पिछले दिनों हमारे माननीय मोदी जी ने बहुत सार्थक संदेश दिया था- आपदा को अवसर बनाने का। केवल इस एक वाक्यांश के लिए मोदी जी को, श्रेष्ठ मोटिवेशनल गुरु की संज्ञा आसानी से दी जा सकती है। इस बात को जरा विस्तार दें, तो आसानी से समझ में आ जाएगा कि आपदा आने पर ही अवसर पैदा होते हैं। उस आपदा काल का सार्थक उपयोग करने के लिए, जो लोग कदम उठाते हैं, वे जीवन की दौड़ में कई-कई कदम आगे बढ़ जाते हैं।

अब यही देखिए ना, पिछले पांच-छह महीनों में इस कोरोना से डरे-डरे लोगों ने न जाने क्या-क्या किया होगा, लेकिन हमारे पड़ोस के खन्ना साहब की वाइफ, यानी मिसेस खन्ना ने वह कर दिखाया, जो पिछले 10 सालों से नहीं हो पा रहा था।

80 किलो से 60 किलो वजन घटाना कोई मामूली बात तो नहीं है। मैंने पूछा भी कि भाभी जी यह चमत्कार कैसे हो गया, तो जवाब मिला कि लॉकडाउन के शुरू के 15 दिन तो समझ में ही नहीं आया था कि कैसे मैनेज होगा, लेकिन फिर जब मैंने देखा कि खन्ना साहब और बच्चे सभी घर पर हैं, तो वह सुबह वाली भागदौड़ तो खत्म हो ही गई। बस तभी कुछ विचार कर और अपने मोटे शरीर पर एक नजर डाल कर तय किया कि इधर अपना ध्यान देना है। तभी गूगल पर सर्च करके कुछ मोटापा घटाने के अभ्यास ढूंढे और फिर सुबह का एक सवा घंटा इसी के नाम कर दिया। नतीजा आपके सामने है, जबकि पिछले 10 सालों में कितनी ही बार जिम ज्वाइन किया, लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारियां कहां चैन लेने देती हैं। हर बार एक आध हफ्ते बाद छूट गया। मैंने एक प्रशंसा भरी निगाह उनकी बैलेंस्ड फिगर पर डाली और भाभी जी, आपने तो सचमुच आपदा को अवसर में बदलने का मोदी जी का सपना सच कर दिखाया, कह कर चला आया।

एक मिसेस खन्ना क्या, आस पास आप नजर डालें तो आसपास के ही परिवारों में, ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे, जहां किसी ने तो अपनी भूली बिसरी हाबी जैसे- कविता लिखना, कहानी लिखना, पेंटिंग वगैरह-वगैरह को डेवलप कर लिया और बचपन के भूले बिसरे सपनों को सच बनाने की दिशा में कदम बढ़ा दिए, तो किसी ने अपने बाल गोपालों को पढ़ाने की जिम्मेदारी अपने सर ले कर उन्हें इतनी अच्छी तरह से कोच किया कि वे स्कूल की मेम का चेहरा ही भूल गए।

अभी कल ही गणेश चतुर्थी का उत्सव था। जाहिर है कि इस बार ना तो मंडप सजने थे, ना ही सार्वजनिक आयोजन होने थे, तो ज्यादातर घरों में, घर पर ही श्री गणेश की प्रतिमा स्थापित की गई और पूजन किया गया। हमारे पड़ोस की अस्थाना आंटी के घर से शाम को प्रसाद रूप में जब लड्डू और कुछ अन्य मिठाइयां आईं, तो उनके स्वाद ने हम सबको चकित कर दिया। हमारी मेम साहब से नहीं रहा गया, तो उन्होंने अस्थाना आंटी से पूछ ही लिया कि यह मिठाइयां किस हलवाई से मंगवाई थीं। पूछने पर आंटी ने बताया कि अस्थाना साहब को मिठाई खाने का बेहद शौक है और लॉकडाउन में तो सारे हलवाई बंद थे तो और कोई रास्ता ना देखकर उन्होंने घर पर ही मिठाई बनाने का निश्चय किया और अस्थाना साहब और बच्चे भी, क्योंकि खाली ही थे तो उन्होंने भी भरपूर साथ दिया। अब हालत यह है, कि हलवाइयों की दुकानें खुले एक महीने से ज्यादा हो गया है, लेकिन उनकी बनाई मिठाइयों के आगे किसी को हलवाई की मिठाई समझ में ही नहीं आती है। इधर जितने छोटे बड़े त्यौहार हुए, सब पर, घर पर ही मिठाइयां बनीं और उस काम में सबने साथ भी दिया।

ऐसे न जाने कितने और उदाहरण होंगे। अब-जब कि धीरे-धीरे हम कोरोना के साथ रहना सीख चुके हैं। जीवन रफ्ता-रफ्ता नॉर्मल होता जा रहा है। लॉकडाउन एक, दो, तीन के बाद उम्मीद है कि लॉकडाउन चार तक लगभग सारे ही बंधन और बंदिशें समाप्त हो जाएगीं, तो अब जरूरत इस बात की है कि जो अच्छी आदतें आपने चाहे मजबूरी में ही सही, इस कोरोना काल में अपने अंदर डेवलप कर ली थीं, उन्हें भुलाया न जाए, क्योंकि आपदा को अवसर बनाने की अगली कड़ी उस अवसर का सर्वोत्तम इस्तेमाल और उस इस्तेमाल से जीवन को बेहतर बनाना है।

कोरोना काल में वैसे भी कुछ सच तो उजागर हो ही गए हैं, जैसे कि घर पर बैठकर भी काम किया जा सकता है, कि अगर खान-पान और जीवन शैली में सुधार कर लिया जाए तो (जो मजबूरी में कोरोना काल में करना पड़ा) तो डॉक्टर और दवाओं का खर्चा काफी कम हो सकता है, कि ऑनलाइन की सुविधा को अगर ठीक से इस्तेमाल किया जाए, तो बिना आए-जाए, कम समय में भी, सामाजिकता बेहतर तरीके से बरकरार रह सकती है।

तो जैसा हमने कहा, अब सबसे बड़ी जरूरत यही है, कि वे अच्छी आदतें जो इस बीच हमने डेवलप कर ली हैं, उन्हें जीवन का हिस्सा बना लिया जाए। जैसे मिसेस खन्ना ने सुबह जल्दी उठकर योगा वगैरह से अपना वजन घटाया, तो निश्चित रूप से आप में से कईयों ने भी, योग, रस्सी कूदना, जौगिंग जैसी आदतें डेवलप की होंगी। तब बेशक ये मजबूरी थी, लेकिन ध्यान रहे कि आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को इसने ही बढ़ाया।

तो इसे जारी रखना है, अभी भी और आगे भी, ताकि दिन भर के लिए आपके अंदर पॉजिटिव उर्जा मौजूद रहे और रोगों से लड़ने की शक्ति बरकरार रहे।

मास्क और सामाजिक दूरी, बेशक कुछ लोग मानते होंगे, कि उन पर जबरदस्ती थोपे गए, इनकी जरूरत ही क्या थी, लेकिन सच्चाई यह है कि यह मास्क हमें कोरोना छोड़िए, अन्य सारे मौसमी इंफेक्शन से भी बचाते हैं। पब्लिक ट्रांसपोर्ट में तो हम न जाने किन-किन लोगों के साथ सीट शेयर करते हैं और अगर उनमें से किसी को भी, एलर्जी या इंफेक्शन है, तो मास्क आपकी बहुत बड़ी ढाल साबित होगा। याद रखिए जापान के लोग, अपनी इसी आदत के कारण, बहुत सारी बीमारियों से बचे रहते हैं और इस कोरोना से संघर्ष के समय भी, उनकी इस आदत ने उनका बहुत साथ दिया। इधर इस लॉकडाउन पीरियड में, आपने हेल्दी खाने के भी कई प्रयोग किए होंगे और धीरे-धीरे उन प्रयोगों से बना हेल्दी खाना परिवार को भी रास आने लगा होगा, तो इसे कंटीन्यू रखिए।

इधर पिछले 5 महीनों में महिलाओं पर जो सबसे बड़ी मुसीबत आई, वह थी ब्यूटी पार्लरों का बंद हो जाना।

ट्रिमिंग, फेशियल, मसाज वगैरह-वगैरह सब पहुंच से दूर हो गए। परिणाम महिलाओं को दादी-नानी के नुस्खों की शरण में जाना पड़ा। घर पर उपलब्ध सामग्री से फेस मास्क बनाए गए। कभी चेहरे पर हल्दी चंदन, तो कभी शहद नींबू का पेस्ट। मजे की बात यह है कि जिन महिलाओं ने यह नुस्खे आजमाए, उन्हें डबल फायदा हुआ। त्वचा पहले से ज्यादा चमकदार और जानदार नजर आने लगी और खर्चा भी बचा। तो अब वापस ब्यूटी पार्लर की ओर लौटने की जरूरत नहीं है। यह फॉर्मूले अभी भी काम आएंगे और आगे भी।

इस बीच कुछ महिलाओं ने घर की शेल्फ में बरसों से धूल खा रही किताबों को जब साफ-सफाई के दौरान झाड़ कर हाथ में लिया तो उनके चेहरे खिल उठे और फिर एक बार जब उन किताबों से पुरानी दोस्ती ताजा हुई, तो रिलैक्स होने का पुराना तरीका मन को भाने लगा। आप भी इस दोस्ती को बरकरार रखिए। आखिर में चलते-चलते एक बात और नॉर्मल लाइफ के पटरी पर आ जाने के बाद, थोड़ी बहुत आउटिंग और शॉपिंग तो शुरू होना लाजमी है, तब बाहर निकलते समय अपनी मनपसंद ड्रेस जो इन पांच महीनों में वार्डरोब की शोभा बढ़ा रही थी, को पहन कर जरूर जाएं, इससे तनमन तो खिलेगा ही साथ ही पतिदेव की मुस्कुराहट का नया अंदाज भी उनके चेहरे पर देखने को मिलेगा। 

यह भी पढ़ें – फर्स्ट एड किट क्यों जरूरी है