Hindi Kahani: रात काटना अपने आप में सबसे भारी और बोझल काम है,उस पर भी दुःख की रात वह तो सबसे भारी होती है।
उसे तो जागते हुए ही काटना पड़ता है और उस पर विडम्बना यह कि आप समय काटने का कोई मनोरंजक साधन भी प्रयोग नहीं कर सकते।
यदि सुखी परिवार में पहली बार कोई बड़ा और साझा दुःख पड़ जाये तब स्थितियाँ यूँ भी विषम हो जातीं हैं।
समझ नहीं आता है कि कौन किसको तसल्ली दे,चौबीस घण्टे पहले ही डॉक्टरों ने वेंटिलेटर पर पड़े गुप्ता जी के मामले में अपने हाथ खड़े कर दिये थे।
उनका बेटा विवेक थकी चाल और फटी फटी आँखों अस्पताल की कार्यवाही निबटा रहा था।
और उसकी ऑलराउंडर पत्नी मंजरी स्कूटी लिये घर और अस्पताल के चार चक्कर लगाकर हलकान थी।
बड़ी भाभी नीलम ने अपनी कार्यकुशलता से घर के साथ सभी बच्चों और जिम्मेदारियों को सँभाला हुआ था तो भाई व्यापार देख रहे थे।
इस तरह विवेक अपना पूरा ध्यान बस पिता पर लगाये था।
बड़ा मुश्किल होता है अपने जन्मदाता को अपनी आँखों के आगे तिल-तिल मरते देखना।
जनवरी की हाड़ कँपाती सर्दी में दवा दुआ सब हुआ पर कुछ भी गुप्ताजी के जीवन में गर्माहट न भर सका और शाम ढलते ढलते विवेक के सुपुर्द उसके पिता का बेजान शरीर कर दिया गया।
कागज़ी कार्यवाही पूरी करते करते उसकी हिम्मत टूट गयी,अनाथ होने के एहसास से विवेक के भीतर का पुरुष किसी बच्चे में ढल कर ऐसे रोया।
कि कब एम्बुलेंस घर आई कब और कैसे शव घर के आँगन में रखा गया उसे समझ ही न आया।
कड़ाके की ठंड में कोहरे की चादर पसरी हुई थी और टेंट से भी ओस ऐसे टपक रही थी मानों आसमान भी रो रहा है।
यूँ भी जनवरी के महीने में शीत अपने चरम पर होती होती है।सदव्यवहारी और समाज मे अग्रणी होने के कारण किराने वाले गुप्ता जी के घर में लोगों की आवाजाही ज़ारी थी|
रात बहुत पड़ी थी ,रोने को पर सिर्फ़ रोना ही काफ़ी नहीं होता मरने वाले के साथ मरा तो नहीं जाता पर थोड़े बहुत समझदार लोग परिवार को सान्त्वना देने के साथ साथ आगे की व्यवस्थाओं में बीबी संलग्न हो गये ।
अलाव में आग पहले ही जला दी गयी थी, चारों तरफ गद्दे बिछा दिये गये थे।
पड़ोसी चाय और खाने के साथ आगे की व्यवस्था में संलग्न हो गये ।
पर सभी लोग जरूरी व्यवस्था करने के साथ परिवार के लोगों को सांत्वना तो देते जा रहे थे पर एक यक्ष-प्रश्न अब भी अनुत्तरित था सबके ही मन मे ,कि शोभा का क्या होगा?
यह भावना बलवती होती जा रही थी कि वह यह सदमा किस प्रकार सह पायेगी।कहीँ दुःख से बीमार न पड़ जाये
न -न शोभा गुप्ताजी की लाड़ली बेटी न थी,न ही दिल के करीब ,शोभा थी उनकी कोमल हृदया मंझली बहू।
मृत शरीर के चारों ओर भीड़ जमा थी ,रिश्तेदार भी धीरे-धीरे बढ़ते जा रहे थे, गुप्ता जी की पत्नी रामेश्वरी जी भी काफ़ी सदमें में थी| उनकी तो आवाज़ ही नहीं निकल रही थी|
तीनों बहुएँ नीलम, शोभा और मंजरी भी पास बैठी रो रही थीं और अपनी सास को भी सम्भाल रही थीं|
जहाँ नीलम और मंजरी धीरे धीरे सुबक-सुबक रो रहीं थीं वहीँ शोभा खूब ज़ोरदार तरीके से बुक्का फाड़कर छाती पीट-पीटकर रो रही थी|
उसके विचार में विदाई और ग़म के मौकों पर इस तरह से रोने को वीरता से कम न माना जाता| यह शायद सम्बंधित व्यक्ति से उसके अति से ज़्यादा लगाव का भी सूचक होता|
अक्सर वह रोते रोते बेहोश भी हो जाया करती थी| सभी पुराने ज़माने की महिलाओं में उसकी तारीफ़ थी| आखिर उसे परमवीर चक्र भी उन्ही ने दिया था नरम दिलवाली का|
शोभा के अंदर दिखावे के गुण कूट कूट कर भरे थे ,किसी मेहमान के आने पर मीठी बातों के साथ वह आवभगत में इतने चक्कर काटती कि उसे यही लगता कि सारे काम बस उसी ने किए हैं।
बाकी सबसे जबर्दस्ती उनके हाथ का काम ऐन मौके पर छीन लिया करती इस तरह उसकी जिंदगी दिखावटीपन से बड़े आराम से चल रही थी।
घर मे कोई भी कामकाज हो बाकी लोग चुप रह कर करते वह शोभा पूरे शोरशराबे के साथ किया करती थी।
बस काम ही न करती,इस दिखावे से उसके सारे काम आराम से होते थे पर वह सबके मन से उतरती जा रही थी।
उसे यूँ भी किसी की परवाह न थी,जब चालाकियों से उसका काम दिख रहा है,तो प्रयास करने की क्या जरूरत?
घर मे रिश्तेदारों की बढ़ती भीड़ देख शोभा को लग गया कि यही सही समय है।
हे भगवान अब तो सब यहीं रुकेंगे और मुझे भी मजबूरन सब की सेवा और काम करना पड़ेगा।
यूँ भी माहौल बड़ा भारी था और सबकी नज़र भी शोभा पर थी,
उधर शोभा भी काफ़ी देर बीतते न बीतते परिस्थितियों का जायज़ा लेकर दिमाग तेजी से चला रही थी।
गुप्ता जी की पत्नी सबको भरी आँख से देख रही थीं और धीरे-धीरे रो रहीं थीं |सभी जरूरी लोग लगभग जमा हो ही चुके थे।
ऐसे माहौल में प्रायः आपसी सम्बधों में जमी बर्फ़ भी पिघल जाया करती है,।
तो जिनको थोड़ी बहुत शिकायत भी होगी वह भी इस दुःख की घड़ी में गुप्त निवास पर उपस्थिति दर्ज कराने का गये।
तभी ज़ोर से धड़ाम की आवाज़ आयी और भीड़ काई की तरह फट गई,
सबने देखा तो पापा !हाय पापा! कहाँ गये,कहकर बेहोश हुई शोभा ज़मीन पर गिरी पड़ी थी| अब गुप्ता जी को, रोने आये लोगों के ध्यान का केंद्र बिंदु हो गयी शोभा|
सबने शोभा को आनन-फानन घेर लिया|
“हाय रे व बड़ा नाज़ुक दिल की है,कौनो केर दुःख ओसे बर्दाश्त नहीँ होत है”,कहकर पड़ोस की शुक्लाइन चाची,गुप्ता जी की मंझली बहू शोभा के चेहरे पर बार-बार पानी के छींटे मार रहीं थी|
तब तक शोभा की बुआसास ने भी सुर मिलाते हुए कहा,”या तो अपने बियाहे मां भी बिदाई की बेरा दुइ बार बेहोस भई रहै|
शोभा की भाभी भी कहने लगीं कि ,”जीजी ऐसे ही बेहोश होती हैं| “
उसको ग्लूकोज, जूस, चाय बगैरह बारबार दिया जा रहा था और कम्बल।ओढ़ाकर लिटा दिया गया, अंदर वाले कमरे में|
जहाँ नीलम जेठानी का रुतबा दिखाकर बैठ गयी लोगों के साथ, वहीँ मंजरी के सिर पर पड़ गया,पूरे काम और भागदौड़|
हर कोई मंजरी को जीवन की परीक्षा में खरी उतरने के सबक का ज्ञान ऊपर से दे गया।
ऐसा नहीँ था कि नीलम और मंजरी शोभा की चालाकियों से परिचित न थीं| घर में भी वह अपने ट्रम्प कार्ड खेलने से बाज़ न आती|
गुप्ता जी कानों से ऊँचा सुनते थे,तो उनकी किसी भी बात को पूरा करने से पहले उन्हें जी भर के कोसने वाली, आज उनकी याद में ऐसे रो रही थी कि कुछ पूछो ही मत|
लोंगो के बीच चर्चा का विषय बस शोभा ही शोभा बन गयी थी।
अगले दिन यूँ भी कोई काम न होते हुए भी बहुत से काम ही थे।
उसमें नीम चढ़े करेले की भाँति शोभा के स्वास्थ समाचार की खबर भी और जुड़ गई।
पहले भी मंजरी खिसिया कर रह जाती,कि पिताजी की सारी सेवा तो मैं कर रही थी ,घर बड़ी दीदी सँभालती थी।
मैं तो अस्पताल की भागदौड़ भी करती स्कूटी लिये,पर मुझे तो झूठा चक्कर भी न आया थकान ज़रूर लग रही थी|
हे भगवान! कैसे भी इनकी पोलपट्टी खोल दो ,उसने आसमान की तरफ़ देख मायूसी से कहा।वह लाख मुस्तैद रहती,मगर शोभा इतनी चतुर थी कि किसी के पकड़े में न आ रही थी|
“इनका बढ़िया है,लड़की की विदा के बाद काम फैलता है या ऐसे समय, इनकी बेहोशी के चक्कर मे मेरी ही सारी परीक्षा लोगे प्रभु| “मंजरी बड़बड़ाये जा रही थी|
“भगवान कोई तो चमत्कार करो जो इनकी चतुराई सबकी पकड़ में आये|
और कहते है जिसे सच्चे दिल से चाहो सारी क़ायनात तुमसे मिलाने में लग जाती है|
रात में काम निपटाते समय उसके छोटे बेटे यश ने गेम खेलने को फ़ोन माँगा और जेठानी की अतिरिक्त सेवा से चिड़चिडाई मंजरी ने उसे फोन देकर शोभा के बिस्तर के पास वाले सोफ़े पर बैठा दिया|
यश थोड़ी देर खेल कर ऊब गया और फ़ोन चलाने के बाद मंजरी को वापस भी कर गया|
हॉल में सारा परिवार जमा था , माहौल तो ग़मज़दा यूँ भी था ,रसोई में मंजरी भी थोड़ा फुरसत में ही थी ।
वह अपना फोन चेक करने लगी,कि उसकी नज़र एक ताज़ा वीडियो पर पड़ी जिज्ञासा से उसे देखा,उसकी खुशी से चीख निकल पड़ी।
और उसने आनन फानन फैमिली ग्रुप में पोस्ट कर दिया|
वो वीडियो था शोभा का जिसमें वो अपनी बहन को अपनी बेहोशी के नाटक के फ़ायदे गिनवा रही थी और अनजाने में यश से उसका वीडियो बन गया|
वीडियो तो शोभा के भी व्यक्तिगत नंबर फ़ोन पर भेज दिया था मंजरी ने, अब शोभा सबसे शर्मिंदगी के चलते नज़र बचा रही थी|
उसकी दस सालों की बेहोशी का तिलिस्म यश ने ऐसा तोड़ा कि बाकी कार्यक्रम के निपटने तक दोबारा उसे बेहोशी तो दूर,गलती से भी चक्कर तक न आया।
उसके पति और बच्चे भी उस पर विश्वास न कर सके|
अब शोभा सबके मन से उतर चुका था ।
उस सर्द रात ने साँच की आँच में उसका झूठा जादू , आग में पिघलाया जो था।
