कोलकाता के जाने-माने वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. जयरंजन राम के पास एक अलग तरह का मामला आया। तीस वर्षीय सुगंधा एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में जिम्मेदार एग्जिक्यूटिव पोस्ट पर काम करती हैं। वे इन दिनों बेहद तनाव में चल रही हैं। उनकी समस्या मानसिक होने के साथ शारीरिक भी है।
डॉ. राम ने उनके मन की परतों में दबी परेशानी को उधेडऩा शुरू किया तो पता चला कि हर दिन ऑफिस में एकाध पुरुष सुगंधा के सौंदर्य और शरीर की बनावट को लेकर कोई न कोई टिप्पणी कर देता है। कल किसी ने मजाक-मजाक में ही उनके जरा से आगे निकले पेट पर कमेंट पर दिया तो आज ही सुबह किसी ने उनके होंठों पर उग आए हल्के रोमकूपों को मूंछ बता दिया। इन सब बातों से सुगंधा बेहद मानसिक दबाव में आ चुकी थीं। वह खुद को ‘बदसूरत, ‘आउट ऑफ डेट और ‘अधेड़ समझने लगी थीं।
डॉ. राम ने उन्हें गौर से देखा, वह दिखने में बिल्कुल एवरेज बॉडी की स्वामिनी थी, जिसे मोटा या पतला नहीं कहा जा सकता था। लुक में भी सुगंधा कहीं से ‘बदसूरत नहीं थीं, लेकिन लोगों ने नेगेटिव कमेंट कर-करके उनकी मानसिक स्थिति ऐसी कर दी थी।
वैचारिक गुलाम बनाने की कोशिश
1978 में चर्चित मनोवैज्ञानिक सूसी ओरबैक ने अपनी किताब ‘फैट इज अ फेमिनिस्ट इश्यू में लिखा था, ‘ऑबसेसिव डायटिंग, बॉडी शेम और सेल्फ हेट आदि महिलाओं को गुलाम बनाने के तरीके हैं। जिन महिलाओं के शरीर में फैट होता है, वे इस सिस्टम में खुद को अपराधी महसूस करने लग जाती हैं। हाल ही में इलियाना डीक्रूज ने एक अंग्रेजी अखबार को दिए गए इंटरव्यू में कहा था, ‘अगर कोई मुझे मेरे लुक्स पर कॉम्प्लीमेंट देता है तो मैं विश्वास नहीं करती, क्योंकि मेरे दिमाग में सनक है कि मेरी आम्र्स या टोर्सो में एक्स्ट्रा फैट है। मेरे थेरेपिस्ट ने मुझे बताया है कि यह बॉडी डिसमॉॢफक डिसऑर्डर है। बॉलीवुड की कई अभिनेत्रियां इस परेशानी से गुजर चुकी हैं। सोनाक्षी सिन्हा, नंदिता दास और विद्या बालन के मामले तो बिल्कुल ताजा हैं।
कसौटी पर खरा उतरने के चक्कर में होती हैं बीमार
कई युवतियां अपने आपको स्लिम ट्रिम रखने के चक्कर में खाना खाने से भी डरने लगती हैं। भोजन के प्रति यह डर या विरक्ति कई प्रकार की मानसिक और शारीरिक बीमारियों का सबब बनने लगता है, जैसे एनोरेक्सिया नर्वोसा, बुलीमिया नर्वोसा और बॉडी डिसमॉॢफक डिसऑर्डर। दूसरों की नजर में ‘फेवरिट बनने के लिए ऐसी महिलाएं अपना ‘फेवरिट भोजन छोड़ देती हैं। साइज जीरो न सिर्फ ग्लैमर वल्र्ड की महिलाओं बल्कि आम लड़कियों में भी होड़ सी मच गई है। फैशन और मॉडलिंग जगत की पत्रिकाएं, फिल्में और टीवी सीरियल्स ने सौंदर्य के फॉरम्यूले गढ़ रखे हैं।
खूबसूरती को न बनाएं मजबूरी
कोलकाता के फोर्टिस अस्पताल के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. संजय गर्ग कहते हैं, ‘आपको खुद अपनी प्राथमिकताएं तय करनी चाहिए। सुंदर होने से ज्यादा जरूरी स्वस्थ रहना है। दूसरे लोग आपको मोटा, पतला, सुंदर या असुंदर क्या कहते हैं, इससे आपको कोई $फर्क नहीं पडऩा चाहिए। आपके सुखी और सक्रिय जीवन जीने के लिए हेल्दी बॉडी जरूरी है। यही एकमात्र मंत्र अपने दिमाग में रखें। अपीयरेंस को सेकेंडरी समझें और हेल्थ को प्राइमरी। फेसबुक, इंस्टाग्राम या व्हाट्सएप डीपी में सुंदर लगना या वास्तविक जीवन में लोगों से ‘यू आर ब्यूटीफुल सुनने के लिए अपनी जिंदगी को और अपनी हेल्थ को तबाह करना सिर्फ और सिर्फ नासमझी है। अपनी ऊर्जा को रचनात्मक कार्यों में लगाएं। जीवन में कुछ हासिल करें।
