स्त्री शक्ति

मैं गोवा महिला कमीशन द्वारा आयोजित ‘महिला दिवस के उत्सवों में भाग लेने के लिए गोवा गई हुई थी। वहां मैंने जो देखा, उससे मैं क्रोधित हुए बिना न रह सकी और मैं निश्चित तौर पर कह सकती हूं कि इसे पढऩे के बाद आपको भी गुस्सा जरूर आएगा।
दो मीटिंगों में अंतराल के कारण मेरे पास कुछ समय था, इसलिए मैंने अपने मेजबान को कहा कि वह मुझे गोवा की सैर करा दे, ताकि मैं शहर की जानकारी ले सकूं। उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं ‘वास्को-डि-गामा में स्थित ‘रेड लाइट क्षेत्र में जाना पसंद करूंगी। मैं वहां जाने के लिए तैयार हो गई। यह पहली बार नहीं था, जब मैं किसी ऐसे क्षेत्र में जा रही थी, जहां ‘कॉमॢशयल सेक्सुअल एक्टीविटी चलती है। मैंने वहां नौजवान लड़कियों व महिलाओं को अधिक मेकअप और भड़काऊ कपड़े पहने सड़कों व गलियों के किनारों पर खड़े देखा। वहां बहुत से पुरुष भी उन महिलाओं व लड़कियों के साथ मोल-भाव करते हुए घूम रहे थे। लेकिन वह एक बात, जिस पर मुझे सबसे ज्यादा गुस्सा आया, वह थी बस्ती में बड़ी संख्या में मौजूद शराब के ठेके और पब।
मुझे बताया गया कि पुरुष यहां आकर सबसे पहले शराब पीते हैं और यहां तक कि लड़कियों को भी अपने पास बैठाकर शराब पीने के लिए मजबूर करतेहैं। तब उसके बाद यह ‘कॉमॢशयल सेक्सुअल एक्टीविटी दो नशेड़ी व्यक्तियों के बीच में होती है। मैंने महसूस किया कि ये शराब के ठेके और पब सरकार को थोड़ा राजस्व तो दे रहे थे, लेकिन साथ ही साथ वह समाज की बड़ी हानि भी कर रहे थे।
यहां आकर पुरुष शराब पीकर जानवरों की तरह व्यवहार करते हैं और सेक्स की अपनी भूख मिटाने के लिए महिलाओं का शोषण करते हैं। महिलाएं इसकी शिकायत नहीं कर सकतीं, क्योंकि वे शरीर बेचने के धंधे में हैं। मैंने गोवा राज्य कमीशन की अपनी मित्र से पूछा कि क्या उनकी कमीशन की महिलाएं इस विषय में कुछ कर रही हैं। उसने कहा कि उनकी कोई नहीं सुनता। मित्र की इस बात ने मुझे बेहद उदास कर दिया और इस क्रोध को अपने अंदर लिए मैं अधिवेशन स्थल पर आ गई। मुझे यहां महिलाओं की पब्लिक मीटिंग को एक भाषण देना था।
जब मैं कार्यक्रम स्थल पर पहुंची तो मुझे कमीशन की चेयरमैन ने सूचित किया कि उप मुख्यमंत्री और स्थानीय विधानसभा के सदस्य समेत कोई भी
आमंत्रित व्यक्ति वादा करके भी तब तक नहीं आया था और उनकी ओर से कोई संदेश भी नहीं आया था। इसमें मुझे मूल शिष्टाचार की भी कमी लगी, क्योंकि पब्लिक मीटिंग खुले मैदान में थी इसलिए वहां काफी संख्या में महिलाएं बैठी थीं व बड़ी संख्या में पुरुष भी इधर-उधर खड़े थे। ऐसे में जब मैंने भाषण देना आरंभ किया तो उपरोक्त सभी बातें मेरे मन में थीं।
मैंने महिलाओं से कहा कि जब तक वे वायदा तोडऩे वाले राजनीतिज्ञों को वोट देती रहेंगी, उनकी कोई सुनवाई नहीं होगी। भारत में महिलाओं को जाति और पार्टी से ऊपर उठकर, संगठित होकर सामाजिक बुराईयों के विरुद्ध, आवाज उठानी चाहिए क्योंकि महिलाएं ही हैं जो शराबनोशी, पब, जुआ, कैसीनो और वेश्यावृत्ति के बढऩे से पीडि़त होंगी। महिलाओं को राजनीतिज्ञों को स्पष्ट रूप से बता देना चाहिए कि यदि वे सामाजिक बुराइयां हटाने में उनका साथ नहीं देंगे तो वे उन्हें अस्वीकार कर देंगी। मुझे यह भी मालूम पड़ा कि गोवा में महिलाओं के विरोध के बावजूद गोवा सरकार ने राज्य में कैसीनो खोलने की आज्ञा दे दी है। इस तरह से गोवा भारत का ऐसा पहला राज्य है जहां कैसीनो खुला। जब मैंने महिलाओं से पूछा कि सरकार ने उनके विरोध का क्या उत्तर दिया तो उनका कहना था कि वर्तमान में सरकार चला रहे राजनीतिज्ञ पिछली सरकार की नीतियों के लिए उसे हीे उत्तरदायी ठहरा रहे थे। यहां यह भी बताने योग्य है कि सत्ता में आने से पहले यही राजनीतिज्ञ कैसीनो का पुरजोर विरोध कर रहे थे।
यहां मैं अपने देश की सभी महिलाओं से कुछ कहना चाहती हूं। हम महिला दिवस क्यों मनाते हैं। क्या सिर्फ खानापूरी के लिए? हमें केवल महिला दिवस
के कार्यक्रम करके ही नहीं बैठ जाना चाहिए, अपितु आवश्यकता इस बात को समझने की है कि महिलाओं के अधिकार उस समाज का कर्तव्य हैं
जिसमें सभी रहते हैं।
एक स्वस्थ व शिक्षित महिला राष्ट्रीय धरोहर है। आज की हमारी महिला समाज की संपदा को सहेजने में उसी प्रकार सहयोग दे रही है जैसे एक
अशिक्षित, गरीब और कुपोषित महिला कमजोर, कुपोषित और उपेक्षित बच्चों को जन्म देती है। महिलाओं से संबंधित विषय और समस्याएं केवल महिलाओं पर ही नहीं, बल्कि संपूर्ण समाज व राष्ट्र पर प्रभाव डालते हैं। इस बात को हम जितनी जल्दी समझ लें और अपने कर्म में उतार लें, उतनी ही शीघ्रता से हम एक शक्तिशाली राष्ट्र के तौर पर आगे बढ़ सकते हैं। इसके लिए हमें राजनीतिज्ञों की प्रतीक्षा करने की आवश्यकता बिलकुल नहीं है। हम इसका आरंभ अपने घर, पड़ोस, बस्तियों गांवों व स्कूलों से कर सकते हैं। �
