Overview: स्वदेश गाला की 7 शाही कलाएँ
नीता अंबानी के 'स्वदेश' गाला में बॉलीवुड की चमक से ज़्यादा, 7 शाही भारतीय वस्त्रों ने ध्यान खींचा। बनारसी सिल्क, पाटन पटोला और ओडिशा इक्कत जैसी सदियों पुरानी कलाएँ इस इवेंट के असली सितारे बनीं। यह समारोह कारीगरों के सम्मान और भारतीय हैंडलूम की बेजोड़ वैश्विक विरासत को दर्शाता है।
The Charm of Indian Textiles: ‘स्वदेश‘ स्टोर भारत की हैंड-वीवन विरासत का एक ख़ूबसूरत खजाना है। हाल ही में हुए स्टार-स्टडेड क्रिसमस गाला ने सभी का ध्यान खींचा। जहाँ बॉलीवुड सेलेब्रिटीज़ लाइमलाइट में थे, वहीं इस इवेंट के असली हीरो भारतीय कारीगरी के शानदार वस्त्र थे। ये वस्त्र सदियों पुरानी कला और परंपरा को दर्शाते हैं।
7 प्रमुख भारतीय टेक्सटाइल्स और उनकी ख़ासियत
बनारसी सिल्क: वैभव और कारीगरी का बेजोड़ संगम
बनारसी सिल्क आज भी लग्ज़री फ़ैशन की दुनिया में एक टाइमलेस फ़ेवरेट है।
ख़ासियत: नीता अंबानी की मोर पंख के रंग की साड़ी में बनारसी सिल्क की सबसे मुश्किल तकनीक कढ़ुआ का काम था। इस मेहनती तकनीक में, धागे को पीछे लटकता नहीं छोड़ा जाता, बल्कि हर मोटिफ को हाथ से अलग बुना जाता है। बनारसी में तंचोई (जो सैटिन जैसा फील देता है), भारी फूलों वाला जंगला , और हल्के कटवर्क जैसे कई डिज़ाइन भी मिलते हैं।
कांचीपुरम सिल्क: साउथ की ‘क्वीन ऑफ सिल्क’
कांचीपुरम सिल्क को ‘सिल्क की रानी’ कहा जाता है। यह अपने वजन और चमकदार शहतूत यार्न के लिए मशहूर है।

ख़ासियत: इसे बनाने में एक मुश्किल इंटर-लॉकिंग तरीका इस्तेमाल होता है, जहाँ साड़ी के बॉर्डर और बॉडी को अलग से बुनकर फिर एक साथ जोड़ा जाता है। पेटनी तकनीक इसका एक और हॉलमार्क है, जिसमें कंट्रास्ट पल्लू को बॉडी से जोड़ा जाता है। ये साड़ियाँ अक्सर मंदिरों के मोटिफ्स से सजी होती हैं।
ओडिशा इक्कत बुनकर की कला और सटीकता
ओडिशा इक्कत को वहाँ बंधकला के नाम से जाना जाता है और यह बुनकरों की बारीक कारीगरी का सबूत है। बुनाई से पहले ही धागों को टाई और डाई करके पैटर्न बनाए जाते हैं। बुनाई के बाद कपड़े पर ये पैटर्न उभरते हैं।
ख़ासियत : इस स्टाइल की पहचान इसके “फेदर-जैसे” किनारे होते हैं। संबलपुरी और खंडुआ इसकी प्रसिद्ध किस्में हैं, जिनमें अक्सर हाथी, शेर, और कमल के मोटिफ्स होते हैं।
पैठणी सिल्क: महाराष्ट्र का राजसी ‘महावस्त्र’
पैठणी सिल्क को सचमुच ‘महावस्त्र’ माना जाता है। यह महाराष्ट्र की एक राजसी परंपरा है।
ख़ासियत: इसकी पहचान है इसके सजे हुए हाथ से बुने बॉर्डर और चमकते हुए सोने के धागे का काम इसमें छोटी लकड़ी की सुइयों का इस्तेमाल करके मयूर और कमल जैसे पैटर्न बुने जाते हैं, जिससे यह गहनों जैसा दिखता है।
पटोला इक्कत: डबल इक्कत की बेमिसाल कला
पटोला गुजरात की एक बहुत ही रेयर डबल-इक्कत सिल्क है, जिसे ‘सिल्क की रानी’ भी कहते हैं।

ख़ासियत : यह बहुत ही जटिल रेजिस्ट-डाइंग प्रक्रिया पर निर्भर करती है, जहाँ ताना और बाना दोनों धागों को बुनाई से पहले ही टाई और डाई किया जाता है। ओडिशा इक्कत के फेदर वाले किनारे के विपरीत, पटोला में पैटर्न में तेज़, ज्यामितीय स्पष्टता होती है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह दोनों तरफ़ से पहना जा सकता है।
जामदानी: हवा पर बुनी गई कला
जामदानी एक पौराणिक कपड़ा है, जिसे इसकी महीन, मलमल जैसी बनावट के कारण अक्सर “हवा पर बनी कला” कहा जाता है।
ख़ासियत: इसमें बाँस की सुइयों का उपयोग करके सप्लीमेंट्री वेफ़्ट थ्रेड्स को सीधे कपड़े में हाथ से बुना जाता है। इसके मोटिफ्स पारदर्शी बेस पर तैरते हुए दिखाई देते हैं। यह बुनाई पश्चिम बंगाल के कारीगरों की निपुणता का एक शानदार सबूत है।
चंदेरी और माहेश्वरी: हवा जैसा हल्का फ़ैब्रिक
ये दोनों सिल्क मध्य प्रदेश का गौरव हैं, जो अपनी पारदर्शी सुंदरता के लिए जाने जाते हैं।
चंदेरी: यह “बुनी हुई हवा” जैसी क्वालिटी के लिए प्रसिद्ध है। इसमें सिल्क और महीन कॉटन का इस्तेमाल होता है। गाला में करिश्मा कपूर ने एक शानदार चंदेरी साड़ी पहनी थी।
माहेश्वरी: यह रिवर्सिबल बॉर्डर (दोनों तरफ़ से पहने जाने वाले किनारे) और ज्यामितीय पैटर्न के लिए ख़ास है। इसे 18वीं शताब्दी में रानी अहिल्या बाई होल्कर ने रिवाइव किया था।
ख़ासियत : चंदेरी अपनी हल्की और पारदर्शी बनावट तथा बारीक ज़री के काम के लिए प्रसिद्ध है, जिसे ‘बुनी हुई हवा’ कहते हैं, जबकि माहेश्वरी सिल्क अपने रिवर्सिबल बॉर्डर, मज़बूत बुनाई, और रानी अहिल्या बाई द्वारा संरक्षित शाही ज्यामितीय पैटर्न के लिए जानी जाती है।
