जब मुझे होश आया, मैं अस्पताल में बेड पर पड़ी हुई थी।
जब मुझे होश आया तो मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था।
धीरे-धीरे मैंने अपनी आंखें खोली और इधर-उधर देखने लगी।
दोनों हाथों में ड्रिप लगी हुई थी। अगल-बगल कई तरह के मशीनें।
धीरे-धीरे मुझे सबकुछ याद आने लगा।
मैं अपनी आंखें खोल चारों तरफ का जायजा लेने लगी।
वहां मेरे पास मुस्कान बैठी हुई थी, हमेशा की तरह हंसती मुस्कुराती हुई ।
“कैसी हो ,ठीक हो आप?मैं ही तुम्हें यहां लेकर आई थी। मैंने ही तुम्हें एडमिट कराया था। तुम अपने घर में बेहोश हो गई थी, कुछ याद है तुम्हें?”
पिछले दिनों की कई बातें मेरी आंखों के आगे दौड़ गई।
एक हफ्ते से विहान अमेरिका के अपने विजिट में थे।कुणाल भी अपने हॉस्टल चला था।
मैं घर पर अकेली थी और अचानक ही मेरा ब्लड प्रेशर बहुत हाई हो गया था। सांस फूलने लगी थी और धड़कन तेज होने लगी थी!!
फिर क्या हुआ मुझे कुछ नहीं पता ! और मैं आज यहां हूं।
“थैंक यू सो मच मुस्कान !”मैंने बहुत ही मुश्किल से कहा
“अरे थैंक यू मत कहो। हमारे रिश्ते में फॉर्मेलिटी नहीं मुझे बिल्कुल पसंद नहीं। बस अब तुम रिलैक्स करो।
बहुत ज्यादा टेंशन ले लेती हो,इसी के कारण तुम्हारा ब्लड प्रेशर बढ़ गया होगा।”
तभी नर्स रुटीन चेक अप के लिए आई। उसने मेरा ब्लड प्रेशर चेक किया फिर
बोली
“चलिए मैडम,नाश्ता कर लीजिए। फिर दवा देना है। इंजेक्शन भी देना है।”
नर्स ने मुस्कान की तरफ देखते हुए कहा “ये मैडम आपको यहां लेकर आई थीं अगर यह सही समय पर हीं लेकर आती तो कुछ भी हो सकता था।
आपके दिमाग की नसें फट सकतीं थीं।आपको स्ट्रोक आ सकता था!आपकी रिलेटिव बहुत ही रेस्पांसिबल हैं। उन्होंने आपको सही समय पर यहां एडमिट करा दिया।”
मैंने मुस्कान की तरफ देखकर कृतज्ञता से अपने हाथ जोड़े।
“अरे नहीं यह तो मेरा फ़र्ज़ था।हम पड़ोसी हैं तो इतना तो कर ही सकते हैं।”मुस्कान अपनी मुस्कान बिखेरते हुए बोली।
मुझे नाश्ता कराने के बाद उसने कहा
“ कुसुम अब तुम आराम करो। मैं दो घंटे में आती हूं।”
मैं मुस्कान को जाते हुए देखती रही।कितनी हंसमुख है,कितनी जिंदादिल!
न जाने क्यों उसे देखकर मैं असुरक्षा की भावना से घिर जाती हूं।
उसके जाने के बाद नर्स ने मुझसे कहा “आप आराम कीजिए मैडम।जितनी जल्दी आप जितना ज्यादा आराम करेंगी उतनी जल्दी रिकवर करेंगी।”
मैं कमरे में अकेली थी।मेरा मन पुराने दिनों में दौड़ने लगा था।
शादी की पहली ही रात को बिहान ने मुझसे कहा था
“कुसुम मैं तुमसे शादी करने के लिए तैयार नहीं था।
बचपन से ही अपनी दोस्त मुस्कान से शादी करना चाहता था।
मगर हम दोनों के रूढ़िवादी माता-पिता ने सिरे से इंकार कर दिया।वे लोग इस शादी के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थे।
बहुत ही मजबूरी में मैंने यह फेरे तुम्हारे संग लिए हैं। मैं तुम्हें धोखा नहीं दे रहा हूं।बस मुझे समय दो कि मैं तुम्हें अपना सकूं!”बोलते हुए विहान की आंखें भरभरा कर बह निकलीं और मैं लाल जोड़े में बैठी हुई मैं अपने आप में सिमट गई।
मगर बिहान ने मुझे कभी शिकायत का मौका नहीं दिया।
वह मेरा पूरा ख्याल रखते। मेरी खुशियों का ख्याल रखते।
मुझे खुश रखने का हर तरीके से प्रयास किया करते थे।
मैं उनके साथ खुश थी, मगर वह नहीं।
वह आज तक मेरे होकर मेरे नहीं हो पाए थे सिर्फ अपने माता-पिता की इच्छा और कर्तव्य का निर्वाह कर रहे थे।
मुस्कान अभी भी अपने माता-पिता के साथ ही पड़ोस में रहती थी।
मुझे लगता था कि उसके माता-पिता उसकी शादी क्यों नहीं कर रहे हैं ? मैं अपने सास ससुर से पूछा भी करती थी तो किसी से भी जवाब नहीं मिलता था।
जब भी विहान टूर पर जाते मुझे उनपर शक होता,जब भी देर से लौटते मुझे शक लगा रहता कि कहीं यह मुस्कान के साथ तो नहीं थे!
कितनी बार बिहान ने मुझे समझाया मगर मेरा शक घर करता जा रहा था।
धीरे-धीरे विहान ने अपना ट्रांसफर दूसरी जगह करा लिया।
समय के चक्र में कुणाल हमारी गोद में आ गया और फिर उसको पढ़ाते लिखाते वह कब बड़ा हो गया, मुझे पता भी नहीं चला और एक दिन फिर से मुस्कान हमारे घर के सामने वाले घर में आ गई।
वह किसी स्कूल की प्रिंसिपल बन कर आई थी।
उसका आना जाना लगा रहता था घर पर।
विहान भी बड़े प्यार से उससे बातें किया करते थे।
मुझे बड़ा ही गुस्सा आता था।
इसी बात पर मेरी बिहान से बहस होती रहती थी।
विहान अमेरिका जाने से पहले मुस्कान से मिलने गए थे ,मुझे बिना बताए!
जब मैंने यह सुना तो मुझे बहुत तेज गुस्सा आया।
मैंने उनसे पूछा भी
“कुसुम, लगभग 15 दिनों के लिए मैं अमेरिका जा रहा हूं।तुम यहां अकेली हो और तुम्हारी तबीयत भी ठीक नहीं है। कुणाल भी नहीं है! कोई तो होना चाहिए ना तुम्हारे साथ !”
“मुस्कान ही बची है मुझे देखने के लिए!” मैंने व्यंग बाण छोड़ते हुए कहा।
“हां..!”बिहान ने मौन साध लिया।
उस दिन कुणाल अपने हॉस्टल चला गया था।
विहान अमेरिका पहले ही निकल चुके थे। लगभग 1 हफ्ते से मेरी तबीयत खराब चल रही थी।
उसदिन ना जाने क्या हुआ मेरा सिर कैसे घूमने लगा और मेरी धड़कन इतनी तेज होने लगी मैं संभलते संभलते, न जाने कैसे गिर पड़ी,मुझे कुछ भी होश नहीं था!
कैसे मुस्कान ने मुझे अस्पताल में एडमिट कराया।
मेरे दिल में उसके लिए एक प्यार सा जन्म लेने लगा, इसीलिए विहान आज तक मुस्कान को नहीं भूल पाए हैं।
वाकई मुस्कान प्यार करने के लायक ही है।
इस घटना ने मुझे बदल दिया।ठीक होने के बाद मैं घर आ गई।
जब तक बिहान वापस नहीं आए उसने दिन रात मेरी देखभाल की।चाहे वह खाना खिलाना हो,अस्पताल का खर्चा, समय पर दवा देना सब कुछ वह एक सगी बहन की तरह किया करती थी।
उस दिन शनिवार था। उसके स्कूल की छुट्टी थी। मैंने उससे पूछा “मुस्कान फ्री हो ,मैं आ जाऊं?”
“ हां कुसुम आ जाओ!”
मैं अपना घर लॉक कर चली गई।आमतौर पर मैं उसके घर जाने से बचती थी लेकिन आज न जाने मेरे कदम उसके घर की तरफ क्यों उठ गए!
“आओ कुसुम! मुझे बड़ा अच्छा लगा तुम यहां आई हो, मेरे पास।” उसने मुझे गले से लगा लिया।
“अगर तुम्हें कुछ हो जाता ना तो विहान मुझे कभी भी माफ नहीं कर पाता और न मैं अपने आप को।”
मैं हल्के से मुस्कुरा कर रह गई।
“मगर क्यों?”
“अमेरिका जाने से पहले उसने मुझसे कहा था मेरी मजबूरी है टीम हेड बनकर जाने की लेकिन कुसुम की तबीयत ठीक नहीं है प्लीज उसे देख लेना।
“ओह!मैं धम से कुर्सी पर चिपक गई,
तो यही बोलने के लिए वह मुस्कान के घर गए थे और मैं उन्हें कितना गलत समझ रही थी।
“मैं चाय बनाती हूं!”
“ ठीक है।”
मैं किचन में पीछे-पीछे पहुंची। किचन से झांकते हुए उसके बेडरूम में अभी भी विहान को हंसता हुआ फोटो नजर आ रहा था।
मैंने तिरछी निगाहों से देखा और फिर अनदेखा करते हुए किचन में आ गई। मैंने उसे कंधे से पकड़ा “तुमने शादी नहीं की?”
“नहीं,,,!”मेरे माता-पिता ने मेरे लिए एक लड़का ढूंढा था बड़ी मुश्किल से अपने दिल को समझा कर मैं शादी के लिए हां तो किया था मगर उन लोगों के ऊंची डिमांड दिनों दिन बढ़ती जा रही थी।
मेरे पिताजी के पास इतने रुपए नहीं थे कि उन लोगों का मुंह बंद किया जा सके फिर आगे बढ़कर मैंने ही मना कर दिया।
दरअसल मैं वहां शादी करना ही नहीं चाहती थी।जहां मैं करना चाहती थी वह मेरे माता-पिता को पसंद नहीं था।
उसने विहान का नाम नहीं लिया था। उसे नहीं पता था कि बिहान ने मुझे सब कुछ बता दिया था।
“मैंने अपने माता-पिता से कहा मैं शादी नहीं करूंगी मुझे जब करना होगा मैं खुद से कर लूंगी।”
“मगर वह तो कभी नहीं आया ना!”
“ नहीं कुसुम तुम नहीं समझोगी ।यह प्यार ऐसे नहीं होता,बस हो जाता है!
अब दिल किसी और का होने को तैयार नहीं है!”
वह चाय दो कप में छान रही थी ।
चाय की सुरमई रंग और सुगंध पूरे किचन में दौड़ रही थी।
उसने डब्बे में से बिस्किट निकाला और चाय लेकर ड्राइंग रूम में आ गई।
“ आओ ना यहीं बैठ कर चाय पीते हैं!”
“मुस्कान तुम मेरे पति की प्रेमिका हो, उनका दिल और प्यार सब कुछ!”
तुमने प्यार किया, बस प्यार किया तुम्हें क्या मिला?
मैं पत्नी हूं मुझे सब कुछ मिला।
न जाने यह प्यार क्या होता है? जिसे होता है वही जाने!
भले ही तुम मेरे पति की प्रेमिका हो लेकिन
बस सैल्यूट है तुम्हें!”
मैंने मुस्कान की तरफ देखा वह अभी भी मुस्कुरा रही थी।अपना दर्द अपने भीतर छुपाए!
बेवफा कौन-गृहलक्ष्मी की कहानियां
