Overview: कब बढ़ता है लोन का बोझ?
कर्ज केवल आर्थिक कमजोरी का परिणाम नहीं होता, बल्कि कई बार ग्रहों का दोष, भावों की स्थिति और अशुभ योग भी व्यक्ति को कर्ज लेने के लिए मजबूर कर देते हैं। विशेष रूप से षष्ठम, अष्टम और द्वादश भाव का अशुभ होना, मंगल और बृहस्पति का कमजोर होना, तथा पाप ग्रहों का प्रभाव कर्ज को बढ़ावा देता है। सही समय पर उपाय और ग्रह शांति से व्यक्ति आर्थिक संकट से बाहर निकल सकता है।
Loan Astrology: आर्थिक संकट हर व्यक्ति के जीवन की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। जब इंसान कर्ज के जाल में फंस जाता है, तो उसका मानसिक संतुलन, पारिवारिक शांति और भविष्य की योजनाएं सभी प्रभावित हो जाते हैं। कई बार परिस्थितियां ऐसी बनती हैं कि चाहकर भी व्यक्ति कर्ज से बाहर नहीं निकल पाता। सामान्यत: इसका कारण आर्थिक असंतुलन माना जाता है, लेकिन ज्योतिष के अनुसार कर्ज लेने की मजबूरी कई बार कुंडली में मौजूद ग्रहों की अशुभ स्थिति के कारण भी पैदा होती है। इसलिए यह समझना आवश्यक है कि किस प्रकार ग्रह और भाव कर्ज की समस्या को बढ़ाते हैं और कब व्यक्ति पर अचानक आर्थिक बोझ बढ़ जाता है।
कब बढ़ता है लोन का बोझ?

कर्ज और ग्रह: ज्योतिष क्या कहता है?
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, कुछ ग्रहों की कमजोर या पीड़ित स्थिति व्यक्ति को बार-बार आर्थिक संकट में डाल सकती है। कुंडली के कई भाव सीधे तौर पर वित्तीय स्थिरता और कर्ज से जुड़े होते हैं। यदि ये भाव प्रभावित हों, तो व्यक्ति चाहे कितना भी प्रयास करे, कर्ज का बोझ बार-बार उसके जीवन में लौट आता है।
षष्ठम, अष्टम और द्वादश भाव: कर्ज के प्रमुख संकेतक
कुंडली के तीन भाव- षष्ठम, अष्टम और द्वादश को कर्ज और आर्थिक परेशानी का भाव माना गया है।
षष्ठम भाव: प्रतियोगिता, विरोध, रोग और ऋण का कारक
अष्टम भाव: अचानक हानि, संकट और मानसिक तनाव
द्वादश भाव: व्यय, नुकसान और खर्चों का संकेतक
यदि इन भावों में ग्रह अशुभ स्थिति में हों या पाप ग्रहों का प्रभाव हो, तो व्यक्ति के जीवन में कर्ज और आर्थिक दबाव बढ़ने लगता है।
मंगल हो कमजोर तो बढ़ने लगता है कर्ज
ज्योतिष में मंगल को कर्ज का नैसर्गिक कारक कहा जाता है। यदि मंगल नीच राशि (कर्क) में हो, अष्टम, द्वादश या षष्ठम भाव में बैठा हो, राहु-केतु या शनि जैसे पाप ग्रहों के साथ योग बना रहा हो, तो जातक को कर्ज के बोझ से मुक्ति पाना मुश्किल हो जाता है। मंगल की अशुभ स्थिति व्यक्ति की आर्थिक सोच को भी प्रभावित करती है। ऐसे लोग कभी-कभी भावनाओं में निर्णय लेते हैं, जिसके कारण कर्ज और परेशानियां बढ़ जाती हैं।
बृहस्पति कमजोर हो तो घट जाते हैं धन के अवसर
बृहस्पति को धन, समृद्धि, अवसर और सद्बुद्धि का कारक माना गया है। यदि कुंडली में गुरू कमजोर, नीच या पीड़ित हो, तो आय के स्रोत बाधित होते हैं, बचत नहीं बन पाती, आर्थिक निर्णय गलत हो जाते हैं और ऐसी स्थिति में व्यक्ति को खर्च पुरा करने के लिए कर्ज लेना पड़ सकता है।
दशा और गोचर भी बढ़ाते हैं कर्ज का दबाव
हर बार कुंडली दोषी हो, यह जरूरी नहीं। कई बार दशाओं और गोचर के कारण अस्थायी रूप से आर्थिक संकट पैदा होता है। राहु-दशा में अचानक बढ़ते खर्च, शनि की ढैय्या या साढ़ेसाती में आर्थिक बोझ, मंगल या केतु की महादशा में आवेशपूर्ण निर्णय। ऐसे समय में व्यक्ति को मजबूरी में कर्ज लेना पड़ता है।
कर्ज मुक्ति के उपाय
ज्योतिष के अनुसार, मंगलवार या बुधवार को कर्ज लेना या देना अशुभ माना जाता है।
मंगलवार का लिया कर्ज जल्दी उतरता नहीं है।
यदि मंगल अशुभ हो तो उसकी शांति के लिए दान, पूजा और मंत्र जाप करना चाहिए।
इन उपायों से कर्ज का दबाव घटने में मदद मिलती है।
