‘लापता लडीज’ के बेस्‍ट ये सीन्‍स जिन्‍होंने जीता लोगों का दिल: Laapataa Ladies Best Scenes
Laapataa Ladies Best Scenes

Laapataa Ladies: ‘लापता लेडीज’ को हाल ही में ऑस्कर के लिए भारत की तरफ से आधिकारिक तौर पर भेजने के लिए चुना गया है। इस फिल्‍म के विषय, कलाकारों के अभिनय और किरण राव के निर्देशन ने दर्शकों के दिलों तक अपनी पहुंच बनाई। फिल्‍म की कहानी के कई पहलुओं ने दर्शकों को छुआ। महिलाओं की समाज में स्थिति और उनके वजूद को न समझ पाने की इस कहानी को किरण राव ने बहुत ही बेहतरीन तरीके से दिखाया है। ऑस्‍कर नॉमिनेटेड ‘लापता लेडीज’ के कुछ सीन्‍स ऐसे हैं जो लोगों को बबेहद पसंद आए। ये सीन्‍स समाज के कुछ ऐसे पहलुओं को उजागर करते हैं जो आज भी कहीं न कहीं महिलाओं के जीवन का हिस्‍सा हैं। आइए डालते हैं एक नजर इन सीन्‍स पर।

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फिल्‍म में एक सीन है जहां फूल से शादी के बाद उसका पति उसे प्रभावित करने के लिए कहता है कि अंगेजी बोल के दिखाएं। इस सीन में मासूमियत के साथ अपने जीवनसाथी को प्रभावित कर उसे जीवन का हिस्‍सा बनाने की कोशिश करता है। जो कहीं न कहीं देश में अंग्रेजी भाषा के प्रभाव पर कटाक्ष है। इस सीन में भले ही दीपक अपनी पत्‍नी को प्रभावित करने की कोशिश करता है लेकिन उसका ये समझना कि अंग्रेजी बोलने से फूल ज्‍यादा प्रभावित हो सकती है यही दर्शाता है कि भारत में हिंदी से ज्‍यादा अंग्रेजी को महत्‍व दिया जाता है। हालांकि ये सीन दर्शकों को खूब पसंद आया था वजह थी दोनों कलाकारों की मासूमियत।

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फिल्‍म में जब फूल दीपक से बिछड जाती है तो रेलवे स्‍टेशन पर छोटू उसे वहां टी-स्‍टॉल चलाने वाली दादी के पास ले जाता है। फूल जब अपने घर जाने ये कहकर मना करती है कि सब लोग कहेंगे कि मुझमें ही कौनो दोष होगा तभी मेरा पति टेशन पर छोड गया। भले घर की बेटी-बहू बिना पति के मायके नहीं जाती। दादी उसे समझाते हुए कहती हैं फ्रॉड का मतलब समझती हो, किसी को ठगना को उल्‍लू बनाने का फ्रॉड कहते हैं। ई देश में लड़की लोग के साथ हजारों सालों से एक फ्रॉड चल रहा है। उका नाम है भले घर की बहू-बेटी। इस सीन में दिखाने की कोशिश की गई है कि कैसे लडकियों का सालों से कुछ नियमों में बांध कर रखा गया है। अच्‍छे घर की लडकियां ये नहीं करती वों नहीं करती ऐसी बातें अक्‍सर सुनने को मिल ही जाती हैं।

‘लापता लेडीज’ में एक सीन में दीपक अपनी शादी का फोटो लेकर लोगों से पूछताछ करता है कि शायद किसी ने उसे आस पास देखा हो। वो एक दुकान वाले को फोटो दिखाता है। दुकान वाला घूंघट में फूल की फोटो देखकर कहता है इसमें तो घूंघट से चेहरा ढका है, तो कैसे कोई पहचानेगा। घूंघट से चेहरा ढंकना मतलब पहचान ढंकना। तभी दुकानदार के घर से एक महिला चाय लेकर आती है जिसने बुर्के से चेहरा ढंका होता है। इस पर दीपक और उसका दोस्‍त दोनों उसे देखते हैं और वहां से चले जाते हैं। इस सीन में मेकर्स ने अलग अलग धर्मों में महिलाओं की स्थिति और पहचान पर कटाक्ष किया है।

निशा सिंह एक पत्रकार और लेखक हैं, जिनका जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर जिलेमें हुआ। दिल्‍ली और जयपुर में सीएनबीसी, टाइस ऑफ इंडिया और दैनिक भास्‍कर जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्‍थानों के साथ काम करने के साथ-साथ लिखने के शौक को हमेशा जिंदा...