Kerala High Court Judgement: कितनी बार देखा है आपने एक लड़की जब ससुराल जाती है, तो साथ जाती हैं उसकी मां-बाप की दी गई निशानियाँ। चमकते गहने, जो सिर्फ आभूषण नहीं होते वे मां की ममता, पिता की तपस्या और परिवार के सपनों की चमक लिए होते हैं। लेकिन शादी के बाद ये सब कुछ ‘ससुराल के तिजोरी’ में बंद कर दिया जाता है और लड़की से कह दिया जाता है, ‘यही रिवाज है।’
अब, केरल हाईकोर्ट ने इस ‘रिवाज’ की जंजीर को तोड़ा है और साफ शब्दों में कहा है कि शादी में दिया गया सोना, नकद और गिफ्ट स्त्रीधन है और उस पर सिर्फ महिला का अधिकार है।
क्या है मामला?
केरल के कालामसेरी की एक महिला ने अपने तलाक के बाद अदालत का दरवाज़ा खटखटाया। महिला ने यह दावा किया कि उसे विवाह के समय उसके परिवार ने 63 तोला सोना और दो तोले की एक चेन दी थी, साथ ही रिश्तेदारों ने 6 तोला सोना और उपहार दिए थे। विवाह के बाद ससुराल वालों ने सुरक्षा के नाम पर ये गहने अपने कमरे में रखवा लिए थे और बाद में पति ने ₹5 लाख की अतिरिक्त मांग भी की।
महिला ने यह साबित किया कि यह सोना उसके माता-पिता द्वारा किए गए फिक्स्ड डिपॉज़िट से खरीदा गया था। अदालत ने उनके पक्ष में निर्णय देते हुए निर्देश दिया कि पति को 59.5 तोला सोना या उसके वर्तमान मूल्य के बराबर राशि महिला को लौटानी होगी।
कोर्ट का सशक्त फैसला
केरल हाईकोर्ट की बेंच न्यायमूर्ति देवन रामचंद्रन और एम.बी. स्नेहलता ने फैसला सुनाया कि विवाह में मिला सोना और नकद महिला की निजी संपत्ति है। भले ही कोई दस्तावेज़ न हो, परंतु न्याय “संभावनाओं” और “व्यवहारिक सच्चाई” के आधार पर किया जाएगा। महिला को 59.5 तोला सोना (या उसके बराबर की रकम) लौटाने का आदेश दिया गया।
क्यों है यह फैसला महत्वपूर्ण?
हमारे समाज में लड़कियों को दिया गया गहना अक्सर उनके “सुरक्षा कवच” के रूप में देखा जाता है। लेकिन दुर्भाग्य से वही कवच कई बार उनके खिलाफ इस्तेमाल हो जाता है जब उन्हें उससे दूर रखा जाता है, या जब रिश्तों की दीवारें गिरने लगती हैं।
इस फैसले ने यह स्थापित किया है कि स्त्रीधन कोई ‘पारिवारिक जमा’ नहीं है। वह महिला की व्यक्तिगत संपत्ति है। सिर्फ दस्तावेज़ की कमी होना महिला को उसके अधिकार से वंचित नहीं कर सकता। शादी में दिए गए उपहारों को वापस मांगना ‘लोभीपन’ नहीं, बल्कि न्याय का अधिकार है।
महिलाओं के लिए एक कानूनी ढाल
यह फैसला हर उस महिला के लिए प्रेरणा है, जो शादी के बाद अपने अस्तित्व और अधिकारों के लिए लड़ रही है। यह याद दिलाता है शादी एक साझेदारी है, स्वामित्व नहीं और लड़की की संपत्ति पर सबसे पहला और आखिरी हक उसी का होता है।
