भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
दीपक दिन पर दिन शरारती होता जा रहा था। दादी के लाड़-प्यार से वह ज्यादा ही बिगड़ गया था। सबसे छोटा होने के कारण घर में सभी का लाडला था वह। मांगने से पहले ही उसकी हर मांग पूरी हो जाती थी। उसकी बढ़ती उद्दंडता को देखकर उसके पापा कई बार चिन्तित हो जाते थे। एक दिन अपनी माँ से बोले, “माँ अब दीपक बड़ा हो रहा है, हमें इसकी गलतियों को नजर अंदाज नहीं करना चाहिए। आए दिन गली-मोहल्ले के बच्चों के साथ लड़ाई-झगड़ा कर लेता है, आप कब तक नजर अंदाज करती रहेंगी? अब स्कूल से भी शिकायतें आने लगी हैं। कहीं ऐसा न हो कि यह हमारे हाथ से ही निकल जाए?”
“तुम बेकार में इतनी चिंता कर रहे हो। बच्चे शरारत नहीं करेंगे तो क्या हम-तुम करेंगे? बिना मां का बच्चा है, इसकी माँ आज जिन्दा होती तो पता नहीं कितने लाड़-दुलार करती? हम कहां वो प्यार दे पाएंगे? ये तो भला हो भगवान ने हमारी सुन ली और अंजलि बहू ने अपना बच्चा समझ कर पाला व प्यार दिया।” इसीलिए तो कहता हूँ मां, “अब हमें विशेष ध्यान देना चाहिए। कल अंजलि भी बता रही थी, स्कूल से प्रिसिंपल का फोन आया था कि स्कूल आकर मिलो। इसने खेलते हुए कोई शरारत की जिससे एक बच्चे को चोट लग गई। उसके बाद अध्यापिका ने इसको सजा भी दी। लेकिन दीपू ने घर में आकर बताया भी नहीं। कल मैं और अंजलि स्कूल जाएंगे। आज आप भी समझाइयेगा।”
अगले दिन जैसे ही कक्षा शुरू हुई, अध्यापिका कक्षा में आई। सभी बच्चे सुप्रभात करने के लिए एक साथ खड़े हो गए और जब अध्यापिका ने बैठने का संकेत दिया तो दीपक ने अपने से आगे का बैंच धीरे से पीछे खिसका दिया, जिससे बच्चे धड़ाम से नीचे गिर गए। कक्षा के बाकी बच्चे जोर-जोर से हंसने लगे। अध्यापिका ने दीपक को माफी मांगने के लिए कहा तो वह चुपचाप खड़ा रहा। जिस पर गुस्से में अध्यापिका ने उसकी पिटाई कर दी और खड़ा रहने की सजा भी दी। जिसे दीपक सहन नहीं कर पाया और मन-ही-मन अपनी पिटाई व बेइज्जती का बदला लेने की ठान ली और इस योजना में उसका साथ देने के लिए दोस्त भी तैयार हो गए। बस फिर क्या था, हर रोज नित नयी योजना बनाने लगे।
दीपावली पर्व पर पांच दिन की छुट्टियों की घोषणा की गई। अध्यापिका ने प्रदूषण रहित दीपावली मनाने के लिए सभी को कहा। बच्चों ने बम-पटाखे न चलाने का संकल्प लिया। जैसे ही बम-पटाखों की बात चली वैसे ही दीपक के शरारती दिमाग के घोड़े दौड़ने लगे। योजना को अंतिम रूप देने के लिए दोस्तों के साथ तैयारी शुरू कर दी।
छुट्टी होते ही दीपक अपने दोस्तों के साथ एक पेड़ के पीछे छिप गए। उन्हें पता था कि सुगंधा मैम इसी रास्ते से जाती हैं। जैसे ही वे वहां से निकली, तभी रास्ते में रखा पटाखा-बम इतनी जोर से फटा कि वे संभल पाती, इससे पहले ही वे एक स्कूटर से टकरा कर नीचे गिर गईं। जिससे उन्हें गंभीर रूप से सिर में चोट लगी। पत्थर से टकराने के कारण सिर से खून बहने लगा। खून बहता देख दीपक और उसके दोस्त वहां से भाग निकले। जिन्हें भागते हुए सुगंधा ने देखा लिया।
दीपक अपने घर न जाकर अपने दोस्त के घर चला गया। वह इतना डर गया था कि दो दिन स्कूल भी नहीं गया। डर के कारण वह रात को ठीक से सो भी न पाया। उसे डर था कि स्कूल में पिटाई तो जरूर होगी, पर कहीं पापा उसे स्कूल से निकाल कर हॉस्टल न भेज दें। हॉस्टल वह नहीं जाना चाहता। दादी के पास ही रहना चाहता है। दादी ही तो है इस घर में जो उसे सबसे ज्यादा प्यार करती हैं। जब मम्मी एक दिन उसे डांट रही थी तो दादी कितना चिल्लाई थीं मम्मी पर। तब मम्मी ने दादी से माफी मांगी थी। उस दिन के बाद से मम्मी ने कुछ नहीं कहा।
जब तीन दिन तक वह स्कूल नहीं गया तो पापा ने शाम को आते ही दादी से पूछा, “क्या आज भी दीपक स्कूल नहीं गया?” दादी ने कहा, “सुबह उसे बुखार था, दोपहर से ठीक है, थोड़ी देर के लिए पार्क में गया है। लेटे-लेटे बोर हो रहा था।” मैंने ही भेज दिया।
“माँ ज्यादा ही छूूट दे रही हैं आप!” तभी डोर बेल बजी, बाहर जाकर देखा तो सुगंधा मैम खड़ी थीं, दीपक ने उन्हें अपने घर की ओर जाते हुए देख लिया था। देखते ही कंपकंपी छूट गई। दुबक कर बैंच पर ही बैठा रहा। उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी। सुगंधा मैम का सामना करने की।
दीपक के पापा ने उन्हें अन्दर आने को कहा, पर वे मना करते हुए बोलीं, “मैं जल्दी में हूँ, इधर से निकल रही थी तो सोचा दीपक का हाल चाल पता करती चलूं। तब तक दीपक भी सहमा-सहमा-सा आकर पास में खड़ा हो गया था। सुगंधा के चेहरे पर मुस्कान देख कर उसका डर कुछ कम हो गया था। नीचे नजरें झुकाए हुए ही बोला, “मैम आज मुझे बुखार था, इसलिए स्कूल नहीं आ सका।”
“हां-हां मैं जानती हूँ, घबराओ नहीं। अंदर आने को नहीं कहोगे?”
“सॉरी मैम”, वह अभी भी डर रहा था।
“अपना स्टडी रूम तो दिखाओ!” सुगंधा बोली।
“जी मैम, आइए।” दीपक उन्हें कमरे में ले गया।
कुर्सी पर बैठते हुए सुगंधा बोलीं, “देखो दीपक, मैंने किसी को भी इस दुर्घटना के बारे में नहीं बताया। अपने हाथ और पैर पर बंधी पट्टियाँ दिखाते हुए बोली, छोटी-सी चोट है, दो चार दिन में ठीक हो जाएगी। प्रिंसिपल सर ने पूछा तो हमने उन्हें भी सच्चाई न बताकर एक छोटा-सा एक्सीडेंट बता दिया था। तुम कल स्कूल जरूर आना। सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा, अगले सप्ताह तुम्हारी मासिक परीक्षाएं हैं। मन लगाकर पढ़ाई करनी है, समझे?” प्यार से दीपक की आँखों में आँखें डालते हुए बोलीं।
दीपक ने सुगंधा मैम के पैरों में गिरकर फूट-फूट कर रोते हुए माफी मांगी। सुगंधा ने उठाया और गालों पर प्यार की चपत लगाते हुए बोलीं, “मैंने तुम्हें माफ कर दिया। मैं जानती थी, तुम डर के कारण स्कूल नहीं आ रहे। जो गलती की है, उसे भविष्य में दोबारा न दोहराना। समझे!”
दीपक बहुत शर्मिंदा था। नजरें नीचे झुकाए ही बोला, “मैम, आपको विश्वास दिलाता हूं, कभी शिकायत का अवसर नहीं दूंगा। अच्छा विद्यार्थी बनने की कोशिश करूंगा। आप बहुत अच्छी हो मैम। अपनी आँखें पौंछते हुए दीपक बोला।
“ठीक है… अब एक वायदा करो दीपावली केवल शगुन की फुलझड़ियाँ जलाकर मनाओगे। अपने दोस्तों को भी प्रदूषण रहित दीपावली मनाने के लिए कहोगे!”
“जी मैम, हम सभी दीपावली पर बम-पटाखे नही चलाएंगे।”
“तुम्हें परिवार सहित दीप-पर्व की शुभकामनाएँ”, सुगंधा ने कहा और वापस जाने के लिए कुर्सी से खड़ी हो गई।
“आपको भी बहुत-बहुत शुभकामनाएँ मैम।”
तभी दीपक की दादी ने मिठाई के डिब्बे के साथ कमरे में प्रवेश किया। जिन्होंने बाहर खड़े-खड़े सारी बातें सुन ली थी। सारी स्थिति स्पष्ट हो गई थी। आज वे बहुत खुश थीं क्योंकि उन्हें अपने पोते के लिए मार्गदर्शक के रूप में शिक्षिका जो मिल गई थीं। दीपावली की शुभकामनाएँ देते हुए कहा, “काश—सभी शिक्षक आप जैसे हों।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
