Apara Ekadashi 2025
apara Ekadashi 2025

Apara Ekadashi 2025: ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को अपरा एकादशी कहते हैं। इसे अचला एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी का व्रत-पूजन करने वाले जातकों का जीवन सुख-संपन्नता से भर जाता है। वैसे तो सनातन धर्म में हर सभी एकादशी को बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। लेकिन ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अपरा एकादशी का महत्व तो महाभारत काल से जुड़ा है।

मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत पांडवों ने भी रखा था जिसके बाद महाभारत युद्ध में उन्हें जीत हासिल हुई। स्वयं श्रीकृष्ण ने अपने मुख से पांडवों को अपरा एकादशी का महत्व बताया है। इस दिन किए गए पूजा, व्रत और दान आदि से अपार सुखों की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं मई महीने में कब रखा जाएगा अपरा एकादशी का व्रत। साथ ही जानें अपरा एकादशी से जुड़ी तिथि, पूजा का शुभ मुहूर्त, विधि और महत्व आदि के बारे में भी।

अपरा एकादशी मई 2025 में कब है

Jyeshtha month Apara Ekadashi 2025
Jyeshtha month Apara Ekadashi 2025

ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अपरा एकादशी का व्रत मई में शुक्रवार 22 मई 2025 को रखा जाएगा। एकादशी तिथि का आरंभ 23 मई को देर रात 01 बजकर 12 मिनट पर होगा और इसका समापन 23 मई को रात 10 बजकर 29 मिनट पर होगा। ऐसे में 23 मई को रात से लेकर पूरे दिन एकादशी तिथि रहेगी, इसलिए 23 मई को ही अपरा एकादशी का व्रत किया जाएगा और 24 मई को व्रत का पारण होगा।

इस विधि से करें अपरा एकादशी की पूजा

Apara Ekadashi 2025 Puja Vidhi
Apara Ekadashi 2025 Puja Vidhi

अपरा एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और सबसे पहले सूर्य देव को जल चढ़ाएं। अब घर के मंदिर की साफ-सफाई करें। पूजा के लिए चौकी तैयार करें, जिस पर लाल या पीले रंग का कपड़ा बिछाएं और भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें। साथ ही मां लक्ष्मी की भी पूजा करें। भगवान को पीले चंदन का तिलक करें। फल, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य आदि अर्पित करें और साथ ही तुलसी के पत्ते जरूर चढ़ाएं। इसके बाद अपरा एकादशी की व्रत कथा पढ़ें और आखिर में आरती करें। पूरे दिन व्रत का पालन करें और अगले दिन पूजा-पाठ करने और ब्रह्माणों को दान-दक्षिणा देने के बाद व्रत का पारण करें।

अपरा एकादशी का धार्मिक महत्व

Apara Ekadashi 2025 significance
Apara Ekadashi 2025 significance

अपरा एकादशी का विशेष धार्मिक महत्व शास्त्रों में बताया गया है। इस एकादशी का व्रत करने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि का आगमन होता है, जाने-अनजाने में किए पाप नष्ट होते हैं और साथ ही पितरों के आत्मा को भी शांति मिलती है। कहा जाता है कि इस एकादशी व्रत से स्वर्णदान करने के जैसा फल मिलता है। गंगा नदी के किनारे पूर्वजों का पिंडदान करने पर जो पुण्य मिलता है, ठीक वैसा ही पुण्य अपरा एकादशी के व्रत से भी मिलता है।

धार्मिक मान्यता यह भी है कि, श्रीकृष्ण के कहने पर पांडवों ने भी इस व्रत को किया था, जिससे वे महाभारत युद्ध में विजयी हुए। द्वापर युग में सबसे पहले श्रीकृष्ण ने इस व्रत के महात्मय के बारे में अर्जुन को बताया था और फिर पांडवों समेत उनके पुरोहित धौम्य ऋषि ने भी ज्येष्ठ कृष्ण की एकादशी का व्रत रखा था।

मेरा नाम पलक सिंह है। मैं एक महिला पत्रकार हूं। मैं पिछले पांच सालों से पत्रकारिता क्षेत्र में सक्रिय हूं। मैं लाइव इंडिया और सिर्फ न्यूज जैसे संस्थानों में लेखन का काम कर चुकी हूं और वर्तमान में गृहलक्ष्मी से जुड़ी हुई हूं। मुझे...