धतियां भी उपलब्ध हो गई हैं जिनमें एनाजेसिक, एंटीडिप्रेजेंट की अल्प मात्रा दी जाती है और इस स्थिति से उबारने के लिए कुछ एंटीकनवल्सेंट दवाइयां भी कारगर साबित हुई हैं।
इस प्रकार फाइब्रोमेल्जिया पीड़ितों को बहिष्कृत कर डायग्नोज नहीं करना चाहिए। प्रबंधन और मरीज के लिए बहुआयामी उपाय करते हुए परिवार को शिक्षित करना और उसे इसमें भागीदार बनाना ही इसकी सही डायग्नोसिस है और इससे मरीज को बेहतर जिंदगी जीने में मदद मिल सकती है।
(पुष्पेंदर सिंह मेहता, एसोसिएट कंसल्टेंट पेन मेडिसिन, इंडियन स्पाइनल इंजरीज सेंटर, नई दिल्ली से बातचीत के आधार पर)
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