पंद्रह अगस्त वाले दिन स्कूल में बहुत बड़ा समारोह था। प्रिंसिपल हंसा मैडम ने खूब जोश से भरा, बड़ा अच्छा भाषण दिया। हिंदी वाले सर प्रभात जी ने भी बड़े सुंदर ढंग से बताया कि देश के प्रति हमारा भी कुछ कर्तव्य है। हमें आगे बढ़कर बड़े-बड़े काम करने चाहिए।
बच्चों को बड़ा अच्छा लग रहा था। उन्हें लगा, हम भी अपने देश के लिए कुछ कर सकते हैं।
इसके बाद प्रिंसिपल हंसा मैडम ने कहा कि अब बच्चे स्टेज पर आकर बताएँगे कि उनके जीवन का क्या सपना है? यानी कि वे बड़े होकर क्या बनना चाहते हैं और अपने-अपने ढंग से कैसे देश की सेवा करेंगे?
शुरू में बच्चे कुछ शरमाए, पर फिर धीरे-धीरे खुलने लगे। किसी बच्चे ने कहा कि वह सेना में जाकर दुश्मन से लड़ेगा। किसी ने कहा कि वह कवि और लेखक बनकर देशवासियों में देशभक्ति की भावना पैदा करेगा। किसी ने डाक्टर और इंजीनियर बनने की बात कही। कोई पत्रकार बनना चाहता था, तो कोई अध्यापक। बहुत से बच्चे कंप्यूटर टेक्नोलॉजी सीखकर बड़े काम करना चाहते थे।
अंत में बारी आई चुनमुन की। वह मुसकराता हुआ स्टेज पर गया। बोला, ”आजकल सारी दुनिया के लोग अंतरिक्ष में बस्तियाँ बसाने की बात कह रहे हैं। कई देशों में तो इसका बाकायदा तैयारियाँ भी हो गई हैं। हमारे यहाँ एक से एक बड़े साइंटिस्ट हैं। फिर भी अभी हम इस लिहाज से पिछड़े हुए हैं। भारत का यान चंद्रमा तक जा पहुँचा, यह एक बड़ी सफलता है, पर अभी हमें मंगल ग्रह पर भी जाना है। हजारों बरस पहले हमने दुनिया को अंतरिक्ष के रहस्य बताए। वे आगे निकल गए, हम पीछे रह गए। जिस दिन भारत मंगल ग्रह पर पहुँचेगा और अंतरिक्ष में बस्तियाँ बसा लेगा, भारत के वैज्ञानिकों का भी दुनिया में नाम होगा और भारत की कीर्ति-पताका दूर-दूर तक फहराएगी। मेरा यही सपना है कि मैं अंतरिक्ष विज्ञान में इतना काम करूँ कि भारत के लोग भी अंतरिक्ष में बस्तियाँ बसा सकें। और हो सके तो मंगल ग्रह पर पहुँचने वाले पहले कदम भारत के ही हों।”
सब हैरानी से नन्हे चुनमुन की बड़ी-बड़ी बातें सुन रहे थे। पर चुनमुन बड़े जोश और उत्साह से अपनी बात कहता जा रहा था।
चुनमुन की बात पूरी होते ही प्रिंसिपल हंसा मैडम ने चुनमुन की पीठ थपथपाते हुए कहा, ”सचमुच देश को ऐसे ही बच्चे चाहिए, जो दूर के सपने देख सकें।”
इस पर सब बच्चों ने देर तक तालियाँ बजाकर खुशी प्रकट की और चुनमुन सोचने लगा, ”खाली बड़ी बातों से बड़े काम नहीं होते। मुझे अपना सपना पूरा करना है, तो और भी मेहनत से पढ़ना होगा।”
यों पंद्रह अगस्त को उसने नई सीख ली। और यह उसके लिए एक बड़े संकल्प का दिन भी बन गया।
