Osho: सू एपलटन अपने पूर्व जन्म से ही ओशो की प्रेमिका रही है। अप्रैल 1971 में ओशो द्वारा संन्यास दीक्षा ग्रहण की। ओशो ने उसे नया नाम मा योग विवेक दिया। मा विवेक दिसंबर 09, 1989 को अपने भौतिक जीवन से पृथक हो गई।
सू एपलटन… नाम था उसका, जर्मनी में पैदा हुई थी, वकील थी, अमीर थी, सफल थी, प्रतिष्ठित थी, पर सब सूना लगता था। जर्मनी के उसके घर में एक बार एक भारतीय अनायास ही उसके घर में घुस आया नाम था रवि। पूछा तो उसने बोला-‘बस मन किया तो अंदर चला आया’ उसने गले में एक माला पहन रखी थी। उस पर एक सुंदर सी तस्वीर थी। सू उसे देख कर जैसे मिट गयी… सूनापन भर गया जैसे.. पूछा ये किसकी तस्वीर है? रवि ने बताया – ये रजनीश हैं उसके गुरु। सू ने पूछा ‘ये कहां मिलेंगे? रवि- ‘इंडिया, पूना। सू को मंजिल का पता मिल गया। सूरज निकला और सू भारत को जा रही थी। परिवार ने पूछा कहां जा रही हो? क्यूं? कब आओगी? सू को कुछ पता नहीं। गुमसुम पैकिंग करती रही।
पूना… रजनीश जी को सू ने दूर से देखा है, वो प्रवचन कर रहे हैं, छोटे से नजर आते हैं दूर से.. हिंदी तो समझ नहीं आती.. पर आवाज जन्मों की पहचानी है.. अरे, 3 घंटे का प्रवचन समाप्त हो गया 3 निमिष में! लोग चरणों पर गिर रहे हैं। रजनीश जी मुस्कराते कार की तरफ बढ़ रहे हैं, हाथ जोड़े.. भीड़ ने घेर
रखा है, सू को नशा सा हो गया.. ये दिव्यता, असह्य है ये कहीं वह बेहोश न हो जाए… उफ! ये रोशनी!
वह बिजली की तरह भीड़ को चीरती हुई रजनीश के पास आती है और उनसे लिपट जाती है। भीड़ आवाक! वक्त सहम जाता है। रजनीश ने पूछा- ‘कब से बुला रहा हूं.. अब आई हो, इतनी देर कर दी? सभी को कुछ समझ नहीं आता।
सू उन कालजयी आंखों में डूब गयी… वक्त 23 साल पीछे चला जाता है- यह गांव है गाडरवारा, राजा नाम है रजनीश चन्द्र मोहन जैन का, सू है ‘गुडिया’ या शशी। वह राजा को बहुत प्यार करती है, राजा 12 साल के हैं, सू 8 साल की। राजा जब खेलकर थक जाते हैं तो गुडिया उन्हें घर से लाई हुई खीर खिलाती है। गुडिया 9 साल की उम्र में जब टायफाइड से मर रही होती है तो वह रजनीश से 2 वचन लेती है- 1. कहीं
शादी नहीं करोगे, 2. उसे बुला लोगे, वह जहां कही भी होगी..। सू को एक पल में सब याद आ गया था- वह भीगे नेत्रों से अपने राजा को देखती है, रजनीश जी मुस्कराते हुए सू से विदा लेकर कार में बैठ जाते हैं। कार चल पड़ती है लाओत्जे हाउस की ओर पीछे छोड़ जाती है भक्तों की कतार और लौटी हुई ‘गुडिया’….
अस्तित्व उस समय इस प्रेम को प्रणाम कर लेता है…जिसे मृत्यु धुंधला न कर पायी थी। रजनीश जी के शरीर त्यागने से कुछ समय पूर्व इस राधा ने स्वेक्षा से शरीर छोड़ दिया था..और अस्तित्व ने पुन: प्रणाम किया था। यही विवेक थी..
अमृता प्रीतम की पुस्तक- ‘इश्क
अल्लाह हक अल्लाह से साभार
