प्राण का अर्थ है दिव्य शक्ति और यह शक्ति पांच रूपों में हमारे शरीर में विद्यमान है, जिसे प्राण, अपान, समान, उदान और व्यान कहा जाता है। प्राण सांस क्रिया को संचालित करता है। अपना शरीर दूषित वायु को नीचे के मार्ग से निकालता है। समान शरीर के सभी अंगों को संयमित करता है। उदान शरीर को चिडिय़ा की तरह उडऩे की शक्ति प्रदान करता है और व्यान पूरे शरीर के प्राण वायु को नियंत्रित करता है। इन पांच प्राणों को प्राणायाम के द्वारा नियंत्रित किया जाता है। अगर किसी कारण से इन प्राणों का संतुलन बिगड़ता है, तो शरीर में बीमारी पैदा होने लगती है। इसी विकार को रोग, व्याधि और बीमारी कहते हैं। मतलब जो आप सामान्य थे उसमें विकृति आ गई

उसी प्रकार स्वस्थ शब्द है जिसका अर्थ है स्व में स्थ। अपने स्वरूप में स्थिर रहना। मनुष्य का मूल स्वरूप है स्वस्थ रहना। उसी से स्वास्थ्य बना है। जब स्व के स्वरूप में विकार पैदा हो जाता है तो मनुष्य अ-स्वस्थ बन जाता है। अस्वस्थ रहना हमारा धर्म नहीं है, यह हमारी किसी भूल का परिणाम है। जैसे महंगी से महंगी गाड़ी हम खरीद लें और उसकी देखभाल ठीक से न करें तो वह खराब हो सकती है। उसी प्रकार शरीर को अगर संतुलित आहार, पूरी देखभाल एवं उसका पोषण ठीक से न किया जाए तो वह भी खराब हो सकता है। क्योंकि हमारा शरीर भी तो एक यंत्र है, जो किसी नियम से चल रहा है। इसके निर्माण में पांच तत्व लगे हुए हैं- पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश। इन पांच तत्वों के समान संतुलन बने रहने से ही शरीर स्वस्थ रहता है। इनमें से किसी एक तत्व की कमी हो जाए तो संतुलन के अभाव में बीमारी पैदा हो जाती है।
हमारे शरीर में मूलत: तीन स्थितियों के असंतुलन से ही बिमारियां होती हैं, कफ विकार, पित्त विकार और वायु विकार। जब खान-पान में अथवा रहन-सहन में कोई भी गड़बड़ी होती है, तो इनमें से कोई एक बीमारी उत्पन्न हो जाती है, कफ दोष, पित्त दोष या वायु दोष। आजकल लोग पित्त दोष और वायु दोष से अधिक परेशान हो रहे हैं। इसका एक ही कारण है कि वे लोग शरीर के अंगों में प्राण वायु का ठीक से संचार नहीं कर पाते।