lisu aur sheru
lisu aur sheru

भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

लिसु अब की बार पांचवी कक्षा में आई है। स्कूल की छुट्टियां चल रही है। मम्मी-पापा के कहने पर नानी के घर जाने के लिए गाड़ी में बैठ भी गई वो। हर साल की तरह इस बार गर्मी की छुट्टियों में वो नानी के घर जा रही है। गाड़ी में उदास और गुमसुम बैठी है। जा तो रही है, पर हर साल की तरह इस साल उसका बिलकुल भी मन नहीं हो रहा है जाने को। जब कि जैसे ही स्कूल की परीक्षा खत्म होती है वो मम्मी-पापा को एक दिन भी रुकने नहीं देती थी। नानी के घर जाना है जिद करके तुरंत ही तैयारी में लग जाती थी। नानी के घर में मामा, मामी और उनके दो छोटे-छोटे बेटे (साई और पीकू), नाना, नानी और उसके साथ खेलने के लिए बहुत सारे दोस्त तो है फिर भी शेरू कछ ज्यादा ही आकर्षण था लिस के लिए। हर बार पापा से बोल के शेरू के लिए कुछ-न-कुछ वह, लेकर जाती थी। शेरू को हार्ड बॉल बहुत पसंद था। बहुत दिनों के बाद भी देख के मुझे पहचान लेता था, देखते ही शेरू कूद पड़ता था मेरे ऊपर। मुझे बहुत लगाव हो गया था शेरू से क्योंकि मैं पापा-मम्मी की एक ही बेटी हूं और मेरे पास कोई भी खेलने के लिए नहीं है। इसलिए मुझे पैट्स बहुत पसंद है, पर मम्मी पापा दोनों ऑफिस जाते हैं तो देखभाल नहीं कर पाएंगे कोई भी। वो दोनों इसलिए घर में पैट्स नहीं रखने देते हैं।

शेरू को नाना भुवनेश्वर से खरीद के ले के आए थे, जब वो एक महीने का था। उसको एक कुत्ते की तरह नहीं बल्कि एक इंसान के बच्चे की तरह नाना के घर में सब पाल रहे थे। बॉटल से दूध पीता था, सेरेलैक भी खाता था। जब धीरे-धीरे बड़ा हुआ तो हम सब के साथ फुटबॉल और लुका छिपी और भागम-भाग भी खेलता था। उसको नाना नहला देते थे शैंपू लगा के। सुबह चाय भी पिलाते थे और बिस्कुट भी देते थे उसको। सब लोग बहुत प्यार करते थे शेरू को। विदेशी नस्ल का लाब्राडोर जातीय कुत्ता भारतीय जलवायु में पलना थोड़ा मुश्किल तो है फिर भी नाना और मामा लोग ने उसके लिए हर एक सुख-सुविधाएं दे रखे थे।

एक दिन खेलते-खेलते शेरू फुटबॉल के पीछे छलांग लगा दिया तो मेरे हाथ पर शेरू का नाखून लग गए। थोडा खून बहा। साई और उसका बड़ा भाई पीकू (मेरे मामा के दोनों बेटे) बहुत प्यार करते हैं मुझे, इसलिए ये सब देख के पीकू को मैं मना करने के बाद भी शेरू को एक डंडे से मारा। क्यूंकि शेरू ने पीकू को भी गुस्से से नोच लिया और पीकू के हाथ से भी खून बहने लगा।

(हम जीव जंतु के प्रति जैसा व्यवहार करेंगे, वैसा व्यवहार वो लोग हमारे प्रति करेंगे। जब तक उनको हम नुकसान नहीं पहुंचाएंगे तब तक वो हमारा कुछ नहीं बिगाड़ेंगे।)

अनजाने में मुझे लग गया था, शेरू ने जान-बूझ के तो ये सब नहीं किया था न। बल्कि वो पीकू से हिंसा या बदले का भाव सीख गया। ये बात मैंने साई और पीकू को समझायी।

नानी नं ये सब देख के नाना को बहुत गाली दी और शेरू को भला-बुरा कहा कि जानवर को जितना भी प्यार से रखो, वो कभी इनसान जैसा बन नहीं सकता। बार-बार बोली भी थी कि शेरू को बांध के रखने के लिए। इसलिए नाना को यही बोल के कोस रही थी की देखा जानवर को खुले छोड़ने का परिणाम। मेरे दोनों बच्चों का हाल ऐसा कर दिया, कल किसी और को भी नुकसान पहुंचाएगा। इसलिए उसको कहीं और छोड़ के आ जाओ। पर साई और पीकू सिर्फ नहीं, घर के हर एक सदस्य को शेरू के प्रति लगाव था। नाना रिटायर्ड होने के बाद शेरू के साथ ही टाइम पास कर रहे थे, इसलिए कोई भी उसे छोड़ने को राजी नहीं हुए तो घर में उसे बांध के रखे।

हम दोनों को तुरंत मामा डॉक्टर के पास ले गए और इंजेक्शन भी लगवा दिए। पर उस दिन के बाद साई और पीकू शेरू के साथ पहले की तरह खुशी से नहीं खेल रहे थे। उल्टा उसके गले में पट्टा लगा के उसके ऊपर हुक्म चला रहे थे। बेचारा शेरू हर वक्त गमसम रहता था बंदी बन के। दिन-रात उसके गले में पट्टा बंधा रहता था। वो भी धीरे-धीरे उदास होने लगा।

एक दिन शेरू बीमार पड़ा और खाना नहीं खाया। ऐसा बहुत दिन चला कि नाना जितने भी प्यार से खिलाए वह खाता नहीं था, खाली कुँ-कुँ कर के रोता था और उसकी आंखों से आंसू निकलते थे। ये सब देख के साई और पीकू भी दुखी हो गए। मामा डॉक्टर को दिखाएं, दवाई इंजेक्शन सब दिए, पर शेरू ठीक नहीं हुआ, न खाना खाया बल्कि हरदम रोता रहता था, जैसे उसको कोई दर्द हो रहा है।

तब मैं नाना के घर पर थी और एक दिन जब कोई नहीं था आसपास, तब शेरू के पास जाकर उसको प्यार किया और उसके सिर को सहलाया मैंने। फिर जब धीरे-धीरे उसके गले के पास हाथ फिरा के वो लाल पट्टे तक गई तो वो जोर से रोने लगा। मैंने सोचा- पट्टा खोल के उसको थोड़ा आजाद कर दूं। पर उसने हाथ नहीं लगाने दिया। तब नाना आ गए और जबरदस्ती उसको पकड़ के गले को देखा। ये क्या? बहुत बड़ा घाव है उसके गले के निचले हिस्से में। इतने दिनों से लाल पट्टा रह-रह के घाव बन गया है। तुरंत हॉस्पिटल ले गए उसे और वहां उसका पट्टा निकाल के घाव अच्छा करना था। पर घाव इतना बड़ा और गहरा था कि उसने शेरू को मार दिया कुछ दिनों बाद। बहुत कोशिशों के बावजूद शेरू हमारे बीच नहीं रह पाया।

सभी लोग बहुत दुखी हो गए और तब से मुझे नाना के घर जाने में कोई भी खशी नहीं रही। बार-बार वही सोच के बरा लग रहा था कि अगर शेरू के गले में पट्टा न होता तो शेरू को कुछ नहीं होता। न घाव बनता ना वह मरता।

किसी भी प्राणी की आजादी खुद के लिए महत्त्वपूर्ण है, चाहे वो शेरू हो या इनसान। यही सब सोच रही थी कि लिसु कि मम्मी ने आवाज दी “अरे बेटा उतरो गाड़ी से, नाना का घर आ गया।” कार का दरवाजा खोल रही थी कि एक बॉल आ के उसके पैर के पास गिरा, पीछे से आवाज सुनाई दी- शेरू बॉल लाओ। लिसु ने पीछे मुड़ के देखा- पीकू और साई एक सुंदर-से, बहुत क्यूट से कुत्ते के बच्चे के साथ खेल रहे हैं। फिर से वही माहौल देख के लिसु की आंखों में आंसू आ गए, पर वो खुशी के थे क्योंकि उसको शेरू मिल गया है और शेरू के गले में पट्टा नहीं था। वो आजाद घूम रहा था।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’