Hormonal fluctuations can increase skin blemishes.
Hormonal fluctuations can increase skin blemishes.

Pigmentation Reason: पिगमेंटेशन या मेलाज्मा में स्क्रबिंग और हार्ड ट्रीटमेंट्स से बचें, क्योंकि ये त्वचा को अधिक संवेदनशील और डार्क बना सकते हैं।

पिगमेंटेशन रोकने का सबसे प्रभावी तरीका है रोजाना स्क्कस्न ३०+ सनस्क्रीन लगाना और तेज
धूप में फेस कवर करना।

पिगमेंटेशन का मतलब है त्वचा के कुछ हिस्सों में डार्कनेस का होना। यह सिर्फ टैनिंग नहीं है। टैनिंग तब होती है जब आप सूरज की धूप में जाते हैं, जबकि पिगमेंटेशन के कई अन्य कारण भी हो सकते हैं, जैसे- मेलाज्मा, लाइकेन प्लेनस, मैक्युलर अमाइलॉइडोसिस और एकेंथोसिस निग्रिकन्स। मेलाज्मा, जिसे झाइयां भी कहते हैं, सबसे कॉमन कारण है। यह चिन, फोरहेड, नाक के ऊपर, आइब्रोस और ऊपर के होंठ के आसपास दिखाई देती है। महिलाएं इसमें पुरुषों की तुलना में ज्यादा प्रभावित होती हैं, लेकिन पुरुषों में भी यह हो सकती है।

Types of pigmentation
Types of pigmentation

पिगमेंटेशन की गंभीरता इसके लेवल पर निर्भर करती है। अगर यह एपिडर्मिस में होती है, तो ब्राउन रंग की दिखाई देती है और हटाना आसान होता है। अगर यह डर्मिस में होती है, तो ब्लैक या ब्लू रंग की दिखाई देती है और इसे हटाने के लिए लेजर की जरूरत पड़ती है। हाइपरपिगमेंटेशन में डार्क स्पॉट्स होते हैं, जबकि हाइपोपिगमेंटेशन में वाइट स्पॉट्स दिखाई देते हैं। भारतीय स्किन
मेलानोसाइट्स से भरपूर होने के कारण पिगमेंटेशन के लिए ज्यादा प्रोन है।

पिगमेंटेशन के कई कारण हो सकते हैं। पहला कारण है जेनेटिक प्रीडिस्पोजिशन, यानी हमारे जीन्स। लगभग सभी भारतीयों की स्किन पिगमेंटेशन के लिए प्रोन होती है।

दूसरा कारण है हॉर्मोनल बदलाव, जो प्रेगनेंसी या मीनोपॉज के दौरान ज्यादा दिखाई देता है। तीसरा कारण है रेडिएशन एक्सपोजर, जैसेसूरज की यूवी रेज, मोबाइल और लैपटॉप की ब्लू लाइट। जो लोग पहाड़ी या ठंडी जगहों पर रहते हैं, उन्हें धूप सुखद लगती है, लेकिन वही धूप त्वचा पर पिगमेंटेशन बढ़ा सकती है। आजकल एक बड़ा कारण है स्किन प्रोडक्ट्स का ओवर-यूज। सोशल
मीडिया की वजह से लोग बिना स्किन टाइप जाने दूसरों के रिव्यू देखकर प्रोडक्ट्स इस्तेमाल करते हैं, जिससे स्किन सेंसिटिव हो जाती है और पिगमेंटेशन जल्दी हो सकता है।

मेलाज्मा के तीन मुख्य कारण हैं- जेनेटिक प्रीडिस्पोजिशन, हॉर्मोनल बदलाव और रेडिएशन एक्सपोजर। भारतीय स्किन पहले से ही पिगमेंटेशन के लिए प्रोन होती है। हॉर्मोनल बदलाव महिलाओं में ज्यादा आम हैं, खासकर प्रेगनेंसी या हार्मोनल इम्बैलेंस के दौरान। इस दौरान चेहरे पर पिंपल्स, पिगमेंटेशन और हेयर फॉल जैसे लक्षण दिखाई दे सकते हैं। ज्यादातर मामलों में वजन बढ़ना भी इसका एक संकेत हो सकता है।

जब कोई पिगमेंटेशन या मेलाज्मा की शिकायत लेकर डॉक्टर के पास जाता है, तो देख कर काफी हद तक पहचान की जा सकती है। डॉक्टर मरीज की डिटेल हिस्ट्री लेते हैं कब शुरू हुआ, फैमिली में किसी को है या नहीं, महिला मरीज में पीरियड्स के समय पैचेस का रंग बदलता है या नहीं। इसके अलावा देखा जाता है कि मरीज ने अब तक कौन-कौन से स्किन प्रोडक्ट्स इस्तेमाल किए हैं। कभी-कभी स्किन बायोह्रप्सी, इंसुलिन लेवल्स या डर्मोस्कोपी जैसे टेस्ट्स की जरूरत पड़ सकती है।

पिगमेंटेशन और मेलाज्मा से बचने के लिए सबसे जरूरी है सन प्रोटेक्शन। रोज सुबह स्क्कस्न ३०+ ब्रॉड स्पेक्ट्रम सनस्क्रीन लगाएं और दोपहर में री-अप्लाई करें। तेज धूप में बाहर जाने पर फेस कवर, हैट या अंब्रेला का इस्तेमाल करें। पतले वॉइल या कपड़े से फेस कवर करना भी मदद करता है।

पिगमेंटेशन कम करने में हेल्दी लाइफस्टाइल और संतुलित आहार का बड़ा योगदान है। हेल्दी और संतुलित भोजन लें, ब्रेकफास्ट कभी स्किप न करें, प्रोसेस्ड फूड और अधिक टी/कॉफी कम करें। पर्याप्त पानी पिएं (कम से कम 2 लीटर), नियमित एक्सरसाइज करें ताकि ब्लड सर्कुलेशन और स्किन ग्लो बढ़े। नींद समय पर लें और ब्लू लाइट से बचें। विटामिन सी और ई का स्किन पर सही इस्तेमाल, हयालुरोनिक एसिड मॉइस्चराइजर, ओमेगा-3, कोलेजन जैसी सप्लीमेंट्स डॉक्टर की सलाह से ही लें।

प्रेगनेंसी के दौरान मेलाज्मा या ‘प्रेगनेंसी मास्क’ बहुत कॉमन है। इसका कारण हॉर्मोनल चेंजेस होते हैं। सभी महिलाओं में यह नहीं होता, लेकिन प्रेगनेंसी और मीनोपॉज में झाइयां उभर सकती हैं। यदि आप प्रोजेस्टेरॉन जैसी हार्मोनल टैबलेट ले रही हैं, तो सनस्क्रीन का इस्तेमाल जरूर करें।