यहां न कोई मूर्ति है और न ही कोई पूजा होती है: Lotus Temple
Delhi's Lotus Temple

मन की शांति के लिए दिल्ली के लोटस टेम्पल में आते हैं लोग

1986 में इस मंदिर को बहाई धर्म के संस्थापक बहा उल्‍लाह ने बनवाया था। लोटस टेम्पल को दुनिया के सात बहाई मंदिरों में से अंतिम मंदिर माना जाता है।

Lotus Temple: दिल्ली का लोटस टेम्पल पर्यटकों के बीच हमेशा से आकर्षक का केंद्र रहा है। वहां के रहवासी वीकेंड में वहां घूमने चले जाते हैं, तो दिल्ली की सैर करने आए पर्यटक इस टेम्पल में जाने की खूब इच्छा रखते हैं। कई बार यह मन में सवाल भी होता है कि कहने को तो ये मंदिर है, लेकिन यहां न तो कोई मूर्ति है और न ही कोई पूजा-पाठ होती है।

आपको बता दें कि 1986 में इस मंदिर को बहाई धर्म के संस्थापक बहा उल्‍लाह ने बनवाया था। इसलिए इस मंदिर को बहाई मंदिर भी कहते हैं। बहाई धर्मग्रंथों में साफ तौर पर कहा गया है कि बहाई लोटस टेम्पल में मूर्तियों की कोई तस्वीर या कोई मूर्ति नहीं हो सकती है। लोग यहां मन की शांति के लिए आना पसंद करते हैं और यहां की खूबसूरती का घंटों बैठकर आनंद लेते हैं।

लोटस टेम्पल को दुनिया के सात बहाई मंदिरों में से अंतिम मंदिर माना जाता है।

सोनल शर्मा एक अनुभवी कंटेंट राइटर और पत्रकार हैं, जिन्हें डिजिटल मीडिया, प्रिंट और पीआर में 20 वर्षों का अनुभव है। उन्होंने दैनिक भास्कर, पत्रिका, नईदुनिया-जागरण, टाइम्स ऑफ इंडिया और द हितवाद जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में काम किया...