विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, सालाना ग्रीवा कैंसर से 2,70,000 लोगों की मौत होती है जिसमें से 85 प्रतिशत मौतें भारत जैसे विकासशील देशों में होती हैं। एक अनुमान के मुताबिक, हर साल भारत में 1,32,000 नए मामलों का पता चलता है, जबकि 74,000 मौतें होती हैं। इस तरह, विश्व में ग्रीवा कैंसर से करीब एक तिहाई मौतें भारत में होती हैं।
प्रमुख कारण है एचपीवी विषाणु
अच्छी खबर यह है कि यदि इस दुनिया के हमारे भाग में ग्रीवा कैंसर की स्क्रीनिंग एक नियम बन जाए और यौन संबंध से शरीर में प्रवेश करने वाले एचपीवी विषाणु के लिए वैक्सीनेशन कराया जाए तो इनमें से ज्यादातर मामलों की रोकथाम की जा सकती है। ग्रीवा कैंसर के प्रमुख कारणों में ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (एचपीवी विषाणु) प्रमुख है। ग्रीवा का कैंसर 15 से 44 वर्ष के आयु वर्ग में महिलाओं में दूसरा सबसे आम कैंसर है जिससे ग्रीवा- गर्भाशय का निचला हिस्सा प्रभावित होता है जो योनि से जुड़ा होता है। ग्रीवा कैंसर के ज्यादातर मामले यौन संबंध से होने वाले संक्रमण से होते हैं।
वृहद स्क्रीनिंग कार्यक्रम
प्रामाणिक, गैर आक्रामक और लागत प्रभावी स्क्रीनिंग तकनीकी के आने के साथ इस कैंसर के मामले विशेषरूप से पश्चिमी देशों में कई गुना कम हुए हैं जहां ज्यादातर देशों ने इस बीमारी के लिए वृहद स्तर पर स्क्रीनिंग कार्यक्रम शुरू किए हैं। हालांकि, भारत में खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में जहां यह स्तन कैंसर से भी कहीं अधिक घातक रूप ले चुका है, हर साल हज़ारों महिलाओं मौत के मुंह में जा रही हैं।
ग्रीवा कैंसर के लक्षण
शुरुआती स्तर पर ग्रीवा कैंसर के कोई लक्षण नहीं दिखते लेकिन यदि आपकी योनि से सामान्य रूप से स्राव हो रहा है या खून जा रहा है, यौन संबंध बनाने के दौरान परेशानी हो रही है या दर्द होता है तो तत्काल अपने डॉक्टर से संपर्क करें क्योंकि ये लक्षण ग्रीवा कैंसर के सांकेतिक लक्षण हो सकते हैं। इस बीमारी के अन्य लक्षणों में भूख नहीं लगना, वज़न घटना, थकान, पीठ में दर्द, पैर में दर्द, पैर में सूजन, हड्डी टूटना और या योनि से पेशाब का छूटना शामिल हैं। साफ करने या पेल्विक जांच के बाद खून आना ग्रीवा कैंसर का दूसरा सामान्य लक्षण है। ग्रीवा कैंसर के ज्यादातर मामलों में इसके शरीर के अन्य हिस्सों तक फैलने तक इसका कोई लक्षण नहीं दिखाई देता। पूर्व कैंसरजनक चरण में ही इस बीमारी का केवल नियमित स्क्रीनिंग के जरिये ही पता लगाया जा सकता है।
ग्रीवा कैंसर के लिए जोखिम के कारक
- हार्मोनल गर्भनिरोधक का लंबे समय तक उपयोग
- यौन गतिविधि की जल्द शुरुआत
- एक से अधिक लोगों से यौन संबंध बनाना
- धूम्रपान करना
- एचआईवी के साथ सह संक्रमण
- साफ सफाई नहीं रखना
- एंटीऑक्सिडेंट वाले खाद्य पदार्थ कम लेना
ग्रीवा की स्क्रीनिंग
ग्रीवा की स्क्रीनिंग या जांच शुरुआती चरण में ग्रीवा कैंसर का पता लगाने का सबसे अच्छा उपाय है और इससे सफल इलाज की संभावना बढ़ जाती है। ग्रीवा कैंसर की स्क्रीनिंग के लिए एक डॉक्टर या नर्स की जरूरत होती है जो गर्भाशय की सतह से पपड़ी पड़ी हुई कोशिकाओं को लेता है और एक पैथोलॉजिस्ट कैंसर की शुरुआती संभावनाओं का यदि मौजूद है, पता लगाता है। लिक्विड आधारित कैटोलॉजी (एलबीसी) और पीएपी टेस्ट ग्रीवा की स्क्रीनिंग की दो प्रमुख पद्धतियां हैं। ये दोनों ही जांच गैर आक्रामक और दर्दरहित हैं। बीमारी की रोकथाम के लिए ये जांच महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इनसे गर्भाशय में किसी असामान्य कोशिका की वृद्धि का पता लगाने में मदद मिलती हैं और इनके कैंसरजनक बनने से पहले ही इनका पता लग सकता है। जिन ज्यादातर महिलाओं में ग्रीवा का कैंसर होने का पता चलता है, उनकी उम्र 50 से कम होती है और इनमें से बहुत कम ही 65 वर्ष की आयु से ऊपर की होती हैं। यही वजह है कि 21 और 65 वर्ष के बीच की महिलाओं के लिए स्क्रीनिंग की सलाह दी जाती है।
- ग्रीवा की स्क्रीनिंग (पीएपी या एलबीसी) 21 वर्ष की आयु से शुरू कर 65 वर्ष की आयु तक हर तीन साल बाद कराया जाना चाहिए।
- इस उम्र से पहले कराने से मना किया जाता है बशर्ते कि यौन संबंध की शुरुआत न की गई हो या अन्य अधिक जोखिम के कारक न हों।
- महिलाएं एक संयुक्त ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (एचपीवी) जांच और पीएपी जांच भी 30 वर्ष की आयु शुरू होने पर हर पांच साल में कराएं।
- यदि किसी असामान्य स्थिति का पता चलता है तो यह जांच 20 वर्षों तक लगातार कराई जानी चाहिए।
एचपीवी वैक्सीनेशन (टीकाकरण)
जहां ज्यादातर एचपीवी संक्रमण खुद ही ठीक हो जाते हैं, इनमें से कुछ कैंसरजनक बन जाते हैं। सामान्य रोग प्रतिरोधक क्षमता वाली महिलाओं में ग्रीवा का कैंसर विकसित होने में 15 से 20 साल लगते हैं। कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाली महिलाओं में ही इसके विकसित होने में केवल पांच से दस साल का समय लगता है।
वर्तमान में केवल दो वैक्सीन उपलब्ध हैं जो एचपीवी 16 और 18 से रक्षा करते हैं। एचपीवी 16 और 18 को ग्रीवा कैंसर के कम से कम 70 प्रतिशत मामलों में मुख्य कारण माना जाता है। क्लीनिकल परीक्षणों में इन वैक्सीन्स को एचपीवी 16 और 18 के संक्रमण को रोकने में सुरक्षित और प्रभावित पाया गया है। हालांकि, इन वैक्सीन्स को प्रथम यौन गतिविधि से पूर्व दिया जाना चाहिए।
(डॉक्टर शिल्पा घोष प्रसूति विभाग की प्रमुख एवं वरिष्ठ सलाहकार और महिला रोग विशेषज्ञ, वेंकटेश्वर हॉस्पिटल, नयी दिल्ली से बातचीत पर आधारित)
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