आज मैं पहली बार किसी पत्रिका के माध्यम से अपनी प्रशंसकों से रूबरू हो रही हूं। मुझे एक ऐसा मंच मिला है जिसके माध्यम से मैं अपनी बात आप तक पहुंचा सकती हूं और ऐसा करते हुए मुझे बहुत खुशी महसूस हो रही है। गृहलक्ष्मी पत्रिका का यह बेबी केयर स्पेशल अंक है। बेबी केयर यानी बच्चे की देखभाल। अपने बच्चे की देखभाल करना एक मां के लिए उसके जीवन का बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। वह अपने बच्चे की देखभाल में जी-जान लगा देती है। हां, उसे पहले बच्चे के समय इसका खास अनुभव नहीं होता, लेकिन वह अपनी अनुभवी मां या सासूमां से सब जल्दी ही सीख लेती है और बहुत अच्छी तरह अपने बच्चे की देखभाल करती है, उसे अच्छे संस्कार देती है और बड़ा करती है।

बच्चे की देखभाल एक मां कैसे करती है, यह मुझसे और आपसे ज्यादा कौन समझ सकता है। जो महिला मां बनती है, वही जान सकती है कि उसका बच्चा, उसके कलेजे का टुकड़ा जब बीमार पड़ता है तो उसका दिल कैसे टुकड़े-टुकड़े कैसे छलनी-छलनी हो जाता है। उसे इंजेक्शन- टीका या चोट लगती है तो दर्द मां को होता है। बच्चे की एक आह निकलने से पहले ही मां को उसके दर्द का अहसास हो जाता है।
मां होना क्या होता है, यह कोई पुरुष कैसे समझ सकता है। जो बच्चे को दूध पिलाने, सूसू कराने और चुप कराने के लिए रात-रात भर जागा न हो, वह कैसे बच्चे और मां के संबंध को जान सकता है। अपने बच्चे की पहली चीख, टूटेफूटे ही सही, पहले शब्द, पहली बार खड़े होकर पहला कदम जमीन पर रखना… क्या-क्या नहीं होता जो मां को खुशी देता है, मां की आंखों में आंसू छलका देता है। बच्चे को सुलाने के लिए लोरी सुनाना और उसकी एक-एक आदत, पसंद-नापसंद, खुशी-नाखुशी का खयाल रखना एक मां से बेहतर और कौन कर सकता है। फिर बच्चे को, खासतौर पर बच्ची को धीरे-धीरे अपने से दूर करना- पहले स्कूल भेजना, फिर हॉस्टल-कॉलेज भेजना और अंत में शादी कर अपने से पूरी तरह दूर कर देना एक मां के ही बूते की बात होती है।
आजकल अनेक महिलाएं ऐसी हैं जो किसी न किसी कारणवश मां नहीं बन पाती और जीवनभर घुटन का अनुभव करती रहती हैं। आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में ऐसे जोड़ों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। ऐसे लोगों से मैं कहना चाहती हूं कि बच्चे और मां का संबंध समझने के लिए बच्चे को पैदा करना ही जरूरी नहीं है। बच्चे को गोद लेने के बाद मां बनने का अहसास भी बच्चे को पैदा करने के बाद मां बनने के अहसास से कम नहीं होता। मेरी नजर में तो गोद लेने का अहसास और भी अनोखा और महान होता है। किसी बेसहारा को सहारा देने से कहीं अधिक खुशी, उत्साह और उल्लास उस नन्हे से जीवन के अपने जीवन में आने से होती है। नन्ही कोंपल को धीरे-धीरे बढ़ते-पल्लवित होते देखना अपने आप में बेहद खूबसूरत अनुभव होता है। मैं यह इसलिए जानती हूं क्योंकि मैंने अपनी शादी से पहले ही दो बच्चियों को गोद लिया था। शारीरिक रूप से मां बनने से पहले ही मैं भावनात्मक रूप से मां बन चुकी थी और एक मां की ममता क्या होती है, इसे महसूस कर चुकी थी। मेरी उन दोनों बच्चियों की अब शादी हो चुकी है और वे दोनों अपने-अपने परिवार में सुखी हैं। एक मां के लिए इससे ज्यादा खुशी की बात और क्या होगी।
अब तो आप यह समझ ही चुके होंगे कि मैं इस मंच के जरिये आपको क्या संदेश देना चाहती हूं। जी हां, मैं चाहती हूं कि जो भी लोग समृद्ध हैं, एक और बच्चे को पाल सकते हैं, उनके अगर अपने बच्चे भी हों, तो भी वे कम से कम एक बच्चे को गोद जरूर लें। अगर वे गोद लेते वक्त लड़का और लड़की में फर्क न करें तो ज्यादा अच्छी बात होगी। गोद लेकर वे सिर्फ उन अनाथ बच्चों के लिए ही नहीं, अपने देश के लिए ही नहीं, बल्कि अपने लिए भी बहुत कुछ करते हैं। मेरा मतलब है अपने खुशी के लिए। खुशी कभी भी पैसा खर्च करने से नहीं मिलती। आजकल लोगों के जीवन में खुशी की बहुत कमी हो गई है। इसका सबसे अच्छा फार्मूला यही है कि बच्चे को गोद ले लिया जाए। एक मासूम जीवन संवारने की यह खुशी आपके पूरे जीवन को बदल कर रख देगी।
