आपके एक वर्किंग डे की दिनचर्या क्या होती है, आप आज के दिन के बारे में भी बता सकती हैं?
वैसे तो हर दिन का काम और शेड्यूल अलग-अलग होता है, अब ऐसा तो नहीं है कि हम लोग रोज ऑफिस जाते हैं और हमारा डेली रूटीन एक जैसा हो। एक ऐक्टर की जिंदगी हर दिन अलग होती है, एक दिन की तुलना दूसरे दिन से नहीं की जा सकती है। आज मैं सुबह उठी और अपने डेली रूटीन के हिसाब से जिम गई, फिर तैयार होकर यहां आई। यहां पहले फोटोशूट किया और अब आपके साथ बैठकर इंटरव्यू कर रही हूं।
आपको एक स्टार की लाइफ पसंद है या आम लोगों की तरह रहना?
मैं अपनी जिंदगी को एक सिलेब्रिटी की तरह नहीं देखती हूं। मेरे हिसाब से मेरी जिंदगी भी एक आम जिंदगी हैं। खास कर जब मैं बंगलुरु में अपने परिवार के साथ होती हूं, तब तो एक नार्मल जिंदगी जीती हूं। मैं यह सोच कर कभी काम नहीं करती कि मैं एक सिलेब्रिटी हूं। सिलेब्रिटी होना, मेरे काम का एक हिस्सा है। मैं रोज उठकर खुद को यह याद नहीं दिलाती कि मैं कोई सुपरस्टार हूं, मेरे हिसाब से जैसे सबकी लाइफ हैं वैसे ही मेरी भी है।
एक सिलेब्रिटी होने के कारण कोई काम जो आप नहीं कर पाती हैं?
नहीं, क्योंकि मुझे जो करना है मैं करती हूं, अब यह अलग बात हैं कि जब मैं बाहर जाती हूं तो परेशान नहीं होती, शायद मेरी मौजूदगी से आसपास के लोग जरूर परेशान हो जाते हैं क्योंकि भीड़ होती है, लोग सेल्फी के लिए आते हैं, अगर किसी रेस्टॉरंट में जाती हूं तो जो साथ में होते हैं उनको परेशानी होती हैं, लेकिन अगर मुझे रास्ते में पानी-पूरी खाना है या किसी रेस्टॉरंट में जाना है, थिअटर में जाकर मूवी देखनी है, तो मैंने कभी अपने आप को रोका नहीं हैं, मैं वह सब करती हूं, जो एक आम लड़की करती है।
आपकी फिल्म का टाइटल ‘छपाक’ बहुत प्रभावी है, तुरंत कनेक्ट करता है, टाइटल कैसे फाइनल किया गया?
मैं इसका पूरा क्रेडिट अपनी फिल्म की डायरेक्टर मेघना गुलज़ार को ही दूंगी, शायद पहले फिल्म का टाइटल गंधक था, फिर हमने यह नाम बदल दिया, क्योंकि पानी का जो रूप है वह किसी चीज पर डालो, उस हिसाब से अपना आकार बदल लेता है और उसी सोच के साथ मेघना ने सोचा कि छपाक, पानी या किसी भी लिक्विड को फेंकने का साउंड है, वही फिल्म का नाम होना चाहिए। फिल्म के एक गाने में भी फिल्म का टाइटल इस्तेमाल करना था, इसलिए एक ऐसा टाइटल भी चाहिए था, जो गाने में भी अच्छी तरह फिट हो जाए, इसलिए फिल्म का नाम छपाक रखा गया है।
एक निर्माता के तौर पर यह आपकी पहली फिल्म है, अभिनय के अलावा आपके क्रिएटिव इनपुट्स क्या थे?
फिल्म के सेट पर मैंने एक प्रड्यूसर के तौर पर ज्यादा हस्तक्षेप नहीं किया। जब हम लोग शूटिंग कर रहे थे तो मैं एक ऐक्टर की तरह सोच रही थी और अपने आप कंडक्ट कर रही थी, क्योंकि वहां मेरे किसी भी तरह के हस्तक्षेप से कॉन्फ्लिक्ट हो सकता था, लेकिन शूटिंग के बाद जरूर मैंने एक प्रड्यूसर के तौर पर सोचना शुरू किया, जिससे मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला। आज तक मैंने जो भी सीखा है, चाहे वह मार्केटिंग हो, इनपुट हो, सलाह हो वह सब लोगों के सामने रख देती हूं, फिर जो भी फाइनल डिसीजन होता है, उससे सहमत होती हूं। मैं ऐसा नहीं करती कि मैंने जो कह दिया वही फाइनल है, यह जरूरी नहीं है कि मेरी टीम को मेरी बात माननी पड़े, लेकिन जो बात फिल्म के लिए ज्यादा अच्छी होती है, उस बात के साथ हम आगे बढ़ते हैं।
