Natural Lifestyle: यदि हम सुबह की शुरुआत भारतीय पारंपरिक तरीकों से करते हैं तो खुद को लंबे समय तक बीमार होने से बचा सकते हैं।
सकारात्मक बने रहें
सुबह उठकर अपने शारीरिक और आध्यात्मिक शुद्धि पर जोर दें और दिन के लिए सकारात्मक माहौल तैयार करें। अच्छी आदतें जैसे- सूर्योदय से पहले जागना, शरीर को शुद्ध करना, प्रार्थना करना, ध्यान करना इत्यादि से खुद को संतुलित रखें।
‘ध्यान, सांस और मौन- यही है हमारे असली तंदुरुस्ती का राज’
आजकल फिटनेस का मतलब हो गया है जिम जाना, वजन घटाना या फिर किसी खास तरह की डाइट का अनुसरण करना। पर असली तंदुरुस्ती सिर्फ शरीर की नहीं होती, मन और आत्मा की भी जरूरत होती है। प्राचीन समय में भी घर की महिलाएं आज से अधिक तंदुरुस्त रहती थीं, जबकि ना कोई जिम था और ना ही कोई खास डाइट। फिर भी उनकी जीवनशैली इतनी सुसंस्कृत और प्राकृतिक थी कि वे बिना अतिरिक्त प्रयास के स्वस्थ और प्रसन्न रहती थीं संपूर्ण स्वास्थ का
रहस्य हमारे रोजमर्रा के छोटी-छोटी चीजों में ही छिपा हुआ है- बस जरूरत है उसे समझने
और अपनाने की।
प्राकृतिक दिनचर्या की ओर लौटिए
1. पहला स्नान- सूरज की किरणों का होना चाहिए।
2. पहला आहार- सुबह की ताजी हवाओं का। सुबह की खुली हवा में जाकर गहरी सांस लें। प्राणायाम करें- जैसे कि अनुलोम- विलोम या बस ध्यानपूर्वक गहरी सांसें भरें। यह न केवल आपके फेफड़ों को ताजगी देता है, बल्कि पूरे शरीर और मन को ऊर्जावान बनाता है।
सूरज की पहली किरणें- एक प्राकृतिक औषधि
हर दिन सुबह की धूप में 10 से 15 मिनट बिताइए। यह सिर्फ विटामिन डी देने का स्रोत नहीं है, बल्कि मूड और मन:स्थिति को भी स्थिर और प्रसन्न बनाता है। वैज्ञानिकों ने भी माना है कि सुबह की धूप में बैठने से डिप्रेशन और चिंता जैसी मानसिक समस्याएं कम होती हैं।
धरती से जुड़ाव- घास पर नंगे पांव चलना
जब हम हरी घास पर नंगे पांव चलते हैं, तो पृथ्वी की ऊर्जा सीधे हमारे शरीर में प्रवाहित होती है। यह नेत्र-ज्योति को तेज करता है, मस्तिष्क को शांत करता है और पूरे शरीर को स्फूर्तिवान बनाता है।
पेड़ों के बीच चलना या किसी पार्क में बैठना- मन को वह सुकून देता है जो शायद किसी मेडिटेशन ऐप से भी न मिले। यह मन को स्थिरता और प्रकृति से जुड़ाव का अनुभव कराता है।
ध्यान और मौन- आत्मा की औषधि

दिनभर की भागदौड़ में हम खुद को खो बैठते हैं। अगर आप हर दिन सिर्फ 10 मिनट भी आंखें बंद कर मौन में बैठें और गहरी सांस लें, तो आपकी मानसिक हलचल शांत होने लगेगी। ध्यान और मौन शरीर नहीं, आत्मा का व्यायाम है।
रसोई को बनाएं मंदिर- खाना बनाएं आनन्द और श्रद्धा से
खाना सिर्फ पेट भरने का माध्यम नहीं है, यह हमारी मानसिक और भावनात्मक ऊर्जा का स्रोत है। इसलिए रसोई में भक्ति का वातावरण बनाएं। धीमी और मधुर ध्वनि में बांसुरी, संतूर या कोई भजन चले तो भोजन में वह सात्विक ऊर्जा भर जाती है जो पूरे घर को सकारात्मक बनाती है। अगर मन में क्रोध या चिंता हो, तो खाना भी वैसी ही ऊर्जा लेकर आता है। इसलिए भोजन बनाते समय
मुस्कान हो, मन शांत हो और भाव में कृतज्ञता हो।
खुशी और कृतज्ञता से खाएं
खाने को प्रसन्नता से ग्रहण करना खुद को पोषण देना है। सोचिए- कितने भाग्यशाली हैं हम कि हमारे पास रसोई है, पकाने को रसोई है और अपने प्रियजनों को प्रेम से खिला सकने का प्रेम और आनंदपूर्ण भाव भी है।
प्रेम और आनंद से पकाया हुआ साधारण-सा भोजन भी अमृत के समान होता है। जब आप भक्ति, ध्यान और प्रकृति से जुड़े रहते हैं- तब आपका शरीर नहीं, आपकी आत्मा भी स्वस्थ और संतुलित रहती है। यह स्पिरिचुअल फिटनेस सिर्फ शरीर को मजबूत नहीं बनाती, यह आपको भीतर से एक पूर्ण और प्रसन्न मनुष्य बनाती है। थोड़ा-सा समय रोज अपने लिए निकालिए- क्योंकि आप ही
तो पूरे घर की आत्मा हैं। अगर आप स्वस्थ, प्रसन्न और स्थिर रहेंगी, तभी पूरा घर संपूर्ण
रूप से शांत प्रसन्न और तंदुरुस्त रहेगा।
